पुस्तकालय की उपयोगिता एवं महत्त्व । “The Utility of a Library” in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. पुस्तकालय की उपयोगिता एवं आवश्यकता ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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व्यक्ति के चरित्र निर्माण में पुस्तकों का अभिन्न स्थान है । पुस्तकें जहां एकान्त में किसी शुभचिन्तक मित्र एवं मार्गदर्शक की भूमिका निभाती है, वहीं हमारे व्यक्तित्व को भी सन्तुलित करती हैं । बाल्यकाल के साथ ही व्यक्ति पुस्तकों के महत्त्व को समझने लगता है । मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञान-प्राप्ति की लालसा उसे पुस्तकों तक खींच लाती है ।
व्यक्ति यह समझने लगता है कि अच्छे भोजन के साथ-साथ अच्छी पुस्तकें भी उसके लिए जरूरी हैं । पुस्तकों की सहज प्राप्ति हेतु वह पुस्तकालय तक जाता है । ज्ञानराशि का अक्षय भण्डार पुस्तकें उसे ज्ञान-विज्ञान की विभिन्न शाखाओं एवं विधाओं से परिचित कराती हैं ।
वह कभी व्यक्तिगत पुस्तकालयों के माध्यम से, तो कभी सार्वजनिक पुस्तकालयों के माध्यम से अपनी आवश्यकता की पूर्ति करता है । शिक्षा संस्थानों से सुलभ होने वाली पुस्तकों को भी वह पढ़कर अपने लक्ष्य प्राप्ति की ओर अग्रसर होता है ।
2. पुस्तकालय की उपयोगिता एवं आवश्यकता:
पुस्तकालय चाहे शैक्षिक संस्थानों का हो या फिर सार्वजनिक स्थानों का, उसका महत्त्व एवं उपयोगिता तो शाश्वत है । हमारा देश भारत प्राचीनकाल से ही पुस्तकालयों का भण्डार रहा है । पुस्तकालय विषयक उसकी समृद्धि नालन्दा, तक्षशिला, विक्रमशिला, ओदन्त पुरी आदि विद्यालयों के माध्यम से भी मिलती है ।
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हमारे देश में वर्तमान में राष्ट्रीय पुस्तकालय भी है, जहां प्राचीन अन्यों की ऐतिहासिक दस्तावेजों सहित पाण्डुलिपियां संग्रहित हैं । कलकत्ता, दिल्ली, मुम्बई, बड़ौदा के राष्ट्रीय एवं राजकीय पुस्तकालयों में पुस्तकों का अक्षय भण्डार है, जिसका अध्ययन कर धनी, दरिद्र, बाल, वृद्ध, युवा सभी लाभान्वित होते हैं ।
ज्ञान वृद्धि एवं ज्ञान प्रकाश के स्थायी केन्द्रों के रूप में पुस्तकालयों की महत्ता एवं उपयोगिता अक्षुण्ण है । पुस्तकालय न केवल हमारी ज्ञान-पिपासा को शान्त करते हैं, वरन् हमारे व्यक्तित्व का निर्माण भी करते हैं । पुस्तकालय में जाकर जब हम महान पुरुषों, मनीषियों, कलाकारों, वैज्ञानिकों, राष्ट्रमक्तों के आदर्श एवं प्रेरणापरक चरित्र को पढ़ते हैं, तो हम उनसे प्रेरणा लेते हैं ।
हमारा बौद्धिक, मानसिक, चारित्रिक, नैतिक विकास भी होता है । समय के सदुपयोग एवं मनोरंजन के साधनों के रूप में पुस्तकालय की हमारे जीवन में काफी उपयोगिता है । पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से हमें देश-विदेश के समाचार मिलते हैं, वहीं हमारी आन्तरिक वृत्तियों का शोधन, परिष्करण भी होता है ।
पुस्तकें विश्वबसुत्च, मैत्री, सदभाव की भावना जगाने के साथ-साथ विश्व की सभ्यता, संस्कृति, साहित्य से भी परिचित कराती है । पुस्तकालयों की महत्ता एवं उपयोगिता को जानकर ही हमारे देश के नगर, महानगर, गांव-गांव में भी पुस्तकालय की व्यवस्था का प्रयास सरकार द्वारा किया जाता रहा है ।
3. उपसंहार:
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पुस्तकालयों की महत्ता, उपयोगिता एवं उसकी आवश्यकता अक्षुण्ण है । मानव के व्यक्तित्व के निर्माण में पुस्तकालयों की भूमिका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होती है । इसमें शैक्षिक संस्थान का पुस्तकालय हो या सार्वजनिक स्थान का हो या कि व्यक्तिगत हो ।
व्यक्तित्व निर्माण, ज्ञान-पिपासा की शान्ति, मनोरंजन, चित्तवृत्तियों का परिष्कार पुस्तकों द्वारा ही होता है । पुस्तकों के बिना तो मानव जीवन अधूरा ही होगा । पुस्तकें व्यक्तित्व निर्माण के साथ-साथ परिवार, समाज, देश की उन्नति में भी अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं । जिस देश का नागरिक सुशिक्षित, ज्ञान सम्पन्न होगा, वह देश निश्चित ही उन्नति की चरम सीमा को प्राप्त करेगा ।