हलषष्ठी (हरछठ) । “Har Chhath” in Hindi Language!
1. प्रस्तावना
2. हलषष्ठी का महत्त्व ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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हमारी भारतीय संस्कृति में जितने भी पर्व हैं, उन पवों में किसी-न-किसी प्रकार का कल्याण भाव निहित होता है । यह कल्याण भाव मानव जाति के साथ-साथ अन्य प्राणियों के लिए भी निहित होता है । भारतीय पर्व सदैव इस बात की प्रेरणा देते हैं कि व्रत या पर्व कल्याणार्थ ही होते हैं । व्रत पालन में काफी कठिनाइयां भी आती हैं ।
व्रतधारक को इसका अच्छा फल अन्ततोगत्वा प्राप्त होता ही है । असत्य पर सत्य, बुराई पर अच्छाई का प्रतीक ही होता है-पर्व । इन भारतीय पर्वो में पुत्र तथा प्राणिमात्र के प्रति कल्याण के भाव का एक-पर्व है-हलषष्ठी या हरछठ ।
2. हलषष्ठी का महत्त्व:
हलषष्ठी का पर्व पुत्र के दीर्घायु होने की मंगलकामना के साथ प्राणिमात्र के प्रति भी प्रेम भाव रखने का पर्व है । इस पर्व को भादों के कृष्णपक्ष मैं षष्ठी के दिन मनाते हैं । बलराम का जन्म भी इसी दिन हुआ था और वे हल को धारण करते थे ।
इन दोनों महत्त्वपूर्ण तिथियों के आधार पर हलषष्ठी को मनाते हैं । इस पर्व को मनाने के पीछे महत्वपूर्ण कथा यह है कि किसी नगर में दो स्त्रियां रहती थीं । इनमें से जो देवरानी थी, उसका नाम सलोनी और जेठानी का नाम था तारा ।
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सलोनी स्वभाव से दयालु थी, जबकि जेठानी तारा स्वभाव से अत्यन्त दुष्ट थी । एक बार की बात है । उन्होंने हलषष्ठी का व्रत रखा था । सायं उन्होंने बनाये गये भोजन को ठण्डा होने के लिए थाली में रख दिया था ।
उस दिन तारा ने महेरी तथा सलोनी के लिए खीर बनायी थी । अचानक चप-चप की आवाज सुनकर वे भीतर गयीं, तो उन्होंने देखा कि दो कुत्ते उनका बना भोजन खा रहे हैं । सलोनी ने यह देखा, तो उसने बची हुई खीर भी कुत्ते के सामने डाल दी ।
तारा ने कुत्ते को कमरे में बन्द करके खूब पीटा । बेचारा किसी तरह जान बचाकर भागा । दोनों कुत्तों ने एक-दूसरे से अपना हाल कह सुनाया । मार खाये हुए कुत्ते ने कहा: ”मैं अपनी मार का बदला जरूर
लूंगा ।” पहले वाले कुत्ते ने कहा: ”उसने मुझे प्यार से खीर खिलायी है, अत: मैं अगले जन्म में उसका पुत्र बनकर उसकी सेवा करूंगा ।”
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दूसरे वर्ष हलषष्ठी की पूजा होनी ही थी कि तारा का लड़का उसी दिन मर गया । इसके बाद उसके जितने भी पुत्रों ने जन्म लिया, वे हलषष्ठी के दिन ही मृत्यु को प्राप्त होते रहे । एक दिन कुत्ते ने स्वप्न में तारा को बताया: ‘खीर खाते समय तूने मुझे मारा था । मैं इसी का बदला चुका रहा हूं । यदि तू इससे मुक्ति पाना चाहती है, तो हलषष्ठी के दिन हल से जुता हुआ अन्न न खाना ।
गाय का दूध, दही नहीं लेना, होली की भूलनी हुई बालियों को पूजा में चढ़ाना । तब कहीं मैं जीवित बचूंगा ।’ इस तरह तारा ने भूमि को लीपकर घर पर छोटा-सा तालाब बनाया । उस पर गुजबेरी, ताग तथा पलाटा की एक शाखा बांधकर हल को गाड़ दिया ।
पूजा में चना, जौ, गेहूं धान, अरहर, मक्का तथा मूंग चढ़ाने के बाद सूखी धूल, हरी कुजरियां, होली की राख, चने तथा जौ की बालियां चढ़ायी । इस व्रत के बाद तारा के पुत्र जीवित रहे ।
3. उपसंहार:
हलषष्ठी का पर्व एक तरफ तो पुत्र के प्रति मंगलकामना का पर्व है, तो दूसरी तरफ इस बात की प्रेरणा देता है कि अच्छे कार्य का फल अच्छा ही होता है । बुरे कार्य का फल बुरा होता है । भूखे को भोजन खाते देखकर उसके मुख से खाना नहीं छीनना चाहिए । ईश्वर तो सभी प्राणियों में विद्यमान होते हैं ।