वेलेन्टाइन डे । “Valentine’s Day” in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. वेलेन्टाइन डे का महत्त्व ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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वेलेन्टाइन डे आधुनिक समाज का पर्व है । पिछले कुछ वर्षो से हमारे देश में वेलेन्टाइन डे बड़े ही रोचक, साहसपूर्ण अन्दाज से मनाया जा रहा है । किशोर नवयुवक-युवतियां अपने प्रेम का इजहार तरह-तरह के उपादानों से करते हैं ।
पश्चिम की भौतिकतावादी चकाचौंध से भरा हुआ यह दिन भारतीय सारकृतिक दृष्टि से मर्यादा से बाहर माना जाता है । प्रेम की भावना को अलग-अलग अन्दाज में प्रकट करने वाले प्रेमी-युगल जब सार्वजनिक स्थानों पर इसका प्रदर्शन करते हैं, तब हमारे देश में इसके विरोध का रबर तीव्र हो उठता है ।
वस्तुत: वेलेन्टाइन डे का प्रदर्शन हमारे देश में पश्चिमी अन्दाज से होने लगा है । भौतिकतावादी व्यावसायिक पश्चिमी संस्कृति का यह दिवस हमारी संस्कृति के अनुकूल नहीं है, तथापि 14 फरवरी को नवयुवक-नवयुवतियां इसे बड़े पैमाने पर मनाने लगे हैं ।
2. वेलेन्टाइन डे का महत्त्व:
यह दिवस पश्चिम के देशों में इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि तीसरी सदी में रोमन सम्राट क्लॉडियस द्वितीय ने युद्ध अभियानों के लिए नौजवानों को भेजा और उनके प्रेम एवं विवाह पर प्रतिबन्ध लगा दिया । यदि कोई इसका विरोध करता, तो क्लॉडियस उन्हें जेल में डाल देता था ।
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वहां से निकल भागने वाले युवक-युवती ईसाई सच वेलेन्टाइन की शरण में जाते थे । वेलेन्टाइन न केवल उनकी शादी करवा देते थे, वरन् उन्हें यह भी सिखाते थे कि प्रेम के साथ कैसे जीना चाहिए । कहा जाता है कि प्रेम के पुजारी इस सन्त को फांसी पर लटकवा दिया गया था ।
सन्त वेलेन्टाइन ने भी प्रेम के सागर में डूबते हुए जेलर की बेटी तक अपने प्रेम का सन्देश भेजा था । उस कार्ड में उन्होंने लिखा था: ”तुम्हारे वेलेन्टाइन की ओर से ।” सन्त वेलेन्टाइन ने युवकों को न तो अनैतिकता सिखलायी थी न ही विद्रोह ।
हमारे गायत्री मन्दिर, आर्यसमाज परिवार में जिस तरह शादियां होती थीं, वैसे ही वेलेन्टाइन ने करवायीं । सच वेलेन्टाइन के नाम पर पश्चिमी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अपने द्वारा निर्मित वस्तुएं साल बड़े दामों पर बेच रही हैं ।
प्रेम में पागल नवयुवक-युवतियां इस दिन अपनी जेब की परवाह नहीं करते । इसमें दिखावा व प्रदर्शन भी अधिक हो गया है । यद्यपि हमारी संस्कृति में वसंतोत्सव, रासलीला की परम्परा है, किन्तु प्रेम की ऐन्द्रिय अभिव्यक्ति यहां नहीं होती थी ।
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हमारे देश में आधुनिकतावाद की चकाचौंध से भरी पीढ़ी इसे अपना आदर्श मान रही है । प्रेम पर प्रतिबन्ध हटाने वाले वेलेन्टाइन ने निर्भीकता का सन्देश भी दिया था । यह निर्भीकता प्रेम-सम्बन्धों में होनी चाहिए । विवाह के बाद भी वे प्रेम के धागे से बंधे रहें । यह प्रेरणा वेलेन्टाइन ने दी थी । हमारे देश में इसका विरोध इसलिए भी है कि हमारी संस्कृति में पश्चिमी देशों की तरह खुलापन नहीं स्वीकारा जाता है ।
3. उपसंहार:
वस्तुत: ‘वेलेन्टाइन डे’ आज की युवा पीढ़ी को प्रेम में मनमानी करने की प्रेरणा दे रहा है, जो हमारे सांस्कृतिक परिवेश में उचित नहीं लगता । प्रेम की मर्यादापूर्ण अभिव्यक्ति ही इसकी विशेषता है, जहां किसी फूलों या उपहारों की जरूरत नहीं है । माना कि प्रेम जीवन का अपरिहार्य अंग है, तथापि पश्चिम की उनुक्तता व खुलापन इसमें स्वीकारा नहीं जाता है ।
जाति, कुल, गोत्र देखकर विवाह की बात करने वालों के लिए इसकी अभिव्यक्ति असह्य है । देखा जाये, तो उच्चवर्गीय सभ्यता का पर्व वेलेन्टाइन डे हो सकता है । हमारे जातिगत, सामाजिक परिवेश में इसको पूरी तरह से अपनाना कठिन है । जाति, धर्म के बन्धन से उठकर इसे मनाया जाकर विवाह के बन्धन में भी बांधने में सफल हो, तो इसका कुछ महत्त्व हो सकता है ।