Read this essay in Hindi to learn about urbanization and how it had begun.
1975 में विकासशील देशों में केवल 27 प्रतिशत जनता नगरों में रहती थी । 2000 तक यह भाग बढ़कर 40 प्रतिशत हो चुका था और अनुमान है कि 2030 तक 56 प्रतिशत हो जाएगा । विकसित देश पहले ही अत्यधिक नगरीकृत हैं और उनकी 75 प्रतिशत आबादी नगरीय क्षेत्रों में रह रही है । नगरीय जनसंख्या वृद्धि रोजगार के बेहतर अवसर की तलाश में गाँवों से नगरों और कस्बों में लोगों के आगमन तथा नगरों की अपनी जनसंख्या वृद्धि, दोनों ही कारण हो रही है ।
एक कस्बा जब नगर बनता है तो बाहर की दिशा में, आसपास की खेतिहर जमीनों, वनों, चरागाहों और दलदलों जैसे प्राकृतिक क्षेत्रों की ओर ही नहीं बढ़ता, बल्कि ऊँची इमारतों के रूप में आकाश की ओर भी बढ़ता है । अगर सचेत ढंग से उसकी रक्षा न की जाए तो कस्बा अकसर अपनी खुली जगहों और हरियाली से वंचित हो जाता है जिससे नगरीय क्षेत्रों में जीवन की गुणवत्ता नष्ट होती है ।
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उम्दा नगर-योजना में भूमि के बुद्धिसंगत उपयोग, गंदी बस्तियों के उन्नयन, जल- आपूर्ति और विकास में सुधार, पर्याप्त सफाई की व्यवस्था, गंदे पानी के कारण शोधन संयंत्रों की स्थापना और एक कारगर सार्वजनिक यातायात व्यवस्था आवश्यक है ।
ये सभी मुद्दे स्थानीय नगरनिगमों/नगर पालिकाओं के कार्यक्षेत्र में आते हैं । फिर भी, जीवन की बेहतर दशाएँ तभी वास्तविकता बनेंगी जब हर नागरिक पर्यावरण के प्रबंध में एक सक्रिय भूमिका निभाए । इसमें अनेक ‘करणीय और अकरणीय’ बातें आती हैं जो हमारे जीवन की अभिन्न अंग होनी चाहिए ।
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हर नगरीय व्यक्ति पर्यावरण-रक्षक का कार्य करने के अलावा नगर-प्रबंध को प्रभावित करने में समर्थ है । उसे ध्यान देना होगा कि नगर के हरियाली वाले क्षेत्र, पार्क और बाग सुरक्षित रहें, नदियों और जलाशयों का समुचित प्रबंध हो, सड़कों के किनारे वृक्षों की छाया बनी रहे, पहाड़ों की ढालें वनयुक्त हों और खुली जगहों की तरह इस्तेमाल की जाएँ तथा वास्तुकला और धरोहर के स्मारकों की रक्षा की जाए ।
इसमें असफलता से नगरीय समस्याएँ बढ़ती हैं और अंततः निवासियों की स्वास्थ्यकर और सुखी जीवनशैली बनाए रखने की नगर की योग्यता समाप्त हो जाती है । नगरों में जनसंख्या वृद्धि का इन सभी पक्षों से गहरा संबंध है । अनेक नगरों में अकसर योजनाकारों की समय पर प्रतिक्रिया करने की योग्यता की अपेक्षा जनसंख्या अधिक बढ़ जाती है ।
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अगले दशक में छोटे नगरीय क्षेत्र भी तेजी से बढ़ेंगे और अनेक ग्रामीण क्षेत्रों का नया वर्गीकरण करके उन्हें नगरीय क्षेत्रों में रखना पड़ेगा । अनुमान है कि भारत के नगरीय क्षेत्रों में 29.7 करोड़ निवासी बढ़ेंगे । भारत में लोग अधिक आय की आशा से गाँवों से नगरों में आते हैं । ‘आकर्षण’ का कारण यही है । ग्रामीण क्षेत्रों में अवसर की कमी नगरों की ओर पलायन को बढ़ावा देती है ।
नगरीकरण और उद्योगों के कारण खेतिहर जमीनों की हानि, ग्रामीण विकास में सरकारों की असफलता और ग्रामीण क्षेत्रों में आवश्यक बुनियादी ढाँचे का अभाव-ये सभी बातें खेतिहर और प्राकृतिक निर्जन पारितंत्रों से जनता को नगरीय क्षेत्रों की ओर जाने के लिए बाध्य करती है । हमारी विकास की रणनीतियों ने अधिकतर तीव्र विकास पर ध्यान दिया है और खेतिहर ग्रामीण क्षेत्र को विकास के अपेक्षाकृत कम विकल्प दिए हैं । इसलिए जनसंख्या का स्थानांतरण अपरिहार्य है ।
नगरीय क्षेत्रों के आकर्षण का कारण केवल रोजगार के बेहतर अवसर ही नहीं बल्कि बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य रक्षा और अपेक्षाकृत ऊँचा जीवनस्तर भी है । भारत में पिछले कुछ दशकों में पेयजल की आपूर्ति, सफाई, अपशिष्ट प्रबंध, शिक्षा और स्वास्थ्य रक्षा संबंधी सभी सुधार नगर-केंद्रित रहे हैं, भले ही ग्रामीण विकास को बढ़ावा देना घोषित नीति रहा हो । वास्तव में निरंतर बढ़ते ग्रामीण क्षेत्रों में विकास कम ही हुआ है ।
हमारे वनों और पर्वतों जैसे निर्जन क्षेत्रों में रहनेवाली जनता का विकास सबसे अधिक उपेक्षित रहा है । अन्य ग्रामीण समुदायों के लिए प्रयुक्त विकास की विधियों का आदिवासी जनता के लिए इस्तेमाल करना उचित नहीं है जो वनों से प्राप्त प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं ।
विकास का एक अलग ही ढर्रा, जो उनके अपने वातावरण से संसाधनों के निर्वहनीय दोहन पर आधारित हो, उनकी आकांक्षाओं को पूरा कर पाएगा । वैसे आम तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों की आबादी जहाँ है वहीं रहने पर तभी तैयार होगी जब उसे नगरीय क्षेत्रों जैसी ही संतोषजनक जीवनशैली वहाँ पर ही दी जाए ।