चन्द्रयान अभियान पर अनुच्छेद । Paragraph on Mission Moon in Hindi Language!
मानव रहित चन्द्रयान-प्रथम के सफल प्रक्षेपण ने भारत को अंतरिक्ष जगत में भी दिग्गज बना दिया है । 22 अक्टूबर 2008 को अंतरिक्ष विज्ञान की हमारी उपलब्धियों में एक और कड़ी जुड़ गई जब चाँद पर पहुँचने की हमारी कोशिश परवान चढ़ गई ।
चन्द्रयान अभियान पर निकलने वाला भारत भले ही छठवाँ देश है लेकिन अंतरिक्ष जगत में हमारी ठोस सफलताओं उपलब्धियों और मानव रहित चन्द्रयान प्रथम के लिये की गई बेहतर तैयारियों से वास्तव में आशा की किरण जागी है ।
पूर्व सोवियत संघ और अमेरिका ने बीसवीं शताब्दी में जो कार्य आरम्भ किया था अब भारत उसी श्रुंखला में अगली कड़ी साबित होगा और वर्तमान समय की हमारी अंतरिक्ष जगत की सफलता भी इस राह में मील का पत्थर साबित होगी ।
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22 अक्टूबर 2008 दिन बुधवार को श्री हरिकोटा के सतीश चन्द्र धवन, अंतरिक्ष केन्द्र के प्रमोचन पैड पर मानव रहित चन्द्रयान प्रथम प्रतीक्षा की घडियाँ गिन रहा था । वैज्ञानिकों ने इसे ऐतिहासिक बनाने हेतु पूर्ण तैयारियाँ कर रखी थीं ।
जैसे ही प्रात: के छ: बजकर बाईस मिनट हुए लांच पैड से चन्द्रयान प्रथम को लेकर पीएसएलवी सी-11 राकेट अपने गंतव्य को रवाना हुआ । मौसम सामान्य ही था किन्तु आकाश में बादले छाये हुए थे । वैज्ञानिकों का कलेजा धक-धक कर रहा था लेकिन सही 18.2 मिनट बाद यान के पृथ्वी की कक्षा में सुरक्षित पहुँचते ही सभी वैज्ञानिकों की बाँहें खिल उठीं ।
अंतरिक्ष अभियान में इतिहास रचा जा चुका था । इस सफलता पर हर भारतीय फूला नही समा रहा है । इस मिशन के सूत्रधार भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रमुख जी. माधवन नायर ने अपनी खुशी इन शब्दों में व्यक्त की ”भारत के लिये ऐतिहासिक क्षण है । हमने चाँद की यात्रा शुरू कर दी है और चाँद की तरफ हमारा पहला कदम बिल्कुल सही व सटीक पड़ा है ।”
राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने कहा, ”मैं चन्द्रयान प्रथम से जुड़े सभी वैज्ञानिकों को हार्दिक बधाई देती हूँ । आगामी अनुसंधानों के लिये यह अभियान निश्चित रूप से मील का पत्थर साबित होगा ।” प्रधानमंत्री डॉ॰ मनमोहन सिंह ने कहा, ”इस ऐतिहासिक प्रक्षेपण से भारत ने अपने चन्द्रयान अभियान की शुरूआत कर दी है ।”
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पूर्व राष्ट्रपति डॉ॰ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने कुछ इस प्रकार अपनी खुशी जाहिर की ”हमने चन्द्र मिशन का पहला चरण सफलतापूर्वक पार कर लिया है । उम्मीद करता हूँ कि इस अभियान का हर कदम सही दिशा में पड़ेगा ।”
