आतंकवाद की समस्या । “Problem of Terrorism” in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. आतंकवाद का मूल कारण ।
3. आतंकवाद का प्रभाव ।
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4. आतंकवाद का परिणाम ।
5. निवारण के उपाय ।
6. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
आज आतंकवाद भयंकर चुनौती के साथ सामने आया है । आतंकवाद आज तक एक अन्तर्राष्ट्रीय समस्या बनी हुई है । वह विश्व क्षितिज पर प्रलयकारी बादलों की भांति छाया हुआ है और प्रतिपल हमारे लिए संकट का साधन बना हुआ है । कुछ अर्थों में तो आतंकवाद परमाणु बम से भी भयानक है ।
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परमाणु बम के गिरने से जहां बम गिरा है, केवल वहां की जनता और कुछ क्षेत्रों की जनता को कष्ट हुआ, लेकिन आतंकवाद से तो भारतवर्ष ही नहीं, बल्कि पूरा विश्व जूझ रहा है, लेकिन इसको समाप्त करने का अभी कोई कारगर उपाय नहीं निकला है । आतंकवाद की समस्या ने पूरे विश्व को संकट में डाल दिया है । पूरा विश्व इसके जहर से विषाक्त बना हुआ है ।
2. आतंकवाद का मूल कारण:
आतंकवाद का मूल कारण अतिवाद है । नीति सम्बन्धी इस प्राचीन कथन से प्राय: सभी लोग परिचित हैं, लेकिन इस पर अमल करने के लिए कोई तैयार नहीं है । अति सर्वत्र वर्जयते, अर्थात अति से सदा ही बचना चाहिए, लेकिन आज हम इस कदर सुविधावादी हो गये हैं कि सब कुछ प्राप्त करने के लिए अतिवादी बनते जा रहे हैं ।
हमारी युवा पीढ़ी के असन्तोष ने पिछले पचास वर्षों में अपनी अभिव्यक्ति के अनेक माध्यम अपनाये हैं । उदाहरण के लिए, हिप्पीवादी । इस असन्तोषजनक विद्रोह में आज राजनीति का रसायन मिला दीजिये । आतंकवाद अट्टाहास करता हुआ सामने उपस्थित हो जायेगा ।
आतंकवाद की उत्पत्ति एक सामान्य नियम बन गयी है । अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए आतंकवाद एक प्रबल हथियार बन गया है । हत्या, अत्याचार, लूटमार, बलात्कार आदि इसके विभिन्न रूप हैं । शक्तिशाली राष्ट्र निर्बल राष्ट्रों के प्रति उपेक्षा का व्यवहार करते हैं । इसका प्रतिकार आतंकवाद है । वोट की राजनीति का खेल आतंकवाद को और बढ़ावा देता है । उपेक्षित वर्ग अपनी उपयोगिता साबित करने के लिए आतंकवाद का सहारा लेता है ।
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जब समझौता, समन्वय, पारस्परिक वार्तालाप के मार्ग असफल हो जाते हैं, जब नारेबाजी, प्रदर्शन ज्ञापन, निवेदन आदि अप्रभावी सिद्ध हो जाते हैं, तब अपनी महत्त्वाकांक्षाओं की सिद्धि के लिए आतंकवाद एकमात्र उपचार होता है । राजनीति में प्रत्येक आन्दोलन अहिंसा की दुहाई के साथ शुरू किया जाता है, परन्तु वह दिखावे के लिए होता है ।
हिंसा, आगजनी तथा अराजकता का सहारा लेकर अपनी कुर्सी को मजबूत बनाया जाता है । संक्षेप में, स्वार्थपरता एवं अर्थवाद के इस युग में संयम एवं सन्तुलन का मार्ग अपनाने के लिए इने-गिने व्यक्ति ही प्रस्तुत दिखाई देते हैं । फलत: आतंकवाद की जड़ें दिन-प्रतिदिन गहरी जमती जा रही हैं और उसको सुधारने का प्रयास भी विफल होता जा रहा है ।
