विस्तार बिंदु:
1. लगभग 25 प्रतिशत प्रतिभाएं विदेशों में बस जाना पसंद करती हैं ।
2. भारत के लिए आर्थिक एवं विकासात्मक, दोनों दृष्टियों से नुकसान ।
3. पलायन के लिए उत्तरदायी कारक ।
4. उदारीकरण का अल्पावधिक परिणाम बहुराष्ट्रीय कंपनियों के माध्यम से प्रतिभा का और भी पलायन होगा ।
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5. प्रतिभाओं की वापसी के क्या उपाय हैं ?……. जब तक उदारीकरण को ठीक से लागू नहीं किया जा सकता, इसके परिणाम बहुत सकारात्मक नहीं होंगे ।
6. दीर्घावधि में ही उदारीकरण प्रतिभा-पलायन को रोक सकेगा । ….प्रतिभा-पलायन के अन्य अल्पावधिक प्रयास भी अपेक्षित हैं ।
जो असामान्य रूप से प्रतिभासम्पन्न हैं और जिन्हें प्रतिष्ठित संस्थानों में अत्यंत उच्चस्तरीय एवं खर्चीली प्रणाली के द्वारा प्रशिक्षित किया जाता है, वे विदेशों में पलायन कर जाते हैं । भारत के प्रतिष्ठित
शिक्षण-संस्थानों, जैसे-आई.आई.टी. के कुल प्रतिभासम्पन्न छात्रों में से 25 प्रतिशत भारत से बाहर काम करने का निर्णय ले लेते हैं और सरकार का उन्हें रोकने का हर प्रयास असफल हो जाता है ।
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आर्थिक सुधारों के परिणामस्वरूप भारत विश्व-बाजार में सक्रिय भूमिका निभाने जा रहा है और यहां अनेक प्रतिष्ठित बहुराष्ट्रीय कंपनियों का प्रवेश भी हो रहा है । ऐसे में यह प्रश्न विचारणीय है कि, उदारीकरण का प्रतिभा-पलायन पर कैसा प्रभाव पड़ेगा ?
प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार बाहर काम करने का निर्णय लेने वालों में 30 प्रतिशत से 40 प्रतिशत अभियंता हैं, 10 से 15 प्रतिशत चिकित्सक हैं, 15 से 20 प्रतिशत वैज्ञानिक हैं और शेष सामाजिक विज्ञान, मानविकी और प्रबंधन से जुड़े हुए हैं ।
इनकी संख्या भारत में प्रतिवर्ष प्रशिक्षित प्रतिभाओं की कुल संख्या का एक छोटा-सा भाग ही है, परंतु भारत जैसे निर्धन देश के लिए यह चिंताजनक स्थिति है कि ‘प्रत्यक्ष विकास’ के कार्यक्रमों से अपने को रोककर राज्य उच्च शिक्षा पर इतना भारी व्यय करता है और प्रशिक्षण के बाद वे प्रतिभाएं देश की सेवा करने के बदले विदेशों में काम करना और बस जाना पसंद करती हैं ।
प्राय: पलायन करने वालों में अधिकांश सबसे प्रतिभाशाली होते हैं । इस प्रकार, देश को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से बहुत बड़ा वित्तीय घाटा होता है । प्रतिभा-पलायन अधिकांश विकासशील देशों की एक गंभीर समस्या है ।
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इन प्रतिभाओं से लाभान्वित होने वाले देश इन अप्रवासियों के मूल्य से भली-भांति परिचित होते हैं और इसलिए उनकी आव्रजन-नीति ऐसी होती है कि प्रतिभा-पलायन को पूरी गति मिलती है । इसके पीछे उद्देश्य
बिल्कुल स्पष्ट है कि विकास की इस विश्वव्यापी दौड़ में वही विजेता होगा, जिसके पास तकनीकी दक्षता प्राप्त जितनी अधिक प्रतिभाएं होंगी ।
इस प्रश्न पर विचार करने से पहले कि इस उदारीकरण द्वारा प्रतिभा-पलायन पर अंकुश लगेगा अथवा नहीं, प्रतिभा-पलायन के मूलभूत कारणों पर विचार करना अपेक्षित है । आई.आई.टी., बी.टेक. या एम.टेक. छात्र क्यों जाते हैं अमेरिका ?
