Read this essay in Hindi to learn about solid waste management.
प्राचीन नगरों में जूठन और दूसरी गंदगियों को बस सड़कों पर फेंक दिया जाता था जहाँ वे जमा होते रहते थे । इस काम पर रोक लगानेवाला पहला ज्ञात कानून एथेंस में 320 ईसा-पूर्व के आसपास बनाया गया तथा अनेक पूर्वी भूमध्यसागरीय नगरों में कचरा हटाने की व्यवस्था विकसित होने लगी ।
निबटारे की आरंभिक विधियाँ बहुत फूहड़ थीं, अकसर नगर की दीवार से बाहर किसी खुले गड्ढे में चीजें फेंक दी जाती थीं । जनसंख्या बढ़ी तो कचरे को नगर से और दूर ले जाने के प्रयास होने लगे, नगरों के कूड़ाघर इसी तरह अस्तित्व में आए । अभी हाल तक नगरों के ठोस कचरे के निबटारे पर जनता का ध्यान कुछ खास नहीं जाता था ।
नगर या गाँव की सीमा से बाहर कचरा डालना, कभी-कभी उन्हें जलाना या गड्ढों में भरना उसके निबटारे का पसंदीदा ढंग था । भारत के लगभग सभी नगरों और कस्बों में संपर्क मार्ग प्लास्टिक के रंग-बिरंगे थैली और दूसरे कचरों से भरे दिखाई देते हैं ।
ADVERTISEMENTS:
कचरे का आयतन कम करने के लिए उसे जलाया भी जाता है । दाहन और सफाईयुक्त भूभराव आदि निबटारे की आधुनिक विधियाँ इन समस्याओं के हल के प्रयास हैं । कचरा डालने के लिए स्थल का अभाव संसार के अनेक नगरों और कस्बों में गंभीर समस्या बन चुका है ।
कचरा डालना या जलाना आज पर्यावरण के या स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से स्वीकार्य नहीं है । कचरे का निबटारा अपशिष्ट प्रबंधन की समन्वित योजना का अंग होना चाहिए । एक साझे उद्देश्य की पूर्ति के लिए संग्रह, शोधन, संसाधनों का पुनर्चालन और अंतिम निबटारे की विधियों में समन्वय होना चाहिए ।
नगरीय कचरे की विशेषताएँ (Characteristics of Municipal Solid Waste):
ठोस अपशिष्ट (कचरा) अनेक प्रकार का होता है । ठोस अपशिष्टों के प्रबंध की चुनौतियों को कारगर ढंग से हल करने के लिए इस कचरे का वर्गीकरण आवश्यक है । नगरीय कचरा शब्द का उपयोग सामान्यतः नगर, कस्बा या गाँव के अधिकांश हानिरहित कचरे का वर्णन करने के लिए किया जाता है जिसे नियमित रूप से जमा करके शोधन अथवा निबटारे के स्थान तक ले जाया जाता है ।
ADVERTISEMENTS:
घर, व्यापारिक प्रतिष्ठान और संस्थाएँ इस कचरे के स्रोत हैं, और उद्योग भी । लेकिन औद्योगिक प्रक्रियाओं, निर्माण और तोड़फोड़ से निकले मलबे, गंदी नालियों के कीचड़, खदानों या खेती के अपशिष्ट इसमें शामिल नहीं हैं ।
नगरीय कचरे में अनेक प्रकार की सामग्रियाँ होती हैं । इसमें खाद्य अपशिष्ट (सब्जियों के छिलके, मांस के टुकड़े, जूठन, अंडों के छिलके आदि) होते हैं जिनको नम कचरा कहा जाता है । कागज, प्लास्टिक, टेट्रापैक, प्लास्टिक के डिब्बों, काँच की बोतलों, गत्ते के डिब्बों, एल्युमिनियम की पत्तर, धातु की बनी वस्तुओं, लकड़ी के टुकड़ों आदि को सूखे कचरे की श्रेणी में रखा जाता है ।
