वसंत ऋतु । “Spring Season” in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. वसंत ऋतु का आगमन ।
3. वसंत ऋतु फ्य महत्त्व ।
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4. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
ऋतुओं ल रानी वर्षा है, तो ऋतुओं का राजा है वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त एवं शिशिर के भिन्न स्वरूपों और सौन्दर्य के बीच ऋतुराज वसंत जिस मोहक मादक क सृष्टि करता है, वह मानो समा रस ल सृष्टि से तरंगित हो उठता है । वसंत की मोहक मादक मस्ती में प्रकृति मानो अपने जीवन का शार सजा बैठती है ।
बरन-बरन तरु फूले उपवन दल !
सोई त्त्वं क्तं दल स्थ्य है ।
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बंदी जिमि बोलत विरद-वीर कोकिल है,
गुंजत मधुप गान अ न्स्पे है ।
आवे आस-पास पुहुपन की सुवास सोई ।
सोने के सुगंधि माझ सने रहियतु है ।
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रीतिकालीन कवि देव तो डार दुम पालन बिछौना नव-पल्लव के कहकर प्रकृति रूपी माता द्वारा बालक वसंत के प्रति वात्सल्य भाव कराते हैं । वसंत ऋतु प्रेमीजनों के संयोग काल से सबसे मादक एवं सुखदायी है, तो वियोग काल में सर्वाधिक दुःखदायी है ।
पलाश के लाल-लाल पुष्प आग के अंगार की तरह दहकते हुए विरहञ्चि छ प्रकट करते हैं, तो शीतल मन्द सुगन्धित वायु आग की लपटों की तरह शरीर क्ते जलाती तुर्श प्रकट होती है । वसंत फ्य अघमन उस समय होता है, जब कंपकपा देनी वाली क्य विदा लेती है । वृक्षों छ पत्तों से विहीन क्व देने वाली पतझड़ ऋतु जब वृक्षों के सष्ट्रा पत्ते हर लेती है, तब नवपल्लवों का वस्त्र लेकर आ पहुंचता है-वसंत ऋतुराज ।
2. वसंत का आगमन:
वसंत का आगमन होते ही प्रकृति में रंग-बिरंगे फूलों की बहार-सी आ जाती है । वृक्ष की ठूंठों पर नवीन, कोमल कोंपलें रस से पूर्ण होकर खिल उठती हैं । रंग-बिरंगे फूलों की सुगन्ध से बोझिल होकर शीतल मन्द समीर सम्पूर्ण वातावरण में मादकता का संचार कर देती है ।
वसंत दूतिका कोयल आम की डालियों पर मधुर स्वर से कूकने लगती है । उसकी इस कुहू-कुहू के बीच फूलों पर मंडराते हुए भौरों की टोलियां गुन-गुन करती आ बैठती है और फूलों की प्यालियों से भरे हुए पराग का रसपान करने लगती है ।
वृक्ष की पत्रविहीन शाखाओं पर नवपल्लव दमकने लगते हैं, तो आम के बौरों से लदी स्वर्ण-रजत मंजरियों से भरी डालियां अपनी मादक गन्ध से सभी को बौरा देती हैं । नदियों और तालाबों में खिले हुए कमल अपना अनूठा सौन्दर्य लिये प्रकृति में शोभायमान होते हैं, तो खेतों में लहलहाती हुई पीली-पीली सरसों और पकी हुई सुनहरी फसलें धरती को मानो सोने की चमक से नहलाने लगती हैं ।
मखमली टेर-पलाश के फूल वसंत की मादकता के साथ रंगों के पर्व होली की मंगलमयी सूचना दे जाते हैं । प्रकृति की सर्वाधिक आकर्षक, रोचक, मादक वसंत ही है । इसका समय 22 फरवरी से 22 अप्रैल तक का होता है ।
भारतीय गणना के अनुसार इसका समय फालुन से वैसाख तक का होता है । वसंत में प्रकृति के सौन्दर्य का वर्णन ”हिन्दी” के कवियों ने विशेष रूप से किया है । कवि पद्माकर वसंत की सर्वव्यापकता एवं उसके सौन्दर्य का वर्णन करते हुए लिखते हैं:
कूलन में केलिन कछारन में
कुंजन में, क्यारिन में कलिन-कलिन किलकंत है ।
कहै पदमाकर परागन में, पौन हूं
में पंकत है, पानन में पीकन में पलासन ।
द्वार में दिसान में, चुनी में, देस-देसन में देखो !
