Read this article in Hindi to learn about the resettlement and rehabilitation of people.
बाँध, खदान, सड़क या रेल लाइन जैसी कोई भी बड़ी परियोजना या किसी राष्ट्रीय पार्क की अधिसूचना उस क्षेत्र के निवासियों के जीवन में विघ्न डालती है तथा अकसर उन्हें कहीं और बसाना आवश्यक होता है । हममें से कोई भी अपना घर छोड़ना नहीं चाहेगा । लोगों को विस्थापित करना एक गंभीर मुद्दा है । इससे उनकी परंपरागत प्राकृतिक साधनों पर निर्वाह की क्षमता कम होती है और उन पर भारी मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ते हैं ।
आदिवासी जनता के लिए, जिसका जीवन उसके अपने प्राकृतिक संसाधनों से गहराई से जुड़ा होता है, नई जगह पर नए ढंग के जीवन से तालमेल बिठाना और भी मुश्किल होता है । इसलिए स्थानीय जनता की सहमति के बिना कोई ऐसी बड़ी परियोजना लागू नहीं की जा सकती जिससे जनता का विस्थापन हो । स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में हरित क्रांति संभव बनाने के लिए हजारों बाँधों का निर्माण हुआ जिसके कारण लाखों लोग मनमाने ढंग से विस्थापित किए गए ।
ये बाँध लगभग पूरी तरह इन्हीं गरीब स्थानीय लोगों की कीमत पर बनाए गए जिनमें सरकार की मर्जी का प्रतिरोध करने को शक्ति नहीं थी । इन विस्थापित लोगों द्वारा सरकार से पुनर्वास के लिए एक उपयुक्त पैकेज तथा अच्छी, ‘खेती योग्य’ जमीनें पाने की आशा की जाती रही है लेकिन शायद ही कभी ऐसा हुआ हो कि उन्हें जो मिला वह उनके आशानुरूप हो । देशभर में अनेक ऐसी मिसालें हैं जिनमें दशकों तक पुनर्वासकार्य संतोषजनक ढंग से नहीं हो पाया ।
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पुनर्वास के लिए वैकल्पिक भूमि चाहिए । लेकिन हमारे भारी आबादी वाले देश में खेती योग्य उम्दा भूमि आसानी से उपलब्ध नहीं है । इसलिए अधिकांश प्रभावित व्यक्तियों को बिना किसी काम की बंजर जमीनें दे दी जाती हैं । पुनर्वास का अर्थ सिर्फ जमीन देने से बढ़कर भी कुछ है ।
अधिकांश मामलों में यह बुनियादी काम भी ढंग से नहीं किया गया है । अपनी कीमती जमीन बचाने की सबसे बड़ी लड़ाई नर्मदा घाटी के लोगों ने लड़ी है । अपनी जमीन बचाने के लिए वे दशकों तक लड़ते रहे हैं । ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ ने दिखाया है कि इस सवाल पर लोगों में कितनी कड़वाहट भर सकती है ।
पुनर्वास प्रभावित जनता पर ही दबाव ही नहीं डालता बल्कि पुनर्वास के लिए चुने गए क्षेत्र की जनता पर भी दबाव डालता है । इस तरह दोनों समुदाय पीड़ित होते हैं और भविष्य में संसाधनों को लेकर टकराव संभावित है ।
लेकिन ऐसी स्थितियाँ भी आती हैं जब समुदाय खुद ही किसी जगह बसाए जाने की प्रार्थना करते हैं । राष्ट्रीय पार्क या अभयारण्य के अंदर या उसकी सीमा पर बसे लोगों के बारे में अकसर ऐसा देखा जाता है । गुजरात में गिर वन्यजीवन अभयारण्य के पास बसे स्थानीय जनता ने वैकल्पिक भूमि दिए जाने की माँग की जहाँ वे अपने मवेशियों को मारनेवाले शेरों से दूर, शांति के साथ रह सकें । लेकिन सरकार दशकों से ऐसे उपयुक्त क्षेत्र पाने में असमर्थ रही है जहाँ उनको भेजा जा सके ।