असली गुटनिरपेक्षता । “Real Non-Alignment” in Hindi Language!
विश्व राजनीति में भारतीय दृष्टिकोण मुख्यतया गुटनिरपेक्षता का रहा है । इसे भारतीय विदेश नीति का सार तत्त्व कहा जाता है । जनता पार्टी के घोषणा-पत्र में ‘असली गुटनिरपेक्षता’ की बात कही गई थी । मोरारजी देसाई का कहना था कि इंदिरा गाँधी के जमाने में विदेश नीति एक तरफ झुक गई थी । इस झुकाव को दूर करना ही असली गुटनिरपेक्षता है ।
तक के विदेश मंत्री वाजपेयी के शब्दों में, ‘भारत को न केवल गुटनिरपेक्ष रहना चाहिए बल्कि वैसा दिखाई भी पड़ना चाहिए ।’ उनके अनुसार, असंलग्नता का मतलब है कि सर्व-संलग्नता अर्थात् सबके साथ जुड़ना, सबके साथ गठबंधन करना ।
जनता सरकार ने सोवियत संघ तथा अमेरिका के साथ अपने संबंधों को काफी दक्षतापूर्ण ढंग से निभाया और श्रीमती इंदिरा गाँधी के आखिरी दिनों में सोवियत संघ के प्रति दिखने वाले झुकाव को ठीक करने का प्रयत्न किया, किंतु इसका मतलब यह नहीं कि जनता सरकार ने सोवियत संघ के साथ रिश्ते बिगाड़ लिए या अमेरिका के साथ ‘नया अध्याय’ शुरू कर दिया ।
1980 के बाद गुटनिरपेक्षता:
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जनवरी 1980 में जब श्रीमती गाँधी को पुन: भारत के प्रधानमंत्री का पद सँभालने का अवसर मिला तो भारत की विदेश नीति में जो गति आई उसका प्रभाव सर्वत्र प्रकट होने लगा । न्यूयॉर्क में 1980 के अंतिम दिनों में भारत ने असंलग्न गुट के मध्य बहुत सक्रिय होकर प्रधानमंत्रियों एवं विदेश मंत्रियों को आपस में विचार-विमर्श करते हेतु प्रेरित किया एवं उसने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में गिरते हुए मूल्यों को पुनर्स्थापित करने का अनुरोध किया ।
1981 में भारत ने 98 असंलग्न राष्ट्रों के विदेश मंत्रियों का सम्मेलन नई दिल्ली में बुलाकर अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के प्रमुख बिंदुओं पर विचार-विमर्श करने का महत्वपूर्ण अवसर उपलब्ध कराया । भारत ने 77 देशों के समूह के अध्यक्ष के रूप में अन्य राष्ट्रों के सहयोग से 1980 से लगातार इस बात का प्रयास किया है कि विश्व के आर्थिक क्षेत्र में व्याप्त संरचनात्मक एवं मौलिक असंतुलन के अभिशाप को अविलम्ब दूर किया जाए ।
मार्च 1983 में नई दिल्ली में निर्गुट देशों का सातवीं शिखर सम्मेलन आयोजित करके भारत विश्व स्तर पर निर्गुट आंदोलन का प्रमुख प्रवक्ता बन गया । इस सम्मेलन में 101 राष्ट्रों ने भाग लिया और उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी को अगले तीन वर्ष के लिए निर्गुट आंदोलन का अध्यक्ष निर्वाचित किया ।
श्रीमती इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद युवा प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी गुटनिरपेक्ष आंदोलन के लगभग एक वर्ष तक अध्यक्ष रहे । संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय में गुटनिरपेक्ष देशों के तैयारी सत्र में अध्यक्ष के नाते राजीव गाँधी का भाषण निर्गुट आंदोलन की विश्व-शांति की दिशा में दिलचस्पी को उजागर करता है ।
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बेलग्रेड में आयोजित निर्गुट शिखर सम्मेलन में भारत के दृष्टिकोण को सभी प्रमुख घोषणाओं में विशेष महत्त्व दिया गया । भारत के प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने जो भी प्रस्ताव रखे, गुटनिरपेक्ष आंदोलन के शिखर सम्मेलन ने उन्हें यथा रूप में स्वीकार कर दिया ।
राजीव गाँधी ने दक्षिण-दक्षिण सहयोग को अधिक ठोस रूप देने की आवश्यकता बतलाई । जकार्ता गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने का सदस्य देशो से आह्वान किया जिसके फलस्वरूप सम्मेलन की अंतिम घोषणा में आतंकवाद विशेषकर किसी देश द्वारा समर्पित आतंकवाद की कड़ी निंदा की गई ।
कार्टगेना में आयोजित 11 वें निर्गुट शिखर सम्मेलन में भारत की पहल पर सम्मेलन की घोषणा में आतंकवादी कार्यवाहियों की दो टूक शब्दों में निंदा की गई । आर्थिक असंतुलन को दूर करने की माँग करते हुए भारत के प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राय ने शिखर सम्मेलन में कहा कि विकसित धनी देश निर्गुट राष्ट्रों को अधिक ऋण उपलब्ध कराएँ तथा व्यापार के क्षेत्र में और अधिक सुविधाएँ प्रदान करें ।
भारत ने सितम्बर, 1998 में डरबन में आयोजित 12 वें गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन में सक्रिय रूप से भाग लिया । भारत के नाभिकीय परीक्षणों का खुलासा करते हुए प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने नाभिकीय हथियार संपन्न राज्यों से अनुरोध किया कि वे नाभिकीय हथियार अभिसमय पर बातचीत करने के लिए गुटनिरपेक्ष आंदोलन के साथ शामिल हों ।