हिन्दी का महत्त्व । Importance of Hindi in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. हिन्दी का विकास ।
3. हिन्दी की विशेषताएं ।
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4. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
उर्दू संसार में कुल मिलाकर अट्ठाइस सौ भाषाएं हैं । उनमें तेरह ऐसी भाषाएं हैं, जिनके बोलने वालों की संख्या सात करोड़ से अधिक है । दुनिया की भाषाओं में हिन्दी भाषा को तृतीय स्थान प्राप्त है । इसके बोलने वालों की संख्या सौ करोड़ के आस-पास है ।
भारत के बाहर बर्मा, श्रीलंका, मॉरीशस, फीजी, मलाया, दक्षिण और पूर्वी अफ्रीका में भी हिन्दी बोलने वालों की संख्या काफी है । यही एशिया की एकमात्र भाषा है, जो देश के बाहर भी बोली जाती है और लिखी जाती है ।
2. हिन्दी का विकास:
यह हमारी राष्ट्रभाषा है । प्राचीन आचार्यों ने भी, जिनमें वल्लभाचार्य, विट्ठल, रामानुज, रामानन्द आदि पुरुष हैं, जो हिन्दी साहित्येतिहास के इतिहास पुरुष हैं, इसी भाषा के माध्यम से उन लोगों ने अपने सिद्धान्तों एवं मतों का प्रचार-प्रसार किया ।
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अहिन्दी भाषा-भाषी राज्यों में सन्त कवियों ने भी अपने धर्म और साहित्य का माध्यम इसी (हिन्दी) भाषा को बनाया । इन सन्त कवियों में प्रमुख हैं-असम के शंकरदेव, महाराष्ट्र के नामदेव, गुजरात के नरसी मेहता, बंगाल के चैतन्य महाप्रभु इत्यादि । स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद सभी अहिन्दी भाषा-भाषी नेताओं ने भी एक स्वर से यही स्वीकार किया कि हिन्दी ही जन-जन की सामान्य भाषा है और राष्ट्रीय एकता की भाषा है ।
ऐसे नेताओं में अग्रगण्य हैं: राजाराम मोहनराय, केशवचन्द्रसेन, बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय, महर्षि अरविन्द, कवीन्द्र-रवीन्द्र, सुभाषचन्द्र बोस, लोकमान्य तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले, महात्मा गांधी इत्यादि । आज किसी-न-किसी रूप में पूरे देश में यह भाषा (हिन्दी) प्रचलित है । भारत की संस्कृति हिन्दी से ही. सुरक्षित है । यह हमारी राष्ट्रभाषा है । पूरे भारत में आमजनों की भावाभिव्यक्ति की अचूक भाषा है ।
3. हिन्दी की विशेषताएं:
यह एक जीवन्त और सश्त्क भाषा है । इसमें अनेक देशी और विदेशी शब्दों को समाहित किया गया है । इसने अन्य भाषाओं की ध्वनियों, शब्दों, मुहावरों एवं कहावतों को अपने अन्दर समा लिया है और अच्छी तरह पचा लिया है । इस प्रकार हिन्दी ने अपने शब्द-भण्डार और अभिव्यक्ति को समृद्ध किया है ।
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यह एक जीवित भाषा है । इसका प्रचार एवं प्रसार उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा है । यह एक सरल भाषा है, जिसके कारण इसका व्यवहार देश के कोने-कोने में होता जा रहा है । हिन्दी आज अपनी सभी क्षेत्रीय सीमाओं को तोड़ चुकी है । क्या पूरब, क्या पश्चिम, क्या देश और क्या विदेश, सभी दिशाओं में यह गतिमान है । राजनीतिज्ञों से अधिक इसे जनता का बल प्राप्त है, अत: इसके नष्ट होने का कोई भय नहीं है ।
4. उपसंहार:
हिन्दी भारत की सामान्य जनता की भाषा है और देश की एकता की सम्पर्क भाषा है । साधु-सन्तों में विचारों के आदान-प्रदान की भाषा है और देश की केन्द्रीय शक्ति है ।