रीतिकाल । “Riti Kal” in Hindi Language!
रीतिकाल की प्रमुख काव्य प्रवृत्तियां (1700-1900)
रीतिकाल:
हिन्दी साहित्य के मध्ययुग के उत्तरा (बाद का) काल है । रीति की प्रधानता के कारण इसे रीतिकाल के नाम से जाना जाता है । रीति शब्द का प्रचलित अर्थ है-काव्य की प्रणाली, पद्धति या शैली ।
चूंकि इस काल में अलंकार तथा शृंगार रस की प्रधानता थी, अतएव कुछ विद्वानों ने इसे अलंकार काल तथा कुछ ने शृंगार काल का नाम भी दिया है । संक्षेप में रीतिकाल की कुछ सामान्य प्रवृत्तियों या विशेषताओं का वर्णन दिया जा रहा है, जो निम्न बिन्दुओं में उल्लेखित है:
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1. रीति का प्रयोग: इस काल के कवियों ने अपने काव्य की एक विशेष परम्परा एवं रीति को अपनाया, जिसमें अलंकार, नायिका भेद, सौन्दर्य वर्णन, लौकिक शृंगार प्रयुक्त है ।
2. पाण्डित्य का प्रदर्शन: रीतिकालीन कवियों ने अपने पाण्डित्य का प्रदर्शन करने के लिए कविताएं लिखीं । केशवदासजी को तो ”कठिन काव्य का प्रेत” कहा जाता है ।
3. नायक और नायिक भेद: रीतिकालीन कवियों ने नायक तथा नायिका भेद को आधार बनाकर उनमें प्रेम और सौन्दर्य का चित्रण किया है । नायिका के प्रकारों में-मुग्धा, मानिनी नायिका है, तो नायक के भेद में शठ, धूर्त नायक है ।
4. नायक और नायिका की प्रेमपूर्ण चेष्टाओं का शृंगारिक वर्णन: रीतिकालीन कवियों ने अपनी रचनाओं में राधा और कृष्ण के स्मरण के बहाने नायक और नायिकाओं की प्रेमपूर्ण चेष्टाओं का अति शृंगारिक वर्णन किया है ।
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5. अश्लील वर्णन: रीतिकालीन कवियों ने शृंगार रस के चित्रण में कई अश्लील वर्णन भी किये हैं ।
6. अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन: रीतिकालीन कवियों ने नायिका के सौन्दर्य वर्णन से लेकर विरह वर्णन तक में अतिशयोक्ति का प्रयोग कर डाला ।
7. अलंकारों की प्रधानता: रीतिकालीन रचनाओं में अलंकारों की इतनी अधिक प्रधानता हो गयी है कि वे अलंकारों के बोझ से दब गयी हैं ।
8. छन्दों का प्रयोग: छन्दों के अधिक प्रयोग ने रीतिकालीन कविता को अत्यन्त कठिन बना डाला ।
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9. नारी के प्रति भोगवादी दृष्टिकोण: रीतिकाल की अधिकांश रचनाओं में नारी के प्रति भोगवादी दृष्टिकोण मिलता है ।
10. जनसाधारण की उपेक्षा: रीतिकालीन कवि नायक और नायिकाओं के प्रेम-प्रसंगों के वर्णन में इतने डूबे रहे कि उन्होंने उस समय की जनता की समस्याओं का कोई चित्रण नहीं किया ।
11. आश्रयदाता राजाओं की भावनाओं को विशेष महत्त्व: रीतिकालीन कवियों ने अपने आश्रयदाताओं की बडाई न केवल अपनी रचनाओं में की, वरन उनकी इच्छा को ध्यान में रखते हुए ही कविताएं लिखीं ।
12. प्रकृति वर्णन: रीतिकालीन कवियों ने प्रकृति के कई सुन्दर चित्र खींचे हैं । प्रकृति चित्रण में सेनापति विशेष कवि के रूप में प्रशंसनीय रहे हैं ।
13. मुक्तक शैली का प्रयोग: रीतिकालीन कवियों ने अपनी रचनाओं के लिए मुक्तक काव्यशैली को विशेषत: अपनाया है ।
14. ब्रजभाषा का प्रयोग: रीतिकालीन कवियों ने अपनी काव्य रचनाओं के लिए ब्रजभाषा को ही अपनाया है ।
15. शृंगार के दोनों पक्षों का चमत्कारपूर्ण चित्रण: रीतिकालीन कवियों ने शृंगार के दोनों पक्षों-संयोग एवं वियोग-का चमत्कारपूर्ण चित्रण किया है ।
रीतिकाल की काव्य धाराएं:
रीतिकाल काव्य धाराएं तीन भागों में विभाजित रही हैं: 1. रीतिबद्ध, 2. रीतिसिद्ध और 3. रीतिमुक्त ।
1. रीतिबद्ध काव्य धारा: रीतिबद्ध काव्य धारा उस काव्य धारा को कहा गया है, जिसके कवियों ने संस्कृत काव्य शास्त्र के नियमों के अनुसार न केवल कविताएं लिखीं, वरन् एक बंधी-बंधायी परिपाटी को चुना । रीतिबद्ध प्रमुख कवि हैं-सेनापति, रसनिधि ।
2. रीतिसिद्ध काव्य धारा: इस काव्य धारा के कुछ कवि ऐसे हैं, जिन्होंने मानव मन की उनुक्त भावनाओं और जीवन के विविध पक्षों का चित्रण किया । प्रमुख कवि-बिहारी, वृन्द, मतिराम, बैनी ।
3. रीतिमुक्त काव्य धारा: रीतिमुक्त काव्य धारा के ऐसे कवि हैं, जिन्होंने रीति से हटकर काव्य रचना की है । हस धारा के कवियों ने रीति-नियमों का पूर्ण त्याग किया । प्रमुख कवि-धनानन्द, आलम, ठाकुर, बोधा ।
रीतिकालीन प्रमुख कवि:
1. बिहारी – बिहारी सतसई ।
2. मतिराम – रसराज, ललित ललाम, सतसई ।
3. भूषण – शिवराज भूषण, शिवाबावनी, छत्रसाल दशक ।
4 देव – भाव विलास, भवानी विलास, रस विलास, राधिका विलास, प्रेम चन्द्रिका ।
5, पदमाकर – जगत विनोद, गंगा लहरी, प्रबाध पचासा ।
6. घनानन्द – सुजानहित, वियोग बेलि, इश्क लता ।
7. सेनापति – काव्य कल्प दुम, कवित्व, रत्नाकर ।