हिन्दी के कुछ विशेषवाद । “Some Specialties of Hindi” in Hindi Language!
कुछ विशेषवाद:
हालावाद:
प्रगतिवादी काव्य चेतना के समान्तर हिन्दी में एक और वाद की तरंग उठी, जिसे हालावाद के नाम से जाना जाता है । हालावाद का कवि, भविष्य की चिन्ता भुलाकर वर्तमान को सत्य मानता है । वह परलोक की परवाह न कर इस लोक में डूब जाना चाहता है ।
संक्षेप में इसकी विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
1. हालावाद, प्रेम और मस्ती का काव्य ।
2. यह लौकिक प्रेम को अधिक महत्त्व देता है ।
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3. वह प्रेम की अनुभूति और उसकी मदिरा में डूब जाना चाहता है ।
4. हालावादी रचनाएं भाषा की मधुरता की दृष्टि से विशेष प्रभावी रही हैं ।
5. यह निराशावादी एवं पलायनवादी हैं ।
हालावादी कवि:
हरिवंशराय बच्चन मधुकलश, मधुशाला, मधुबाला, निशा-आमन्त्रण ।
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रहस्यवाद:
1. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में: ”चिन्तन के क्षेत्र में जो अद्वैतवाद है, भावना के क्षेत्र में वही रहस्यवाद है ।”
2. नन्द दुलारे बाजपेयी: ”किसी परम परोक्ष सत्ता की अनुभूति अथवा उससे मिलने की भावना के गीत रहस्यवाद है ।”
3. डॉ॰ श्यामसुन्दर दास: ”चिन्तन के क्षेत्र का ब्रह्मवाद कविता के क्षेत्र में जाकर कल्पना और भाबुकता का आधार पाकर रहस्यवाद का रूप पकड़ता है ।”
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4. डॉ॰ रामकुमार वर्मा: ‘रहस्यवाद जीवात्मा की उस अन्तर्निहित प्रवृत्ति का प्रकाशन है, जिसमें वह दिव्य और अलौकिक शक्ति के साथ अपना सम्बन्ध स्थापित करता है ।’
रहस्यवाद की विषेशताएं:
1. अलौकिक सत्ता के प्रति प्रेम की तीव्रता ।
2. परमात्मा से विरह-मिलन का भाव ।
3. जिज्ञासा का भाव ।
4. आत्मा का परमात्मा से एक्य ।
5. प्रतीकों का प्रयोग ।
रहस्यवाद और छायावाद में अन्तर:
रहस्यवाद:
1. इसमें चिन्तन की प्रधानता होती है ।
2. रहस्यवाद ज्ञान प्रधान होता है ।
3. यह दार्शनिकता पर आधारित है ।
4. अज्ञात सत्ता के प्रति प्रणयानुभूति ।
छायावाद:
1. इसमें कल्पना की प्रधानता होती है ।
2. यह भावना प्रधान है ।
3. यह प्रकृति मूलक है ।
4. अज्ञात सत्ता के प्रति प्रणय भाव है ।
रहस्यवादी कवि:
1. कबीर – बीजक ।
2. जायसी – पदमावत ।
3. महादेवी वर्मा – नीरजा, निहार, दीपशिखा ।