इसे सिर्फ पश्चिम का आकर्षण नहीं कहा जा सकता-क्योंकि ये आस्ट्रेलिया, हांगकांग और सिंगापुर भी जाते हैं । यहां जो मुख्य वजह है, वह यह कि ‘यहां’ और ‘वहां’ के बीच अवसरों में भारी अंतर है । यदि कोई किसी अनुसंधान की गहराई में जाना चाहता है, तो इसके लिए अत्याधुनिक उच्च तकनीक युक्त औजारों की जरूरत होती है, जो या तो भारत में उपलब्ध नहीं होती और यदि होती भी है तो महंगी-फिर, उसकी मरम्मत आदि की समस्या अलग ।
अधिकांशत:, उच्च तकनीकी औजार आयातित होते हैं और भारत की आयात-नीति ऐसी है कि वैज्ञानिकों को अपना काम छोड़कर आयात-लाइसेंस के लिए लाइसेंस-कार्यालयों के चक्कर लगाने को बाध्य होना पड़ता
है ।
दूसरी तरफ, विकसित देशों में ऐसी अधःसंरचनात्मक व्यवस्था है कि इसकी कोई समस्या पैदा ही नहीं होती । इस तरह की सुविधाओं का बहुत महत्व है । फिर, विकसित देशों में बेहतर जीवन-स्तर और कार्यों के प्रति बेहतर सम्मान और बेहतर प्रतिक्रिया भी आकर्षण के प्रमुख कारण हैं । इस समस्या के कुछ सामाजिक कारक भी हैं ।
अक्सर देखा गया है कि इन युवाओं के प्रवजन के पीछे इनके अभिभावकों की भी भूमिका प्रमुख होती है, जो उन्हें विदेश जाने के लिए प्रेरित करते हैं । इसके पीछे अर्थलिप्सा तो होती ही है साथ ही विदेशों में काम करना एक तरह की सामाजिक प्रतिष्ठा का पैमाना भी हो गया है । क्या भारत की किसी कंपनी में काम कर रहा कोई युवक अपने घर प्रति माह 1000 डॉलर के बराबर राशि भेज सकता है ?
उदारीकरण एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रवेश से तत्काल प्रतिभा-पलायन में और वृद्धि ही होगी । इन कंपनियों के पास प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त पैसा है । ये लोग कुछ दिन अवश्य भारत में काम करेंगे, परंतु कालांतर में ये कंपनियां इन्हें विदेशों में पदस्थापित कर देंगी । यह मानव-संसाधन के स्थानांतरण की एक नई पद्धति है ।
विशेषकर यह उच्च तकनीक वाले क्षेत्र से सम्बद्ध प्रतिभाओं के लिए चिंताजनक है, जिसमें माइक्रो-इलेक्ट्रॉनिक एवं जैव-प्रौद्योगिकी प्रमुख हैं । वर्तमान व्यवस्था में इन विषयों की विकास के हर क्षेत्र में अत्यधिक आवश्यकता है, इसलिए हर समृद्ध देश ऐसी प्रतिभाओं की सेवा प्राप्त करने का प्रयास करेगा और इसमें वे किसी राष्ट्रीयता की परवाह नहीं करेंगे, यदि वे किसी भारतीय को सक्षम पाते हैं, तो उन्हें ‘खरीद’ लेंगे ।
उदारीकरण की प्रक्रिया के अंतर्गत भारत में कई नियंत्रण समाप्त कर दिए गए हैं, कई व्यापारिक मुद्दे आसान कर दिए गए हैं, परंतु उदारीकरण की भावना से न तो यहां के समाज को अवगत कराया गया है और न शासक-वर्ग स्वयं अच्छी तरह अवगत हुआ है ।
नौकरशाही उदारीकृत व्यवस्थाओं को लागू करने में लापरवाह दिखती है । लालफीताशाही भी पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है । समस्याओं पर काबू नहीं पाया जाता, उदारीकरण के द्वारा इस क्षेत्र में कुछ भी प्राप्त नहीं किया जा सकता ।
भारत में उद्योगों का आधुनिकीकरण प्रतिभा-पलायन को रोकने की दिशा में एक सार्थक कदम होगा, क्योंकि इससे उद्योगों में उच्च प्रतिभासम्पन्नों के लिए कई अवसर पैदा होंगे । सचमुच, उदारीकरण के इस दौर में भारतीय उद्योगों को या तो आधुनिक बनना होगा या विश्व-बाजार से लुप्त हो जाना होगा ।
हमारे यहां कार्य-संस्कृति पैदा करने और उसके लिए सुविधाएं प्रदान करने की भी बहुत आवश्यकता है । प्रयोगशालों को आधुनिक एवं समस्त सुविधाओं से युक्त बनाना होगा । हमारे सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों-भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर (BARC) को उच्च शिक्षण-संस्थानों से छात्रों को आकृष्ट करने का प्रयास करना चाहिए ।
उन्हें युवा-प्रतिभाओं को उसी तरह की पेशकश करनी चाहिए, जिस तरह की पेशकश बहुराष्ट्रीय कंपनियां करती हैं, विशेषकर, वेतनमान एवं सेवा-शर्तों के संदर्भ में । दीर्घावधि में उदारीकरण प्रतिभा-पलायन को रोकने का एक माध्यम हो सकता है, क्योंकि विश्वस्तर की प्रतिस्पर्द्धा बने रहने के लिए घरेलू उद्योगों एवं संस्थाओं को अपने स्तर में सुधार करना ही होगा और इसके लिए दक्ष प्रतिभाओं की सेवाएं ही अपेक्षित होंगी ।
फिर, सरकारी स्तर पर उच्च दक्षता प्राप्त अप्रवासी भारतीयों को भारत वापस लौटने के लिए तैयार करने की दिशा में प्रयास भी बड़े पैमाने पर करने चाहिए । खुशी की बात है कि इस तरह के प्रयास शुरू हुए हैं और इसके सुखद परिणाम भी आने लगे हैं ।