दीप द्वीपन में दीपत दिगंत है ।
वीथिन में ब्रज में, नवेलिन में बेलिन में
वनन में बागन में बगरो वसंत है ।
यह प्रेम की प्रतीक ऋतु भी है । इस ऋतु गे पकी फसलों की मादक गन्ध और आम एवं बेरों की महक जिहवा को अद्भुत स्वाद देती है ।
3. वसंत का महत्त्व:
वसंत ऋतु का जहां अपना प्राकृतिक महत्त्व है, वहीं उसका धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व भी है । मां सरस्वती एवं गुरुओं की आराधना के साथ प्रारम्भ होने वाला यह त्योहार वसंतोत्सव के रूप में अत्यन्त ही हर्ष और उल्लास से मनाया जाता है ।
प्राचीनकाल में वसंत ऋतु की चांदनी रातों में विशेषत: वसंत ऋतु की पंचमी तिथि से लेकर पूर्णमासी तक वसंतमहोत्सव राजसी ठाठ-बाट से मनाया जाता था । राजा, सामंत, राजकुमार, राजकुमारियां पीले वस्त्रों में सज- धजकर यह उत्सव मनाते थे ।
शरीर में मस्ती एवं मादकता का संचार करने वाला यह पर्व रंगों के त्योहार होली के उल्लास का सन्देशा लाता है । होली के रंगों एवं वसंत की मादकता में झूमता मानव-समाज अन्न की पकी हुई बालियों के साथ झूम-झूम उठता है ।
होली के साथ-साथ रामनवमी का पर्व भी इस में मनाया जाता है । यह ऋतु स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यन्त लाभप्रद है । शीतल मन्द सुगन्धित बहने वाली पवन शरीर और मन को स्फूर्ति से भर देती है । पकी हुई सुनहरी फसलें प्रकृति की श्रीवृद्धि एवं सम्पन्नता के वैभव का गुणगान करती हैं ।
होली के पर्व के माध्यम से एकता और भाईचारे का सन्देश मिलता है । वहीं वसंत पंचमी में ज्ञानदेव मां सरस्वती की आराधना की जाती है । ज्ञान का वरदान पाकर मानव समाज अपनी विवेक बुद्धि से सृजनात्मकता की ओर प्रेरित हो उठता है । पौराणिक दृष्टि से वसंत नव-नवेली दुल्हन की तरह सजी-संवरी प्रकृति, मानो सभी के जीवन में नवीनता, कोमलता और सौन्दर्य का संचार कर देती है ।
4. उपसंहार:
वसंत ऋतु का प्रकृति में जहां अपना विशिष्ट स्थान, महत्त्व और प्रभाव है, वहीं सारकृतिक दृष्टि से भी यह ऋतु अपने महत्त्व एवं गौरव को प्रतिपादित करती है । प्रकृति के यौवन एवं शृंगार की ऋतु है । वसंत जन-जीवन में मादकता एवं मस्ती का संचार करने वाली ऋतु है । विद्या और ज्ञान की देवी की अभ्यर्थना की ऋतु है-वसंत । समस्त ऋतुओं का राजा कहलाता है-ऋतुराज वसंत । इसीलिए कविवर निरालाजी ने कहा है:
सखि वसंत आया ।
भरा हर्ष वन के मन
नवोत्कर्ष छाया
किसलयवसना नववय-लतिका
मिली मधुर प्रिय उर तरू पतिका ।
मधुप वृंद वंदी पिक स्वर नभ सरसाया
सखि वसंत आया ।।