मेरा प्रिय लेखक मुंशी प्रेमचंद | Article on “My Favorite Writer: Munshi Premchand” in Hindi Language!
प्रस्तावना:
अभी तक हिन्दी साहित्य ने अनेकों उपन्यासकारों को जन्म दिया है जिन्होंने हिन्दी उपन्यासों को अपने-अपने समय में नूतन दिशाएँ प्रदान की हैं । उन सब में प्रेमचन्द को सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार कहा जाता है । मुंशी प्रेमचन्द ने अपने उपन्यासों से हिन्दी पाठकों को जितना प्रभावित व आकर्षित किया उतना अन्य किसी लेखक ने नहीं किया, इसीलिए उन्हे, उपन्यास सम्राट की उपाधि दी गयी है ।
जीवन परिचय:
हमारे प्रिय लेखक उपन्यास सम्राट् प्रेमचन्द का जन्म सन् 1880 में काशी के निकट लमही नामक गाँव में एक साधारण परिवार में हुआ । इनका बचपन का नाम धनपतराय था । पिता बाबू अजायबराय डाकखाने में मुशी का कार्य करते थे । प्रारम्भ में ये गाँव में एक मौलवी से उर्दू सीखा करते थे ।
माँ की असमय मृत्यु ने इनका बचपन का प्यार छीन लिया । इनकी सौतेली माँ का इनके साथ बड़ा दुर्व्यवहार रहता था । इन्होंने कठिन परिस्थितियों में भी अपनी पढ़ाई जारी रखी । बी॰ए॰ पास कर ये पहले अध्यापक फिर धीरे-धीरे डिप्टी इन्सपैक्टर के पद तक पहुँच गये ।
ADVERTISEMENTS:
सन् 1920 में महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन के लिए आह्वान पर इन्होंने भी सरकारी नौकरी से त्याग-पत्र दे दिया और स्वतन्त्र रूप से सहित्य साधना में लेखन कार्य में जुट गये । मुंशी प्रेमचन्द का गृहस्थ जीवन भी अत्यन्त सघर्षपूर्ण रहा । पहले सौतेली माँ के कहने पर बेमेल विवाह हो गया जिससे इनकी कभी नहीं बनती थी ।
बाद में इन्होंने समाज में उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए एक बाल विधवा शिवरानी देवी से विवाह कर लिया । शिवरानी देवी ने उन्हें जीवन के हर क्षेत्र में सतत् सहयोग प्रदान किया । सरकारी नौकरी छोड़ने के बाद इन्होंने माधुरी, हंस, जागरण आदि पत्रिकाओं का कुशल सम्पादन किया ।
लेकिन जीवन से सघर्ष निरन्तर बना रहता था । वह जीवन भर आर्थिक कठिनाइयों से जूझते रहे । निरन्तर साहित्य साधना करते हुए हिन्दी साहित्य को अनेक उपन्यासों व सैकड़ों कहानियों से सुसज्जित कर यह महापुरुष 18 अक्टुबर, 1936 ई॰ में केवल 56 वर्ष की आयु में इस धराधाम को छोड़कर पंच तत्त्व में विलीन हो गया ।
साहित्यिक विशेषताएं:
प्रेमचन्द से पूर्व हिन्दी में, कथा साहित्य का काफी विकास हो चुका था परन्तु उनमें अधिकतर जासूसी, तिलस्मी, अव्यवहारिक कल्पना की प्रधानता थी । प्रेमचन्द ने अपने युग में कथा साहित्य को एक नूतन दिशा प्रदान कर युग प्रवर्तन का काम किया ।
ADVERTISEMENTS:
उनके साहित्य की प्रमुख विशेषता यह है कि उन्होंने अपने साहित्य को जीवन से पूर्णत: जोड़ दिया । उन्होंने तत्कालीन परिस्थितियों के आधार पर समस्या प्रधान व चरित्र प्रधान कथा साहित्य का सर्जन-किया । उन्होंने तात्कालिक नारी समस्या, वेश्या समस्या, अनमेल विवाह समस्या, किसानो की समस्या, मजदूरों की समस्या, दहेज समस्या, सामाजिक कुरीतियों की समस्या का मूल्याकन कर समाज के सामने प्रस्तुत किया ।