3. आतंकवाद का प्रभाव:
आतंकवाद का प्रभाव भारतीय जनता के साथ-साथ पूरे विश्व पर पड़ रहा है । भारत में पंजाब, कश्मीर, असम एवं पूर्वोत्तर राज्यों में आतंकवादी गतिविधियां हो रही हैं । पंजाब समस्या पर हमने धैर्य से काबू पा लिया है तथा पिछले दस वर्षो में हम आतंकवाद को कश्मीर में झेल रहे हैं । इस अवधि में हजारों निर्दोष लोगों की हत्या आतंकवादियों ने की है । यह समस्या तो भारत की है ।
विश्व में अन्य देशों में आज आतंकवाद अपने पैर बढ़ाता चला जा रहा है । 4 सितम्बर, 2001 में अमेरिका के वर्ल्ड टावर्स एवं पेंटागन जैसे टावर्स को उड़ा देने के बाद भी आतंककद आज शान्त नहीं है । ओसामा बिन लादेन द्वारा अलकायदा संगठन ने चारों ओर अशान्ति का माहौल बना दिया है । आज विश्व के अनेक देश आतंकवादी गतिविधियों के शिकार हैं ।
श्रीलंका के लिट्टे आतंकवादी अपनी गतिविधियों को दर्शा रहे हैं, तो रूस में चेचन्या में आतंकवाद है । लेबनान, इजरायल, सूडान, तुर्की, जापान, फिलिस्तीन, कम्बोडिया, लीबिया, चीत, आयरलैण्ड, कोलम्बिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बंगलादेश, इरान, इराक, उत्तर कोरिया, मिस्त्र, सोमालिया आदि देशों में भी आतंकवादी अपने पैर जमाये हुए हैं ।
विश्व के प्रमुख आतंकवादी संगठनों ने अलकायदा, हमास, हिजबुल-मुजाहिद्दीन, जेष-ए-मोहम्मद, अलफतह ब्रिटेन का एंगी, ब्रिगेड, जर्मनी का मीन ताप युप, फिलीस्तीन का हलेरू जून आदि के रूप में पैर फैला रखे हैं ।
आतंकवाद सुए हमारा जीवन विषाक्त बन गया है । अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए, विपक्षी को नीचा दिखाने के लिए राजनीतिक नेता गुण्डों और असामाजिक तत्त्वों का सहारा लेते हुए देखे जा सकते हैं ।
राजनेताओं की हत्या, उनकी सभाओं में हो-हल्ला कराना, पथराव करना, घेराव करना, बम विस्फोट जैसी भयंकर कार्रवाई देखी जा सकती है । इस प्रकार आतंकवाद की जड़ें फैलती ही जा रही हैं और उसे बढ़ावा भी उतना ही मिल रहा है ।
आतंकवाद ने हमारे समाज को बुरी तरह से क्षतिग्रस्त कर दिया है । आज लोग सच्ची व सही बात कहने से डरने लगे है; क्योंकि आतंकवाद का फन्दा हरेक के सामने झूलता नजर आता है । यह अपना प्रभाव पूरी तरह से जमाये हुए है ।
4. आतंकवाद का परिणाम:
आज आतंकवाद जिस तरह आगे बढ़ता जा रहा है, उसी तरह उसका परिणाम भी भयंकर होता जा रहा है । कश्मीर समस्या आज आतंकवाद का ही परिणाम है । यदि यह समस्या सुलझ जाये, तो एक हद तक आतंकवाद पर काबू पाया जा सकता है; क्योंकि भारत-पाक के इस कश्मीर विवाद का फायदा अन्य देश उठा रहे हैं ।
वे इसमें अपना फायदा निकालने के लिए दोनों देशों को उकसा रहे हैं, जिसका परिणाम आतंकवाद ही है । यदि आज देश की अन्तर्राष्ट्रीय समस्या का नाम लिया जाये, तो आतंकवाद पहले स्थान पर आयेगा । कश्मीर समस्या के फलस्वरूप आज लाखों लोग वहां से पलायन कर रहे हैं ।