नगरीय और औद्योगिक अपशिष्ट के नियंत्रण के उपाय:
ADVERTISEMENTS:
अपशिष्ट (waste) के प्रबंध की एक समन्वित रणनीति के तीन प्रमुख घटक होते हैं:
1) स्रोत पर कमी (Source reduction)
2) पुनर्चालन (Recycling)
3) निबटारा (Disposal)
स्रोत पर कमी (Source reduction) अपशिष्ट में कमी लाने के बुनियादी तरीकों में एक है । कोई वस्तु बनाने के लिए कम सामग्री का उपयोग, यथास्थल उत्पादों का पुनरुपयोग, मात्रा घटाने के लिए उत्पादों या पैकेज की रूपरेखा का निश्चय इसके ढंग हैं । व्यक्तिगत स्तर पर हम खरीदारी में अनावश्यक वस्तुओं का उपयोग घटा सकते हैं, कम से कम पैकेजिंग में वस्तुओं की खरीदारी कर सकते हैं और प्लास्टिक के थैलों के प्रयोग में कमी ला सकते हैं ।
पुनर्चालन (Recycling) का मतलब कचरे के उन अंशों का पुनरुयोग है जिनका कुछ आर्थिक मूल्य हो । पुनर्चालन के सुस्पष्ट लाभ होते हैं, जैसे संसाधनों का संरक्षण, उत्पादन में ऊर्जा के उपयोग में कमी और प्रदूषण के स्तर में कमी । एल्युमिनियम और इस्पात जैसी वस्तुओं का अनेक बार पुनर्चालन संभव है । धातु, कागज, काँच और प्लास्टिकों का पुनर्चालन संभव है । नए एल्युमिनियम का खनन महँगा पड़ता है; इस कारण पुनर्चालित एल्युमिनियम का बड़ा बाजार है और एल्युमिनियम उद्योग में उसकी अहम् भूमिका है ।
कागज का पुनर्चालन जंगलों के संरक्षण में सहायक है क्योंकि एक टन कागज बनाने के लिए 17 पेड़ काटने पड़ते हैं । पीसा हुआ काँच (cullet) नया काँच बनाने में 50 प्रतिशत ऊर्जा की बचत करता है । इससे काँच बनाने की प्रक्रिया के लिए आवश्यक तापमान भी गिर जाता है जिससे ऊर्जा बचती है और प्रदूषण कम होता है । लेकिन एक व्यावहारिक विकल्प होते हुए भी पुनर्चालन अनेक समस्याएँ खड़ी करता है ।
पुनर्चालन से जुड़ी समस्याएँ या तो तकनीकी या आर्थिक हैं । प्लास्टिकों का पुनर्चालन कठिन है क्योंकि उनके उत्पादन में अनेक प्रकार के पॉलिमर रेजिन प्रयुक्त होते हैं । चूँकि हर प्रकार की प्लास्टिक की अपनी खास रासायनिक संरचना होती है, इसलिए विभिन्न प्लास्टिकों का एक साथ पुनर्चालन नहीं किया जा सकता । इसलिए प्लास्टिकों को पुनर्चालन से पहले अलग-अलग करना आवश्यक है । इसी तरह कागज के पुनर्चालन में रेशे कमजोर पड़ते हैं तथा पुनर्चालित उत्पाद के रंग पर नियंत्रण रखना कठिन होता है ।
प्रदूषण की संभावना रोकने के लिए खाद्य पदार्थों के डिब्बों में पुनर्चालित कागज का उपयोग प्रतिबंधित है । रद्दी कागज की अपेक्षा कागज की लुगदी का यातायात अकसर सस्ता होता है । लकड़ी या सेल्युलोज के रेशों से कागज बनाने की अपेक्षा रद्दी कागज की लुगदी बनाना, उसका रंग उड़ाना और फैलाना सामान्यतः महँगा पड़ता है । इस तरह अकसर नए कागज की अपेक्षा पुनर्चालित कागज महँगा पड़ता है । फिर भी प्रौद्योगिकी में सुधार से लागत कम हो जाएगी ।
ठोस कचरे का निबटारा (Disposal) अधिकांशतः सफाईयुक्त भूभराव (sanitary landfills) या दाहन (incineration) के द्वारा किया जाता है । एक आधुनिक सफाईयुक्त भूभराव मिट्टी की अभेद्य सतह में बना गड्ढा होता है जिसपर एक अभेद्य लेप लगा होता है ।
एक सफाईयुक्त भूभराव की तीन बुनियादी विशेषताएँ उसे खुले ढेर से भिन्न ठहराती हैं:
i. कचरे को सावधानी से चुने और तैयार किए गए एक गड्ढे में रखा जाता है ।
ii. कचरे को फैलाकर उसे एक भारी मशीन से दबाकर गठीला (compact) बना दिया जाता है ।
iii. कचरे पर प्रतिदिन गठीली मिट्टी की एक मोटी तह डाली जाती है ।
पुराने भूभरावों की समस्याएँ अकसर भूजल के प्रदूषण से संबंधित होती थीं । एक भूभराव के पेंदे से रिसते प्रदूषक, नीचे मिट्टी की तह चाहे जितनी मोटी हो, अकसर भूमिगत जल तक पहुँच जाते हैं । आज पेंदे में समुचित लेप लगाना और निथार को जमा करने की व्यवस्था करना, तथा साथ में भूमिगत जल के प्रदूषण का पता लगाने के लिए निगरानी की व्यवस्था करना आवश्यक है । दबे हुए कचरे का कार्बनिक भाग सूक्ष्मप्राणियों की क्रिया के कारण विघटित हो जाता है ।
आरंभ में कचरे का वायवीय विघटन होता है जब तक कि नए भरे गए गड्ढे में मौजूद ऑक्सीजन का वायवीय सूक्ष्मप्राणी उपयोग नहीं कर लेते । फिर अवायवीय प्राणी काम करने लगते हैं और मिथेन पैदा करते हैं जो जहरीली होती है तथा 5 से 15 प्रतिशत सीमा तक भी वायु में मिल जाए तो काफी विस्फोटक साबित होती है ।
गड्ढे में अभेद्य अवरोधक लगाकर गैस की गति को नियंत्रित किया जा सकता है । इस प्रकार, रुकी हुई गैस को जमा करके ऊपर सतह तक लाना, जहाँ उसमें सुरक्षित ढंग से मिलावट करके वायुमंडल में छोड़ा जा सके, सफाईयुक्त भूभरावों की रूपरेखा का आवश्यक अंग है ।
हालाँकि भूभराव कचरे के निबटारे का एक सस्ता विकल्प है, पर इसके लिए उपयुक्त स्थानों की तलाश करना अधिकाधिक कठिन होता जा रहा है जो आर्थिक दृष्टि से व्यावहारिक दूरी के अंदर हों । प्रायः नागरिक भी अपने पास-पड़ोस में भूभराव पसंद नहीं करते । एक और कारण यह है कि रूपरेखा और कार्यकलाप चाहे जितने सुविचारित हों, गंदे द्रवों के रिसाव से पर्यावरण की कुछ हानि का खतरा हमेशा रहता है ।
दाहन (Incineration) उपयुक्त तापमान पर और काल की उपयुक्त दशाओं में समुचित ढंग से तैयार भट्टी में नगरों के कचरे को जलाने की प्रक्रिया है । दाहन एक रासायनिक प्रक्रिया है जिसमें कचरे की ज्वलनशील मात्रा ऑक्सीजन से मिलकर कार्बन डाइआक्साइड और जल बनाती है जो मुक्त होकर वायुमंडल में चले जाते हैं । ऑक्सीकरण नाम की इस रासायनिक प्रतिक्रिया में उष्मा मुक्त होती है ।
पूर्ण ऑक्सीकरण के लिए कचरे को एक घंटे तक लगभग 815० सेल्सियस पर वायु की समुचित मात्रा में जलाना चाहिए । दाहन नगरों के कचरे के भार को लगभग 90 और आयतन को 75 प्रतिशत कम कर देता है । लेकिन दाहन में वायु की गुणवत्ता और विषैलेपन संबंधी जोखिम पैदा होते हैं तथा दाहन प्रक्रिया के दौरान उड़नेवाली और नीचे बैठी राख को निबटाने की समस्या पैदा होती है । उड़नेवाली राख फ्लाई-ऐश में चिंगारियों, खनिजों के कण और कालिख समेत बारीक कणपदार्थ होते हैं ।
दाहन की राख में अधिकतर बाटम-ऐश होती है जबकि वाकी भाग फ्लाई-ऐश का होता है । इस राख में भारी धातुओं की संभावित उपस्थिति हानिकारक होती है । इसलिए विषैली वस्तुओं और अरी धातुओं से युक्त सामग्रियों (जैसे बैटरियों और प्लास्टिकों) को अलग कर देना चाहिए । इसमें व्यापक वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के उपकरणों की, उच्चस्तरीय तकनीकी निगरानी की तथा समुचित कार्यकलाप और रखरखाव के लिए कुशल कर्मचारियों की आवश्यकता होती है । इस तरह जहाँ सफाईयुक्त भूभराव और दाहन के अपने लाभ और अपनी हानियाँ हैं, वहीं कचरे के प्रबंध का सबसे कारगर तरीका स्रोत पर कमी (source reduction) और पुनर्चालन (recycling) है ।
कृमि-कंपोस्टिंग (Vermicomposting):
प्रकृति से अगर छेड़छाड़ न हो तो प्रकृति जो अपशिष्ट (waste) पैदा करती है उसकी सफाई के उपाय भी उसके पास हैं । जैव भू-रासायनिक चक्रों का मकसद प्राणियों और पौधों से पैदा अपशिष्ट की सफाई ही है । प्रकृति में कार्यरत विधियों को हम भी अपना सकते हैं । सभी मृत और सूखे पत्तों और टहनियों को पहले केंचुए और कीड़े-मकोड़े और बाद में जीवाणु और कवक विघटित करके मिट्टी जैसा काला और समृद्ध पदार्थ बनाते हैं जिसे कंपोस्ट कहते हैं ।
मिट्टी के ये प्राणी कार्बन वस्तुओं का उपयोग भोजन के रूप में करते हैं जिससे उन्हें वृद्धि और कार्यकलाप के लिए पोषकतत्त्व मिलते हैं । ये पोषकतत्त्व फिर मिट्टी में वापस आ जाते हैं जिनको पेड़ और अन्य पौधे ग्रहण करते हैं । यह प्रक्रिया प्रकृति में पोषकतत्त्वों का पुनर्चालन करती है । इस मिट्टी का उपयोग खेतों और बागों में खाद के रूप में किया जा सकता है ।
घातक अपशिष्ट (Hazardous Wastes):
आधुनिक समाज भारी मात्रा में घातक अपशिष्ट पैदा कर रहा है । ये रसायन-उत्पादक कारखानों, तेलशोधक संयंत्रों, कागज के कारखानों, प्रगलन भट्टियों और अन्य उद्योगों में पैदा होते हैं । घातक अपशिष्ट वे हैं जो मानव या पर्यावरण को हानि पहुँचा सकते हैं ।
सामान्यतः अपशिष्टों को घातक तभी कहा जाता है जब वे सही शोधन, भंडारण, यातायात और निबटारे के अभाव में मृत्यु के कारण बनें या मृत्यु दर की वृद्धि में सहायक हों, या किसी असाध्य रोग को या साध्य मगर लाचार करने वाले रोग को जन्म दें या मानव के स्वास्थ्य या पर्यावरण को प्रत्यक्ष रूप से भारी हानि पहुँचा रहै हों या आगे चलकर पहुँचा सकें ।
घातक अपशिष्टों की विशेषताएँ (Characteristics of Hazardous Wastes):