उन्होंने तत्कालीन ग्रामीण जीवन के यथार्थ चित्र खीचे जमींदारों, सूदखोर महाजनों, सरकारी तन्त्रों का यथार्थ चित्रण कर समाज के दलित वर्ग का पथ-प्रदर्शन किया । वे समस्याओ को यथार्थ रूप से प्रस्तुत कर उनका आदर्शवादी ढैग से समाधान खोजते थे इसलिए उन्हे आदर्शोम्मुख यथार्थवाद विचारधारा का उपन्यासकार माना जाता है ।
वे कोरी आदर्शता पर विश्वास नहीं करते थे । यथार्थ को चित्रित कर देना उनकी प्रमुख विशेषता थी । उन्होंने भारतीय जनजीवन की प्रत्येक समस्याओं को व्यवहारिक रूप में देखा और उनका गहरा अध्ययन कर उन्हे अपने उपन्यास में निबद्ध कर दिया । उनके कथा साहित्य का प्रत्येक पात्र अपने युग का सही प्रतिनिधित्व करता पाया गया है ।
उन्होने समाज का ऐसा चित्र खीचा कि मानो वे किसी दृश्य का आँखों देखा हाल प्रस्तुत कर रहे हो । मानो वे घटनाएँ उनके सामने सही रूप से घटित हो रही हों । उनके कोई पात्र काल्पनिक नहीं लगते हैं । हर पात्र अपनी तात्कालिक समस्या को लेकर सामने खड़ा हो जाता है । एक सफल साहित्यकार की यह प्रमुख विशेषता होती है ।
राष्ट्रीय चेतना की अभिव्यक्ति:
ADVERTISEMENTS:
प्रेमचन्द के साहित्य में राष्ट्र चेतना व जनजागरण के स्वर भरे हुए थे । प्रेमचन्द के काल में भारतीय समाज में अनेकों विषमताएँ व्याप्त थीं । साथ ही उन विषमताओं के विरुद्ध भी समाज में आवाज उठ रही
थी । किसान जमींदारों के चंगुल से जूटने के लिए छटपटा रहा था । नारी अपने ऊपर लगे सामाजिक बन्धन तोड़कर ऊपर उठने की चेष्टा कर रही थी ।
सामाजिक कुरीतियाँ मुँह खोले भारतीय समाज को रास रही थीं, जिनका समाज में खुला भण्डाफोड़ हो रहा था । चहुं ओर शोषण, अन्याय, अत्याचार, व्यभिचार, पाखण्ड, विषमता, लूट-खसोट मची हुयी थी । ब्रिटिश शासकों का दमनचक्र अपनी पराकाष्ठा पर था ।
इस विषम परिस्थितियों में प्रेमचन्द की कला का विकास हो रहा था । प्रेमचन्द शोषित, दीन-हीन, दलित, दुर्बलजनों के पक्षधर बनकर जनजागरण का कार्य करने लगे । उन्होने, सोई हुई, दबी हुई जनता को जागत किया । अपने उपन्यासो, कहानियों व पत्रिकाओ के द्वारा जनता में एक नयी जान डाली ।
उपसंहार:
उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय कथाकार हैं । उनके साहित्य का अनुवाद विश्व की लगभग सभी विकसित भाषाओं में हो चुका है । जहाँ भी उनके उपन्यास पढे गये वहीं उनकी प्रशसा होने लगती ।
आज प्रेमचन्द हमारे बीच नहीं है परन्तु उनके साहित्य में उनकी वाणी हमें उद्घोषित कर रही है । उनकी वाणी हमे देश भक्ति, समाज सुधार, जनसेवा का सन्देश दे रही है । हमें उनकी वाणी से जीवन के हर क्षेत्र में प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए ।