“शठ सुधरहिं सुसंगति पाई” । Proverb on Good Company in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. सत्संगति का महत्त्व ।
3. कुसंगति से हानि ।
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4. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
सत्संगति का अर्थ है-श्रेष्ठ पुरुषों की संगति । जब मनुष्य अपने से योग्य, सद्गुणी व्यक्ति के सम्पर्क में आता है, तो उसकी बुराइयां भी अपने आप समाप्त हो जाती है । मनुष्य और पशु में यही अन्तर है कि पुरुष अपने अवगुणों को सत्संगति पाकर सुधार सकता है, किन्तु पशु को ऐसी संगति नहीं मिलती ।
तुलसीदासजी ने कहा है कि: ‘सठ सुधरहिं सत्संगति पाई, पारस परस कुधातु सुहाई ।’ अर्थात् सत्संगति के प्रभाव से दुराचारी व्यक्ति भी सद्गुणों को प्राप्त कर लेता है । उसी प्रकार पारस का स्पर्श पाकर लोहे जैसी धातु भी सोना बन जाती है ।
2. सत्संगति का महत्त्व:
सत्संगति के महत्त्व से न केवल व्यक्ति सद्गुणी बनता है, अपितु जीवन में उसे सुख-शान्ति व प्रतिष्ठा भी प्राप्त होती है ।
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कबीरदासजी ने लिखा है:
कबिरा संगति साधु की, हरै और यही व्याधि ।
ओछी संगति नीच की, आठों पहर उपाधि ।।
सत्संगति कल्पलता के समान है । इससे मनुष्य को सदैव मधुर फल ही प्राप्त होते हैं । संस्कृत में कहा गया है: ‘सत्संगति कथय कि न करोति पुंसाम’ अर्थात् सुसंगति क्या नहीं करती, साधारण-से-साधारण कीड़ा भी संगति के प्रभाव से बड़े-बड़े महापुरुषों अंदर देवताओं के सिर पर चढ़ने का सौभाग्य प्राप्त कर लेता है ।
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तुलसीदासजी ने कहा है-बिन सत्संग विवेक न होई, अर्थात् सत्संगति से व्यक्ति न केवल अपने ज्ञान में वृद्धि करता है, अपितु उसे उचित-अनुचित का बोध भी हो जाता है । वह ईश्वर को भी प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है ।
3. कुसंगति से हानि:
कबीर ने कहा है: ”काजर की कोठरी में कैसो हूं सयानो जाय, एक लीक काजर की लागहि पै लागि है ।” अत: नीच, दुराचारी व्यक्ति का साथ कभी नहीं करना चाहिए । इससे न केवल स्वयं की हानि होती है, अपितु दूसरों की भी अत्यधिक हानि होती है । विद्यार्थी जीवन में तो सुसंगति का विशेष ध्यान रखना चाहिए, अन्यथा विद्यार्थी अपना विकास कभी नहीं कर पायेगा ।
4. उपसंहार:
अतः प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में सुसंगति को ही अपनाना चाहिए और कुसंगति का ज्ञान होते ही उसे त्याग देना चाहिए । तभी उसका जीवन सुख-शान्ति, उन्नति से भरपूर हो सकेगा ।