किसी अपशिष्ट को घातक तब कहते हैं जब उसमें चार विशेषताओं में कोई एक दिखाई पड़े । ये विशेषताएँ हैं भौतिक या रासायनिक विषैलेपन के कारण क्रियाशीलता, ज्वलनशीलता और संक्षारकता (corrosivity) । इनके संक्रामक या रेडियोधर्मी अपशिष्टों को भी घातक अपशिष्टों की श्रेणी में रखा जाता है ।
विषैले अपशिष्ट (toxic wastes) वे पदार्थ हैं जो बहुत कम या सूक्ष्म मात्राओं में भी जहर होते हैं । कुछ का तो इंसानों या जानवरों पर तीव्र या तात्कालिक प्रभाव भी पड़ता है तथा ये मृत्यु या भयानक रोगों के कारण बनते हैं । कुछ अन्य का दीर्घकालिक प्रभाव होता है और ये संबद्ध व्यक्तियों को धीरे-धीरे अपूरणीय हानि पहुँचाते हैं ।
तेज विषैलेपन का जल्द पता चल जाता है क्योंकि उसमें सेवन के कुछ ही समय बाद प्राणियों में उसका असर दिखाई देने लगता है । दीर्घकालिक विषैलेपन का पता लगाना अधिक कठिन है क्योंकि प्रभाव हो सकता है बरसों बाद दिखाई पड़े । कुछ विषैले अपशिष्ट कैंसरजनक (carcinogenic) होते हैं और कुछ विकारजनक (mutagenic) होते हैं जो प्रभावित बच्चों और पशुओं में शारीरिक परिवर्तन पैदा करते हैं ।
क्रियाशील अपशिष्ट (reactive wastes) वे पदार्थ हैं जिनमें वायु या जल के साथ तीव्र प्रतिक्रिया होती है । ये तीव्र आघात या गर्मी लगने पर विघटित हो जाते हैं, विषैली गैसें पैदा करते हैं या रोजमर्रा के प्रबंध के दौरान विस्फोट पैदा करते हैं जैसे बारूद, नाइट्रोग्लिसरीन आदि ।
ज्वलनशील अपशिष्ट (ignitable wastes) वे हैं जो अपेक्षाकृत कम तापमान (60० सेल्सियस से कम) पर भी जल जाते हैं और जिनमें भंडारण, परिवहन या निबटारे के दौरान फौरन जलने की क्षमता होती है, जैसे पेट्रोल, पेंट थिनर और अल्कोहल ।
संक्षारक अपशिष्ट (corrosive wastes) वे हैं जो रासायनिक प्रतिक्रिया के द्वारा वस्तुओं और सजीव ऊतकों को नष्ट करते हैं, जैसे अम्ल और क्षार ।
संक्रामक अपशिष्ट (infectious wastes) में शल्यक्रिया में निकले मानवी ऊतक, प्रयोग की जा चुकी पट्टियाँ और सुइयाँ, सूक्ष्म जैविक पदार्थ आदि शामिल हैं ।
रेडियोधर्मी अपशिष्ट (radioactive wastes) बुनियादी तौर पर परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से पैदा होते हैं तथा उल्लेखनीय सीमा तक विघटित होने से पहले हजारों वर्षों तक वातावरण में बने रहते हैं ।
घातक अपशिष्टों के कारण पर्यावरण की समस्याएँ और स्वास्थ्य संबंधी खतरे (Environmental Problems and Health Risks Caused by Hazardous Wastes):
अधिकांश घातक अपशिष्टों का भूमि पर या भूमिगत निबटारा किया जाता है । इसलिए भूमिगत जल का प्रदूषण पर्यावरण संबंधी सबसे गंभीर समस्या है । भूमिगत जल जब घातक अपशिष्टों से प्रदूषित हो जाता है तो अकसर इस हानि को पलट सकना संभव नहीं हो पाता ।
फसलों की रक्षा और उत्पादन बढ़ाने के लिए कीटनाशकों का अधिकाधिक उपयोग किया जा रहा है । ये मिट्टी में बचे रहते हैं और बहकर नालों में चले जाते हैं जो उन्हें आगे ले जाते हैं । ये मिट्टी में या झीलों और नदियों की तलहटी में भी बने रहते हैं । इनसे संपर्क कुछ खाने, साँस लेने पर या त्वचा के द्वारा होता है तथा तीव्र या दीर्घकालिक विषाक्तता पैदा होती है ।