इससे भय और असुरक्षा का वातावरण निर्मित हो रहा है । उन लाखों लोगों को शरण देने की बात भी समस्या के साथ आ रही है । इससे सरकार के प्रति लोगों का न्तेश्वास डगमगा गया है और देश में अफरातफरी, भय और आशंका का माहौल व्याप्त हो गया है ।
5. आतंकवाद निवारण के उपाय:
आतंकवाद के निवारण के नए सरकार को उन पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए, जिससे आतंकवाद समस्या उत्पन्न हो रही है । सर्वप्रथम पंजाब समस्या का उदाहरण लेकर कश्मीर समस्या का हल राजनीतिक व प्रशासनिक दोनों स्तर पर किया जाये ।
इसके लिए सर्वप्रथम वहां के नागरिकों को विश्वास अर्जित करना होगा । कश्मीरी जनता की जान-माल की सुरक्षा का समुचित प्रबन्ध हो । वहां सरकार को विशेष पैकेज देना चाहिए । इसके लिए कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली संविधान की धारा 370 निरस्त की जाये ।
इससे कश्मीरियों के मन में हीनता की भावना समाप्त होगी और सुरक्षा की भावना उत्पन्न होगी । धार्मिक स्थल को दर्शनीय स्थल ही बने रहने दिया जाये, इसे सामाजिक अखाड़ा न बनाया जाये । राष्ट्रीय स्तर पर नैतिक शिक्षा की व्यवस्था की जाये तथा समाज में भेदभाव को दूर करने के लिए बड़े कदम उठाये जायें ।
आतंकवाद को समूल नष्ट करने के लिए सरकारी व गैर सरकारी स्तरों पर, सम्मेलन, गोष्ठियां आदि आयोजित करके आतंकवाद के विरुद्ध आवाज उठायी जाये । पत्रकार, साहित्यकार, अध्यापक, कवि, लेखक इस दिशा में अपना निष्पक्ष व निडर योगदान करें ।
विश्वस्तर पर सम्मेलन बुलाकर इसका सर्व निर्णय से हल निकालने का प्रत्यन किया जाये । आतंकवादी संगठनों के अर्थतन्त्र को समूल नष्ट किया जाये; क्योंकि कोई भी संगठन धन के बिना ज्यादा दिनों तक नहीं टिक सकता है ।
ओसामा बिना लादेन जैसे आतंकवादी को सरेआम फांसी पर चढ़ाया जाये, ताकि भोले-भाले नवयुवक बहक न जायें और जेहाद के नाम पर अपने आपको कुरबान न करें । सबको मिलकर पहल करनी होगी और इस पहल में यह भी बताना होगा कि निर्दोष लोगों की हत्या को किसी भी धर्म में उचित नहीं बताया गया है । गुमराह हुए नागरिकों को सचाई से अवगत कराना चाहिए ।
6. उपसंहार:
आतंकवाद की यह लड़ाई केवल भारत या अमेरिका की लड़ाई नहीं है, अपितु यह सम्पूर्ण मानवता की लड़ाई है । आतंकवाद सभ्य विश्व के मुख पर करारा तमाचा है । इसकी पीड़ा से मुक्ति पाने के लिए और देश को छुटकारा दिलाने के लिए हमें निरन्तर सजग, सचेत रहना होगा ।
आज मानव ने स्वार्थान्धता के वशीभूत होकर आतंकवाद की चादर ओढ़ ली है और जिस डाल पर बैठा है, उसी को काट रहा है, लोकोक्ति को चरितार्थ कर रहा है । यदि हम पृथ्वी को शस्य, श्यामला और सुसम्पन्न देखना चाहते हैं, तो हमें भयावह आतंकवाद को जड़ से उखाड़ना होगा । इसके-लिए एकजुट होकर मुकाबला करना होगा । इन सभी मोर्चों पर आतंकवाद के विरुद्ध उचित कदम उठाना आवश्यक है । इस दिशा में जन सहयोग लेना सबसे बड़ा कदम होगा ।