गुरूपर्व । “Gurpurab” in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. गुरूपर्व का महत्त्व ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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हमारी धर्म प्रधान भारतीय संस्कृति में गुरु को साक्षात् परमब्रह्म स्वरूप कहा गया है । वैदिककालीन संस्कृति में तो गुरु राजा से अधिक सम्माननीय स्थान प्राप्त करता है । आश्रमकालीन शिक्षा व्यवरथा की सम्पूर्ण आधारशिला गुरु पर ही केन्द्रित थी ।
गुरु सच्चा मार्गदर्शक माना जाता था, जिसके मार्गदर्शन एवं कृपादृष्टि में रहकर कोई भी व्यक्ति सफलता प्राप्त कर सकता था । गुरु व्रजमूढ़ को भी अपने ज्ञान की वर्षा से सिक्त कर ज्ञानी बना देने का सामर्थ्य रखते थे ।
चाहे शिक्षा हो या फिर राजनीति, खेल हो या संगीत या फिर कोई भी कला; ‘गुरु’ का साहचर्य अनिवार्य होता था । धार्मिक, आध्यात्मिक, ज्ञान पिपासु गुरु के चरणों में ही स्वर्ग पाते थे । हिन्दुओं की तरह ही ”सिक्स धर्म” में गुरुओं के प्रति असीम, अपार श्रद्धा भाव पाया जाता है । सिक्सों के दसवें गुरु से लेकर पहले गुरु तक उनके प्राकट्य दिवस को वर्ष में दस बार मनाया जाता है ।
2. गुरुपर्व का महत्त्व:
यह सत्य है कि सभी सिक्स गुरुओं ने अपने शिष्यों एवं भक्तों को निर्गुण, निराकार ईश्वर की भक्ति करने की प्रेरणा दी । सभी गुरुओं ने प्राणिमात्र के प्रति प्रेम और दया भाव को व्यक्त किया है । प्रकृति के कण-कण में ईश्वर पाया जाता है ।
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जाति-पांति, छुआछूत के भेदभाव को मानव धर्म नहीं कहा है । उन सभी ने मानवमात्र की समानता पर बल दिया । मन, कर्म, वचन से आचरण की शुद्धता पर बल दिया । प्रत्येक गुरु पर्व को अत्यन्त श्रद्धा एवं भक्ति भाव से मनाया जाता है ।
प्रार्थना, अरदास करते हुए प्रभात फेरी निकाली जाती है, जिसमें सारे सिक्स धर्मावलम्बी शामिल होते हैं, जो उनके सबद गाते हुए चलते हैं । गुरुद्वारे में अखण्ड पाठ चलता है । भजन-कीर्तन, सबद का गायन होता है । सिर पर कपड़ा धारण कर सभी श्रद्धालुगण प्रार्थना करते हैं । विशाल शोभायात्रा निकाली जाती है, जिसमें कुछ घुड़सवार ”पंच प्यारे” भी होते हैं ।
स्कूलों और कॉलेजों के बच्चे खेलते हुए, तो स्त्रियां भजन-कीर्तन करती हुईं समूह के साथ चलती हैं । पुरुष नंगी कृपाण धारण कर साथ-साथ चलते हैं । ट्रकों में झांकियों के साथ ‘प्रसाद रखा जाता है, जो श्रद्धालुओं में वितरित होता है । बैण्ड-बाजे की धुनों के बीच श्रद्धालुगण आगे चलते रहते हैं ।
स्थान-स्थान पर शोभायात्रा के दौरान ठण्डी लस्सी, पानी व फलों का इंतजाम रहता है । बड़े से कड़ाह में तली हुई पूरियां, बनाये गये छोले ”लंगर” में भोजन के रूप में सभी को समान रूप से परोसे जाते हैं । बिना किसी भेदभाव के सभी वर्गों को लंगर में भोजन कराया जाता है । सिख धर्म का सिद्धान्त: ”कर्म करो और बांटकर खाओ; दान-पुण्य से सबको तृप्त करो; किसी की बुराई न करो, धर्म एवं सत्य मार्ग पर चलो ।”
3. उपसंहार:
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इस तरह ‘गुरु पर्व’ सिक्ख समाज का महान् पर्व है । इसका उद्देश्य भी महान् है । प्रत्येक गुरु पर्व में लंगर की व्यवस्था इसकी मानवतावादी संस्कृति की मिसाल है । सभी गुरुओं के महान आदर्श सभी को प्रेरणा देते हैं; मार्गदर्शन देते हैं । जीवन में शान्ति एवं मोक्ष प्रदान करते हैं ।