आज समन्वित कीट प्रबंध (Integrated Pest Management-IPM) के अत्यधिक उपयोग का एक विकल्प है । इसमें अनेक प्रकार के पौधों और कीटों का उपयोग किया जाता है ताकि प्राकृतिक प्रक्रिया द्वारा कीट नियंत्रण हो सके । जलवायु, मिट्टी और कीड़े-मकोड़ों के बीच प्राकृतिक संतुलन किसी क्षेत्र में कीटों की जनसंख्या की अतिवृद्धि को और किसी विशेष फसल के नाश को रोकता है ।
सीसा (lead), पारा (mercury) और आर्सेनिक (arsenic) घातक पदार्थ हैं जिन्हें अकसर भारी धातु (heavy metals) कहा जाता है । सीसा प्रचुर मात्रा में मिलने वाला भारी धातु है और इसका उत्पादन अपेक्षाकृत आसान है । इसका उपयोग बैटरियों, ईंधन, कीटनाशकों, रंगों, पाइपों में और उन स्थानों पर किया जाता है जहाँ संक्षारण (corrosion) का प्रतिरोध आवश्यक है ।
लोगों और पशुओं द्वारा ग्रहण किया गया अधिकांश सीसा हड्डियों में जमा होता है । सीसा रक्त की लाल कोशिकाओं की ऑक्सीजन लाने-ले जाने की क्षमता को प्रभावित करता है और उनका जीवनकाल कम करता है । सीसा स्नायुतंत्र के ऊतकों को भी नुकसान पहुँचा सकता है ओर मस्तिष्क रोग पैदा कर सकता है ।
पारा अनेक रूपों में पाया जाता है । इसका प्रयोग क्लोरीन के उत्पादन में तथा कुछ प्लास्टिकों के उत्पादन में उत्प्रेरक के रूप में किया जाता है । अधिकतर क्लोरीन और प्लास्टिक के उत्पादन जैसी औद्योगिक प्रक्रियाएँ ही पारे से पर्यावरण की हानि के लिए जिम्मेदार हैं । हमारे शरीर में पारे को नष्ट करने की सीमित क्षमता है । खाद्य-जाल में पारे को जब अनेक प्राणी ग्रहण करते हैं तो उसका संकेंद्रण बढ़ जाता है । जलीय पर्यावरण में पारे को प्लैंक्टन ले लेते हैं और फिर उन्हें मछलियाँ खा जाती हैं ।
इसके अलावा मछलियाँ गलफड़ के रास्ते या पारे से प्रदूषित अन्य मछलियों को खाकर भी पारे को ग्रहण करती हैं । आम तौर पर मछली की आयु जितनी अधिक होती है उसके शरीर में पारे की मात्रा भी उतनी ही अधिक होती है । मछलियाँ खानेवाले पक्षियों के शरीर में उनका संकेंद्रण और बढ़ जाता है । यह एक संचयी विष है जो लंबे समय तक शरीर में संचित रहता है और मस्तिष्क को हानि पहुँचाता है ।
आज उद्योगों में हजारों रसायनों का प्रयोग हो रहा है । इनका गलत या अनुपयुक्त प्रयोग स्वास्थ्य के लिए खतरे पैदा कर सकता है । पालीक्लोरिनेटेड बाइफिनाइल (polychlorinated biphenyls-PCBs) अग्निरोधक होते हैं और बिजली के सुचालक नहीं होते । इस कारण ये अनेक औद्योगिक कार्यों के लिए उत्तम होते हैं । लेकिन वर्षा का जल इनको इनके निबटारे के स्थानों से बहाकर भूजल को प्रदूषित करता है ।
