Read this essay in Hindi to learn about tuberculosis with the help of a case study.
क्षयरोग (Tuberculosis-TB) हर साल लगभग 20 लाख जानें लेता है । भारत में यह रोग फिर से फैल रहा है और इसका इलाज आज अधिक कठिन है । विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1993 में इसे एक विश्वव्यापी आपातरोग करार दिया । अनुमान है कि 2002 और 2020 के बीच लगभग 100 करोड़ नए लोग प्रभावित होंगे, 15 करोड़ से अधिक बीमार पड़ेंगे और अगर क्षयरोग पर तेजी से नियंत्रण मजबूत न किया गया तो 36 करोड़ लोग इससे मरेंगे ।
क्षयरोग वायु से फैलनेवाला एक संक्रामक रोग है । संक्रामक केवल वे लोग होते हैं जो फेफड़े के क्षयरोग से ग्रस्त होते हैं । ये छूतग्रस्त लोग जब खाँसते, छींकते, बात करते या थूकते हैं तो हवा में tubercle bacilli जीवाणु आ जाते हैं । इस हवा में साँस लेनेवाला व्यक्ति भी इस रोग से ग्रस्त हो जाता है । लंबा बुखार, खाँसी के दौरे और वजन में कमी इसके लक्षणों में शामिल हैं ।
अनुमान है कि इलाज न कराने पर हर क्षयरोगी हर साल औसतन 10 से 15 व्यक्तियों को संक्रमित करेगा । लेकिन संक्रमित व्यक्ति जरूरी नहीं कि बीमार भी पड़े । हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली में क्षयरोग के जीवाणुओं को, जो एक मोटे मोमी खोल से सुरक्षित होते हैं, वर्षों तक निष्क्रिय बनाए रखने की क्षमता होती है । एक व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली जब कमजोर पड़ती है तो इससे ग्रस्त होने की संभावना बढ़ जाती है ।
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क्षयरोग संबंधी कुछ तथ्य:
i. दुनिया की लगभग एक प्रतिशत आबादी हर साल पहली बार क्षयरोग से संक्रमित होती है ।
ii. अनुमान है कि कुल मिलाकर दुनिया की एक-तिहाई आबादी कभी न कभी क्षयरोग के जीवाणुओं से संक्रमित हो सकती है ।
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iii. 5 से 10 प्रतिशत संक्रमित जनता (जो एच आई वी से संक्रमित है) अपने जीवन में कभी न कभी बीमार या संक्रमित हो सकती है ।
iv. क्षयरोग हर साल लगभग 20 लाख जानें लेता है (इसमें एच आई वी से संक्रमित लोग भी शामिल हैं) ।
v. हर साल 80 लाख से अधिक व्यक्ति रोगग्रस्त होते हैं, यानी कि दुनिया में हर सेकंड एक व्यक्ति ।
vi. हर साल क्षयरोग के लगभग 20 लाख मामले उप-सहारा अफ्रीका में सामने आते हैं । एच आई वी और एड्स की महामारी के कारण यह संख्या तेजी से बढ़ रही है ।
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vii. हर साल क्षयरोग के लगभग 30 लाख मामले दक्षिण-पूर्व एशिया में सामने आते हैं ।
viii. हर साल क्षयरोग के ढाई लाख से अधिक मामले पूर्वी यूरोप में सामने आते हैं ।
केस अध्ययन:
भारत में क्षयरोग (Tuberculosis in India):
भारत में 1.4 करोड़ क्षयरोगी हैं जो दुनिया में क्षयरोगियों की संख्या के एक-तिहाई हैं । हर साल 20,000 भारतीय क्षयरोग से ग्रस्त होते हैं और इस असाध्य बीमारी से 1,000 से अधिक की मौत होती है । क्षयरोग 15-50 आयुवर्ग के कामकाजी वयस्कों को निशाना बनाता है ।
कुप्रबंधित क्षयरोग कार्यक्रम से क्षयरोग असाध्य हो सकता है:
अभी 50 साल पहले तक क्षयरोग की कोई दवा नहीं थी । आज ऐसे जीवाणु पैदा हो चुके हैं जिन पर क्षयरोग की अलग-अलग दवाओं का कोई असर नहीं होता । दवारोधी क्षयरोग इलाज में लापरवाही या अधूरेपन से पैदा होता है जब रोगी नियमित रूप से, नियत समय पर दवा नहीं लेते, या जब डाक्टर या स्वास्थ्यकर्मी अधूरे नुस्खे लिखते हैं, या जब दवा की आपूर्ति अनिश्चित होती है । लोक-स्वास्थ्य की दृष्टि से क्षयरोग का खराब या अधूरा इलाज, इलाज न करने से भी बदतर है ।
लोग जब मानक उपचार का चक्र पूरा नहीं करते या उन्हें गलत दवाएँ दी जाती हैं तो वे संक्रमित बने रहते हैं । उनके फेफड़ों में मौजूद जीवाणु दवारोधक बन जाते हैं । उनसे जो लोग संक्रमित होते हैं उनमें भी ऐसे ही दवारोधक जीवाणु पैदा हो जाते हैं । दवारोधक क्षयरोग का इलाज संभव तो है पर इसमें लंबी केमोथैरेपी की अवश्यकता होती है जो अकसर बहुत महँगा होता है और रोगियों के लिए अधिक विषाक्त भी होता है ।