इसी क्रम में उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी का कहना है कि, ”इसरो की अभूतपूर्व उपलब्धि पर सारे देश को गर्व है और इसी प्रकार डा. लालकृष्ण आडवाणी का कहना है कि, ”हमने चाँद की अपनी यात्रा शुरू कर दी है और चाँद की ओर हमारा पहला कदम सटीक पड़ा है ।”
इस अभियान का सफल प्रक्षेपण शक्तिशाली बनते भारत की अंतरिक्ष में एक शानदार छलांग है । इस अभियान की प्रारंभिक विजय से निश्चित है कि भारत का नाम अंतरिक्ष विज्ञान में पारंगत देशों के बीच इज्जत से लिया जायेगा ।
यह भी अच्छा अनुभव रहा कि भारत ने यह सफलता बहुत कम लागत में प्राप्त कर ली । वास्तव में यह चन्द्रयान अभियान अंतरिक्ष जगत की अंधी दौड़ नहीं है बल्कि इससे राष्ट्रीय हित जुड़े हुए हैं ।
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उदाहरणार्थ चन्द्रमा पर मौजूद हीलियम-3 भविष्य में हमारी ऊर्जा की पूर्ति का सशक्त स्त्रोत बन सकता है । हमारे वैज्ञानिक यह संदेश देने में सफल रहे हैं कि हम अंतरिक्ष की हर चुनौती का सामना करने में सक्षम है और हर सपना साकार कर सकते हैं और एक सीख भी दे सकते हैं यदि प्रतिबद्धता से कोई कार्य किया जाये तो हर चुनौती से निपटा जा सकता है और अपना झंडा कहीं भी फहराया जा सकता है ।
इसरो के एक हजार वैज्ञानिकों की चार वर्ष की जी-तोड़ मेहनत ने भारत को उसके अंतरिक्ष कार्यक्रम के एक नये युग में पहुँचा दिया है । इस अभियान पर अमेरिका, स्वीडन, जापान, जर्मनी और बुल्गारिया की नजरें लगी हुई हैं क्योंकि इस मिशन में इन देशों के पे-लोड भी सम्मिलित हैं । चन्द्रमा पर पहुँचने का भारत का एक मुख्य उद्देश्य हीलियम-3 की मौजूदगी की खोज करना है ।
हीलियम-3 नाभिकीय संलयन के लिये महत्वपूर्ण ईंधन है । नाभिकीय ईंधन भले ही आज व्यावसायिक रूप से व्यावहारिक न हो, किन्तु विज्ञानी मानते हैं कि भविष्य में इसकी अप्रत्याशित माँग बढ़ेगी । पृथ्वी पर केवल 15 टन हीलियम-3 ही मौजूद है । जबकि चन्द्रमा पर पचास लाख टन मौजूद है । शायद इसीलिये हर विकसित देश चन्द्रमा पर कब्जा करने की कोशिश कर रहा है । चन्द्रमा पर मौजूद हीलियम-3 की मात्रा से आठ हजार सालों तक पूरी दुनिया को ऊर्जा मिल सकती है ।
इसी क्रम में भारत द्वारा 2010 और 2012 के बीच मानव रहित द्वितीय चन्द्रयान भेजा जाना है । इसके बाद 2014 में अंतरिक्ष में एक यात्री भी भेजा जायेगा । इसकी समय सीमा 2020 तक हो सकती है । इसी के साथ भारत ने ‘सूर्य मिशन’ की भी तैयारी कर दी है और जल्दी ही एक अंतरिक्ष ‘आदित्य’ सूर्य के सबसे बाहरी क्षेत्र ‘कोरोना’ के अध्ययन के लिये भेजा जा रहा है ।
अब तक के अभियान:
सोवियत संघ:
2 सितम्बर 1959 को छोड़ा गया सोवियत स्पेस क्राफ्ट लूना-2 चाँद पर पहुँचने वाला पहला अंतरिक्ष यान था ।
अमेरिका:
