भारत का लोकतंत्र विश्व का एक सशक्त लोकतंत्र है । लोकतांत्रिक मूल्यों में आस्था रखने वाले विश्व के समस्त राष्ट्र यहाँ की लोकतांत्रिक प्रणाली से प्रेरणा लेते हैं । लोकतंत्र के अंग्रेजी पर्याय डेमोक्रेसी ‘शब्द की व्यूत्पति ग्रीक मूल के शब्द ‘डेमोस’ से हुई है, जिसका अर्थ है ‘जनसाधारण’ । इसमें केसी शब्द जोड़ा गया है जिसका अर्थ है शासन या सरकार ।
इस प्रकार लोकतंत्र शब्द का मूल अर्थ ‘जनसाधारण’ या ‘जनता’ का शासन है । अब्राहम लिंकन के द्वारा दी गई लोकतंत्र की परिभाषा इसके बहुत निकट है । इराके अनुसार लोकतंत्र ‘जनता के द्वारा और जनता के लिए’ स्थापित शासन प्रणाली है ।
लोकतंत्रीय प्रणाली में शासन या सत्ता का अंतिम सूत्र जनसाधारण के हाथों में रहता है ताकि सार्वजनिक नीति जनता की इच्छा के अनुसार और जनता के हित-सानव के उद्देश्य से बनाई जाए और उसे कार्यान्वित किया जाए । भारत भी एक लोकतांत्रिक देश है और इसमें कोई शक नहीं कि कल के और आज के भारत में ऐसा बहुत कुछ है जो बहुत लोगों में हताशा और निराशा पैदा करता है ।
आज हमारे समाज में बड़े पैमाने पर गरीबी, निरक्षरता, सामाजिक-अन्याय, लिंग-भेद, सामाजिक-दमन, भ्रष्टाचार, जातिवाद, संप्रदायवाद, जीवन का निम्न स्तर जैसी समस्याएँ फैली हुई हैं । हालांकि देश को राजनीतिक, आर्थिक एव भावनात्मक तौर पर एकीकृत और मजबूत करने में भारत ने बड़ी सफलता हासिल की है ।
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भारत की एकता के सामने कई चुनौतियाँ भी आईं लेकिन उन पर आमतौर पर विजय पा ली गई । स्वतंत्र भारत की धर्मनिरपेक्ष संघीय और बहुदलीय राजनीतिक प्रणाली का मजबूत होना बहुत बड़ी सफलता कही जा सकती है ।
लेकिन इस सफलता को प्राप्त करने में कई गंभीर नमस्याओं का सामना भी करना पड़ा है, जैसे-राजनीतिक व्यवस्था को गरीब नागरिकों की पखड़ी स्थिति प्रतिरक्षा के लिए तीन प्रमुख युद्ध और उस पर आने वाला भारी व्यय निरंतर अंतर्राष्ट्रीय दबाव में इसकी कई संस्थाओं का कभजोर होना इत्यादि ।
यह सब लोकतंत्र के उइद्धांत एवं व्यवहार में आवश्यक रूप में समरूपता न होने के कारण है । स्वतंत्रता के बाद भारत में शायद सबसे बड़ी उपलब्धि राजनीतिक जनतंत्र एवं नागरिक न्त्रतत्रता की जड़ों को दृढ़ता से जमाना है । यह भारतीय जीवन का एक मूलभूत पहलू बन गया है ।
भारतीयों को स्वतंत्र प्रेस बोलने एवं घूमने की आजादी संगठन की आजादी सरकार की खुलकर आलोचना करने का अधिकार राजनीतिक पार्टियों द्वारा निर्बाध कार्य, स्वतंत्र न्यायपालिका और राजनीति में भाग लेने के अधिकार मिले हुए हैं । इसके अलावा समय के साथ-साथ अधिकतर भारतीयों में जनतंत्र के प्रति समर्पण भाव बढ़ा है ।
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स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत की एक विशेषता रही है कि जनता की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक प्रक्रिया में हिस्सेदारी बड़ी है । आजादी के आदोलन ने पहले ही जनता के एक बड़े हिस्से का राजनीतिकरण कर दिया था । इसके बाद जन आदोलनों और चुनावी राजनीति से इसे और बल मिला ।
जनता अब मतदान के महत्व और उसकी शक्ति से परिचित हो चुकी थी । अब बूथों पर कब्जा करना वोटों की खरीद-बिक्री वोट बैंक और वोटों के लिए खुशामद जैसी चीजों का महत्व कम होता जा रहा है ।
अब वोटरों द्वारा चुनाव अधिक महत्वपूर्ण बन गया है । अब महिलाएँ भी मतदान में रुचि लेने लगी हैं ।
वह बिना किसी दबाव के अपने स्वतंत्र मतदान का प्रयोग कर रही हैं । आज मतदाता व्यापक स्तर पर सामाजिक आर्थिक एवं राजनीतिक अधिकारों के प्रति न केवल सचेत हो गए हैं बल्कि अपनी मांगों के प्रति अधिक जागरूक भी हो गए हैं । हाल के वर्षों में चुनावी नतीजों में बड़े स्तर पर परिवर्तन आया है ।
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गरीबों और वंचितों को आज तक राजनीतिक तौर पर लामबंद कर उनके पक्ष में सामाजिक एवं राजनीतिक परिवर्तन लाने में सफलता नहीं मिली है । पूँजीपति भूस्वामी वर्ग बुद्धिजीवी कामकाजी लोग इन सबने अपने हितों की रक्षा के उपाय खोज लिए हैं । लेकिन गरीब लोग ऐसा करने में असमर्थ रहे हैं ।
गरीब लोग चुनावों के समय इसी आशा से वोट डालते हैं कि चुने जाने वाले व्यक्ति उनकी स्थितियों को समझने का प्रयत्न करेंगे तथा उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करेंगे । लेकिन गरीबों के प्रश्न पर अभी भी कहीं अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है ।
आज भारतीय लोकतंत्र के पांच दशक पूरे हो जाने के बाद भी हमारे सामने गरीबी, भुखमरी बेरोजगारी निरक्षरता असमानता तथा सामाजिक पिछड़ेपन इत्यादि की समस्याएँ खड़ी हैं । हमें इन समस्याओं का निदान करना है ।
लोकतंत्र सच्चे अर्थ में विभिन्न शक्तियों के बीच एक संतुलन बनाए रखता है तथा साथ ही आत्मस्वार्थ तथा दूसरे के हितों के बीच अधिकारों एवं कर्त्तव्यों के बीच व्यक्तिगत आजादी तथा सजातीय बंधुओं के बीच एक सामंजस्य बरकरार रखता है ।