होली का त्योहार । “Holi” in Hindi Language!
1. भूमिका ।
2. होली चेतना व जागति का पर्व ।
3. होली का महत्त्व (सामाजिक, वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक)
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4. होली की बुराइयां ।
5. उपसंहार ।
1. भूमिका:
फागुन मास की पूर्णिमा को प्रतिवर्ष मनाये जाने वाला होली का यह पावन त्योहार सर्दी के अन्त और ग्रीष्म के प्रारम्भ के सन्धिकाल में तथा वसंत ऋतु की श्रीवृद्धि समृद्धि के मादक वातावरण में अपनी उपस्थिति देता है ।
वासंती पवन के साथ फागुनी रंगों की बौछार लिये होली का यह त्योहार प्रेम, हर्ष, उल्लास, हास्य विनोद, समानता चेतनता, जागति का पर्व है । यद्यपि इस पर्व के मनाये जाने के पीछे कुछ पौराणिक कथाएं हैं, तथापि इसे मनाये जाने के सामाजिक, वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक कारण भी हैं ।
2. होली चेतना व जागृति का पर्व:
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सर्व प्रचलित कथा के अनुसार होली तब से मनायी जाती है, जब सत्याग्रही विष्णु भक्त प्रहलाद को छल प्रपंच से मारने के लिए हिरण्याकश्यप ने यथासम्भव प्रयत्न किये । हारकर उसने अपनी बहिन होलिका को आग में बैठाकर प्रहलाद को जला डालने हेतु निर्देशित किया ।
आग में नहीं जलने का वरदान पाकर भी जल मरी होलिका । होलिका र्का दुष्टता का अल हुआ, उधर सच्चे भक्त प्रहलाद ने असत्य और अन्योय का जो कभी विरोध सत्य की रक्षा के लिए किया, उसमें सत्य की ही विजय हुई । नरसिंह अवतार में प्रकट होकर स्वयं भगवान विष्णु ने व्यक्ति की पूजा करवाने वाले हिरण्याकश्यप का वध कर डाला ।
3. होली का महत्त्व (सामाजिक, वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक):
इस त्योहार के पीछे पौराणिक कथाएं जो भी रही हैं, किन्तु इसके साथ वैज्ञानिक कारण यह है कि ग्रीष्म और शीत के सन्धिकाल में अनेक संक्रामक रोग पनपते हैं, वातातरण में कीटाणुओं की वायु में उपस्थिति को नष्ट करने के लिए होलिका दहन किया जाना चाहिए ।
टेसू के रंगों के प्रभाव से चेचक माता जैसी बीमारियों का शमन भी किया जाता है । होली का यह पव सुख-समृद्धि का पर्व भी है । फसलें पककर तैयार हो जाती हैं । इसलिए वासति नव संस्येष्टि का परिवर्तित रूप भी है होली । इसी शुभ दिन होली की पवित्र अग्नि में उात्न की बालियों को भूनकर खाया जाता है ।
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होली के इस सामूहिक यइा में प्रत्येक गांव, नगर के लोग समिधा और कण्डों का संग्रह करते हैं और पूर्णमासी के प्रदोष काल में घर के चौड़े आगन में किसी चौराहे पर गोबर से लिपी-पुती पवित्र भूमि पर शमी वृक्ष का खम्भा लगा दिया जाता है और उसके चारों तरफ संग्रह की गयी पलास, आम, पीपल, खैर के संचित काष्ठ घास-फूस और उपलों को घेरा जाता है ।
नारियल के लक्षे लपेटकर यइा की पूर्णाहूति, मिठाई, गुड आदि चढाये जाते हैं । अग्नि के हविपात्र में पकाई गयी कन के बालियों का प्रसाद वितरण किया जाता है ।
4. होली की बुराइयां:
होली का त्योहार मनाये जाने के सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक महत्त्व में से यह प्रमुख है कि होली समानता, सदभाव में वृद्धि करने, शत्रुता को मित्रता में बदलने का पर्व है । इस दिन छोटे-बड़े सभी अपनी सामाजिक पद प्रतिष्ठा भूलकर मनोमालिन्य दूर करते हैं । अपने विरोधी भावों को छोड़ स्नेही भाव तरंगों में सराबोर हो हास्य-विनोद करते हैं, फगुवा गाते हैं ।
होली के इस पवित्र त्योहार में समय परिवर्तन के साथ-साथ कुछ विकृतियों का प्रवेश हो गया है, जिसके फलस्वरूप ऐसा भी प्रतीत होता है कि कहीं हम इसके मूल स्वरूप को विस्मृत न कर जायें । होली के दिन स्वाभाविक सहज हास्य-विनोद के स्थान पर कुरुचिपूर्ण अश्लील, भद्दे, पतनकारी मनोभावों का प्रयोग होने लगा है । किसी सभ्य सुसंस्कृत समाज के लिए इसे छेड़छाड़ का रूप देना उचित नहीं है ।
कई अवसरों पर अपने से सम्मानीय स्त्रियों के प्रति अमर्यादापूर्ण आचरण करते हुए इसकी गरिमा, महता को यदूल जाते हैं । होलिका को गाली देने का आशय कुछ दूसरे अर्थो में लेने लगे हैं । कुछ तो होली के अवसर पर अपनी बुराइयों को पवित्र अग्नि में होम करने की बजाये प्रतिशोध की भावनाओं में जलकर अमानवीय कृत्य करते हैं । मदिरा उघैर भांग का आवश्यकता से अधिक सेवन असन्तुलित बना देता है ।
टेसू, पलाश के प्राकृतिक रंगों के स्थान पर गहरे रासायनिक रंगों, कीचड़ वार्निश इत्यादि का भी प्रयोग होने लगा है । होली के लिए हरे-भरे वृक्षों की कटाई करने में संकोच नहीं करते, जो कि पर्यावरण की दृष्टि से नुकसानदेह है ।
5. उपसंहार:
यदि हम इन दोषों से दूर रहकर होली के वास्तविक परम्परागत स्वरूप को कायम रखते हैं, तो इस त्योहार की जो महिमा है, गरिमा है, वह बनी रहेगी; क्योंकि होली तो जीवन को उल्लासमय, उज्जल बनाने का पर्व
है ।
अपने विचारों, भावों को क्रियात्मक, संस्कार देने का पर्व है । सबको एक रंग में, मानवीयता के रंगों में रंगने का पर्व है होली । फागुनी उन्माद के रंग रंगीले रंगों का, फाग और अबीर का, अपने सभी स्नेहीजनों के लिए हार्दिक शुभकामनाओं को प्रकट करने का पर्व है होली ।