नासा ने 1961 से लेकर 1972 के बीच अपोलो श्रुंखला के छ: स्पेसक्राफ्ट चन्द्रमा पर भेजे । 20 जुलाई 1969 को अपोलो-11 में भेजे गये अंतरिक्ष यात्री नील आर्म स्ट्रांग ने पहली बार चाँद पर चहल कदमी की थी । जिनके साथ एडविन एल्ड्रिन भी थे । किन्तु चन्द्रमा पर पहला कदम नील आर्म स्ट्रांग ने ही रखा । बाद में एडविन एल्ड्रिन के कदम चन्द्रमा के धरातल पर पड़े । ये दोनों साथ-साथ अपोलो-11 में गये थे ।
जापान:
जापान ने हितेन (हागोरोमो, एक अन्य नाम) नाम का स्पेसक्राफ्ट जनवरी 1990 में भेजा और दूसरा यान कायुगा (सेलेन) वर्ष 2007 में चन्द्र मिशन पर भेजा ।
चीन:
अक्टूबर 2007 में चीन ने चन्द्रमा पर अपना पहला अंतरिक्ष यान चेंगे-1 नाम से भेजा । क्यूबाइड आकार के चन्द्रयान में एक ओर सौर पैनल लगे हैं । यह यान सौर ऊर्जा से संचालित है, पूरे अभियान में यही पैनल इसके लिये ऊर्जा की व्यवस्था करेंगे ।
चन्द्रयान इस अभियान में अपने साथ ग्यारह पे-लोड (एक प्रकार का वैज्ञानिक उपकरण) ले गया है, इनमें से पाँच पूर्णत: स्वदेशी तकनीकी से निर्मित व विकसित किये गये हैं । तीन यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ई.एस.ए.), दो अमेरिका और एक बुल्गारिया का है ।
पी॰एस॰एल॰वी॰ चन्द्रयान को पृथ्वी से 250 किमी॰ दूर चाँद की निकटतम दीर्घ वृत्ताकार प्रारंभिक कक्षा में 1102 सेकेन्ड में पहुँचा दिया । यह पृथ्वी से अधिकतम 23 हजार किमी॰ दूर चन्द्र कक्षा में पहुँच गया और यहाँ से निकट 100 किमी॰ की चन्द्र कक्षा में 8 नवम्बर 008 शनिवार को स्थापित हो गया और वहाँ भारतीय राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा भी फहरा दिया गया ।
अन्य देशों द्वारा भेजे गये यानों ने चन्द्रमा के एक दो पहलुओं या चन्द्रमा के विशिष्ट क्षेत्र के अध्ययन पर ही ध्यान केन्द्रित रखा था जबकि भारतीय चन्द्रयान प्रथम मूलत: चन्द्रमा की सतह का नवा तैयार करेगा । चन्द्रयान प्रथम चन्द्रमा के उच्च श्रेणी के त्रिआयामी (श्री डाइमेन्शनल) चित्र भेजने के अलावा इसके पूरे धरातल की रासायनिक संरचना का भी पता लगाने का प्रयास करेगा ।
मानव रहित चन्द्रयान प्रथम को चाँद पर सफलतापूर्वक पहुँचाकर वैज्ञानिकों ने भारत के साथ नया विशेषण जोड़ दिया है अंतरिक्ष शक्ति । भारत के अलावा यह रिकार्ड अपने नाम दर्ज करने वाले पाँच देश और हैं, अमेरिका, रूस, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, चीन और जापान ।
भारतीय चन्द्रयान प्रथम दो साल तक चाँद पर रहकर कई आवश्यक जानकारियों का संकलन करेगा । बैंगलूर में पीन्या स्थित इसरो के टेलीमीट्री, ट्रेकिंग और कमांड नेटवर्क (आईएसटीआरएसी) के वैज्ञानिक चन्द्रयान की गतिविधियों पर नजर रखेंगे ।
वे इसे नियंत्रित करेंगे और वहाँ से आने वाली सूचनाओं को एकत्र करके रखेंगे और दो साल तक चन्द्रयान प्रथम वैज्ञानिकों के अतिरिक्त नन्हे-मुन्ने बच्चों, प्रेमी-प्रेमिकाओं, साहित्यकारों, कवियों, शायरों व ज्योतिषियों के सर्वाधिक प्रिय रहे धरती के इस उपग्रह के रहस्यों से पर्दा उठाने का काम करता रहेगा ।