ये यौगिक पर्यावरण में जल्दी विघटित नहीं होते और इसलिए इनकी विषाक्तता भी बनी रहती है । मानव और पशु दोनों के लिए इनके दीर्घकालिक संपर्क से समस्याएँ पैदा होती हैं । ये गुर्दों और जिगर में जमा होकर हानि महुँचाते हैं । इनके कारण पक्षियों और स्तनपायी प्राणियों की प्रजनन शक्ति भी नष्ट हो सकती है ।
विनाइल क्लोराइड (vinyl chloride) वह रसायन है जिसका प्लास्टिक उत्पादन में व्यापक प्रयोग होता है । सामान्यतः लोगों का इससे अत्यधिक संपर्क तभी होता है जब वे उसके साथ या उसके आस-पास कार्यरत हों, पर विनाइल क्लोराइड गैस के रिसाव से भी प्रभाव पड़ सकता है । लंबे (एक से तीन साल तक) संपर्क के बाद इंसानों में इससे बहरापन, दृष्टि संबंधी समस्याएँ, रक्तप्रवाह संबंधी दोष और हड्डियों में विकृतियाँ पैदा होती हैं । विनाइल क्लोराइड से जन्मगत विकार भी आ सकते हैं ।
पालीक्लोरिनेट बाइफिनाइलों और विनाइल क्लोराइड की जगह कम विषैले रसायनों का प्रयोग आवश्यक है । प्लास्टिकों का उपयोग कम करके हम पालीविनाइल क्लोराइड का प्रयोग कम कर सकते हैं । इस तरह कचरा कम करके, पुनर्चालन को बढ़ावा देकर तथा सुंदर और टिकाऊ वस्तुओं का प्रयोग करके हम इन रसायनों के उपयोग में कमी ला सकते हैं जिसके कारण इनसे हमारा संपर्क भी कम होगा ।
हो सकता है हम यह बात न महसूस करें, पर अनेक घरेलू रसायन मनुष्यों और पशुओं के लिए काफी विषैले हो सकते हैं । हमारे घरों में अधिकांश घातक रसायन विभिन्न प्रकार की सफाई की वस्तुओं, घोलकों और वाहनों की देखभाल में प्रयुक्त पदार्थों में होती हैं । इन पदार्थों के गलत उपयोग पर वे हानिकारक हो सकते हैं ।
आज भूभराव और दाहन घातक अपशिष्टों के निबटारे की सबसे प्रचलित विधियाँ हैं । जिन देशों में निबटारे के लिए पर्याप्त भूमि उपलब्ध है, जैसे उत्तरी अमरीका के देशों में, वहाँ भूभराव सबसे अधिक प्रयुक्त विधि है । यूरोपीय देशों और जापान में जहाँ भूमि आसानी से उपलब्ध नहीं है और महँगी है, दाहन निबटारे की पसंदीदा विधि है । लेकिन सख्त कानूनों के बावजूद इन अपशिष्टों का गैरकानूनी जमाव जारी है । घातक अपशिष्टों के प्रबंध में भूभराव और दाहन के अलावा और भी विधियाँ होनी चाहिए ।
उद्योगों को प्रोत्साहन देना होगा कि वे उत्पादन प्रक्रिया में घातक अपशिष्ट कम पैदा करें । हालाँकि विषैले अपशिष्टों की संपूर्ण समाप्ति संभव नहीं है, पर उनको कम करने, उनका पुनर्चालन और पुनरुपयोग करने की प्रौद्योगिकियाँ उपलब्ध हैं । प्रबुद्ध जनता भी इस कार्य में भारी योगदान दे सकती है ।
हमारे लिए रासायनिक वस्तुओं के दुष्प्रभावों को समझना आवश्यक है ताकि हम उनके उपयोग के बारे में प्रबुद्ध निर्णय ले सकें । हमें तय करना होगा कि एक विषैले पदार्थ के उपयोग के खतरे यदि उसके लाभ से अधिक हों तो उसका उपयोग हम न करें या फिर यह तय करना होगा कि एक पदार्थ का उपयोग कुछ विशेष दशाओं में ही किया जा सकता है जिनमें उस पर पर्याप्त नियंत्रण रहे और विषैलेपन के स्तर से संपर्क का खतरा न हो ।