मनोविश्लेषणवाद । “Psychoanalysis” in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. मनोविश्लेषणवाद की प्रमुख विशेषताएं ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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मनोविश्लेषणवाद मानव मन के विश्लेषण करने की एक मनोवैज्ञानिक पद्धति है, जिसका जन्मदाता वियना का मस्तिष्क चिकित्सक सिग्मंड फ्रायड था । एडलर और युग ने भी इस वाद पर अपने महत्त्वपूर्ण विचार व्यक्त किये हैं ।
उन्होंने सम्मोहन अवस्था को मनुष्य के अचेतन तक पहुंचने का सहज साधन माना है । भुलाई हुए इच्छाएं और दमित इच्छाएं दोनों ही मानसिक विकृति के कारण हैं । मनोविश्लेषणवाद की प्रमुख पुस्तक है: “एन आउट लाइन ऑफ सायकोएनालेसिस” ।
2. मनोविश्लेषणवाद की विशेषताएं:
फ्रायड ने जीवविज्ञान और मनोविज्ञान के आधार पर मनोविश्लेषणवाद की निम्नलिखित विशेषताएं बतायी हैं:
(क) मानव व्यक्तित्व की तीन प्रमुख वृत्तियां: फ्रायड ने मानव व्यक्तित्व के तीन तत्त्वों में इदम्, अहम्, अति अहम् को स्वीकार किया है । इदम् में व्यक्ति सुख सिद्धान्त को महत्त्व देता है । अहम् में वह अपने परितोष के लिए मार्ग निर्धारित करता है ।
अति अहम् व्यक्ति के इदम् और अहम् पर नियन्त्रण रखता है । वह नैतिक, सांस्कृतिक, मूल्यों व आदर्शो को महत्त्व देता है । इन तीनों का सन्तुलन मानव का सही रूप है, जबकि असन्तुलन विकार का कारण बनता है ।
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(ख) मानवीय संवेग: जो तत्त्व मानव की वृत्तियों को उत्तेजित करते हैं, वे संवेग कहलाते हैं, जबकि व्यक्ति अपने संवेगों और लक्ष्य की पूर्ति में अहम्, अति अहम् को बाधक समझाता है, तो उसका तनाव बढ़ता है ।
इन मानवीय संवेगों की पूर्ति होने पर वह सहज स्थिति में अपने आपको पाता है ।
(ग) चेतन-अचेतन तथा अर्द्धचेतन: फ्रायड ने मानव मन की भावनाओं और उत्तेजित मन को तीन स्तरों पर बांटा है: 1. चेतन मन, 2. अवचेतन मन और 3. अर्द्धचेतन मन ।
हृदय के अधिकांश सूक्ष्म अंग अचेतन मन में घनीभूत होते हैं, अर्थात मनुष्य की अधिकांश भावनाएं एवं मनोविकार अचेतन में ही दबे रह जाते हैं । इस तरह अचेतन मन मनुष्य की इन सभी भावनाओं को सुरक्षित रखने वाला केन्द्र होता है ।
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(घ) काम का सिद्धान्त: फ्रायड के मनोविश्लेषण का सर्वाधिक महत्वपूर्ण सिद्धान्त काम सिद्धान्त है । उन्होंने जीवन की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण एवं प्रबल शक्ति काम को ही माना है । इसका नामकरण ‘लिबिडो’ किया
है । उन्होंने काम वासनाओं के विकास को चार प्रकार से बताया है: मुखगत, गुदागत, लैगिक, जनेन्द्रिगत ।
इडिपस काम्पलेक्स में विषमलिंगी के प्रति आकर्षण एवं ईर्ष्या की भावना जागती है, जिसकी पूर्ति न होने पर अहम्, अति अहम् में उपस्थित होती है । जब इच्छाएं दमित होती है, तो यह अचेतन में जाकर एकत्रित हो जाती हैं, जो स्वप्न के रूप में फूटती हैं ।
जब ये अधिक प्रबल हो जाती हैं, तो हिस्टीरिया आदि का प्रभाव दिखता है । व्यक्ति अपराधी और दुराचारी भी बन जाता है । जब यह उदात्त रूप में फूटती हैं, तो कला, साहित्य और धर्म का रूप धारण करती हैं ।
युग ने काम को मानव जीवन की मूल प्रवृत्ति के साथ-साथ उसे एक प्रेरणादायक शक्ति माना है, जो व्यक्ति को अन्तर्मुखी और बहिर्मुखी बनाती है । एडलर ने काम को जीवन का मूल केन्द्र न मानकर उसे सामाजिक शक्तियों की महत्ता के रूप में स्वीकार किया है, जिसमें अहम् को भी महत्त्व दिया है ।
एडलर नेर मनुष्य को श्रेष्ठत्व प्राप्त करने का प्रयास इसी शक्ति के माध्यम से दिया है । एडलर ने हीन भावना के विकास को समझाते हुए यह कहा कि जब आदमी स्वयं को दूसरों से हेय अनुभव करता है, तो अक्षमता से व्यक्ति का अहम् आहत हो जाता है और वह श्रेष्ठत्व प्राप्त करने की कोशिश करता है ।
3. उपसंहार:
मनोविश्लेषणवाद फ्रायड, युग, एडलर द्वारा प्रतिपादित ऐसा वाद है, जिसका आधार जैविक तथा मनोवैज्ञानिक है । फ्रायड ने मानव मन के मनोविज्ञान के आधार पर इस वाद की विस्तृत व्याख्या की है । उनकी यह व्याख्या बहुत कुछ अर्थो में सही है और एडलर एवं युग द्वारा प्रतिपादित मनोविश्लेषण भी बहुत कुछ उपयुक्त है । जो भी हो, मनोविज्ञान व साहित्य के क्षेत्र में इस वाद का अपना अलग ही स्थान है ।