Read this article in Hindi to learn about rainwater harvesting and watershed management.
वर्षाजल संचय (Rainwater Harvesting):
अब जबकि दुनिया जल की भारी कमी का सामना कर रही है, पानी की हर बूँद का सही ढंग से इस्तेमाल करना मूलभूत आवश्यकता बन गई है । वर्षाजल का इस तरह प्रबंध करना कि स्रोत पर उसका उपयोग हो सके वर्षाजल के इष्टतम उपयोग का एक तरीका है । पानी का अगर यथासंभव संग्रह किया जाए तो वर्षाकाल के बाद उसका उपयोग किया जा सकता है ।
दुनिया के अनेक भागों में, खासकर बहुत शुष्क क्षेत्रों में, यही परंपरागत ढंग रहा है । पर संचित जल को प्रदूषण से मुक्त और साफ रखना आवश्यक है ताकि पेय जल के रूप में उसका उपयोग हो सके । संचित जल में शैवाल और सूक्ष्मप्राणी पैदा हो सकते हैं । इससे रोग और संक्रमण हो सकता हैं । इसलिए जल को अप्रदूषित रखना बहुत महत्त्वपूर्ण है ।
वर्षाजल संचय की मौजूदा तकनीक यह है कि छतों और छज्जों के सारे पानी को एक बंद टंकी में भेज दिया जाता है ताकि वहाँ मानसून के बाद उपयोग के लिए वह जमा रहे । यह विधि सबसे अधिक लाभकारी शुष्क क्षेत्रों में है जहाँ साफ पानी दुर्लभ होता है । लेकिन भंडारण की बड़ी टंकियों का र्निमाण काफी महँगा है और इसमें व्यावहारिक समस्याएँ भी हैं ।
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छतों के वर्षाजल के संचय का एक और उपाय उसे इस तरह जमा करना है कि वह जमीन पर बहकर नदियों में जाने की बजाय भूमि पर रिसकर कुओं में जाए । इस तरह छतों से प्राप्त जल से भूमिगत जल की भरपाई करने पर भूमिगत जल-स्तर बढ़ता है और आसपास के कुओं में साल भर पानी बना रहता है ।
जलविभाजक प्रबंध (Watershed Management):
नदियाँ पहाड़ों की ढलानों पर बहने वाले नालों से जन्म लेती हैं । पहाड़ों से अनेक छोटे नाले बहकर वादी के नालों में मिल जाते हैं जो प्रमुख नदियों के सहायक बन जाते हैं । भूमि की किसी एक इकाई और उसकी जलनिकास व्यवस्था का प्रबंध जलविभाजक या जलबाधा या जलरुकावट प्रबंध (watershed management) कहलाता है । इस तकनीक के अनेक घटक होते हैं ।
इसमें मिट्टी और पानी का प्रबंध तथा वानस्पतिक आवरण का विकास शामिल है । एक जलविभाजक इकाई की जलनिकास प्रणाली का सही-सही प्रबंध किया जाए तो वह सालभर जल की आपूर्ति करके स्थानीय स्तर पर समृद्धि लाती है और इस तरह उस क्षेत्र में जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाती है ।
चूँकि इससे साफ जल सालभर उपलब्ध होता है इसलिए इससे समुदाय के स्वास्थ्य में सुधार आता है । जलविभाजक प्रबंध खेतिहर फसलों की वृद्धि में सुधार लाता है और इससे सूखे क्षेत्रों में साल में एक से अधिक फसलों की खेती भी संभव हो पाती है ।
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जलविभाजक प्रबंध का आरंभ स्थानीय भागीदारी के साथ एक ह्रासग्रस्त भूमि पर नियंत्रण पाने के साथ होता है । लोगों को अपने क्षेत्र में जल की मात्रा और गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता समझ में आनी चाहिए । एक बार यह बात व्यवहार में दिख जाए तो समुदाय परियोजना को समझने लगता है तथा लोग अच्छे जलविभाजक प्रबंध को बढ़ावा देने के लिए मिलकर काम करते हैं ।
मृदा संरक्षण के समुचित उपाय अपनाना पहला तकनीकी कदम है । यह काम पहाड़ी के साथ-साथ लंबे गड्ढों और टीलों की एक शृंखला बनाकर किया जाता है ताकि वर्षाजल रुके और रिसकर जमीन में जाए । इससे जल के भूमिगत भंडार का पूरा भराव सुनिश्चित होता है ।
घास, झाड़ और पेड़ (मुख्यतः स्थानीय प्रजातियों के पेड़) लगाने से यह प्रक्रिया और बढ़ती है क्योंकि ये मिट्टी को जकड़े रहते हैं और मानसून में उसे कटकर बहने से बचाते हैं । लेकिन घास का स्थानीय आवरण तभी बढ़ सकता है जब पालतू पशुओं की खुली चराई पर नियंत्रण किया जाए या उन्हें थान पर चारा खिलाया जाए ।
अगला कदम नालों में रोक खड़ी करने का है ताकि जल नाले में रहे और पहाड़ी से बहकर नीचे न चली जाए । चुनिंदा स्थलों पर अनेक छोटे-छोटे रोकबाँध बनाए जाते हैं जो जल को रोककर रखते हैं । ये सभी उपाय उम्दा जलविभाजक प्रबंध के अंग हैं । इससे जल का स्तर बढ़ता है तथा नालों और जलधाराओं मे सालभर प्रवाह बना रहता है ।
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