Read this essay to learn about radiotherapy in Hindi language.
परिचय:
यह मेडिसिन की एक शाखा है, जिसमें ओपोनाइजिंग विकिरण का प्रयोग भिन्न रोगों के उपचार में किया जाता है । रेडियोथेरेपी में एक्स-रे के अतिरिक्त रेडियम से निकलने वाले तथा अन्य विकिरणों का भी प्रयोग किया जाता है ।
रेडियेशन थेरेपी का प्रयोग चूंकि कैंसर के उपचार में किया जाता है, अत: विकिरण के कार्य का बेसिक मोड़ डोज के बारे में जानकारी आवश्यक है । डोज में दी गयी विकिरण की मात्रा तथा दो डोजों के बीच का समय बहुत महत्वपूर्ण होता है । डोज की माप कुछ उपकरणों की सहायता से सही-सही की जा सकती है ।
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डोज की मात्रा:
रोगी के शरीर में किसी भी बिन्दु पर एबजार्वड डोज की माप आवश्यक है ।
एब्जार्बड डोज:
यह अवशोषित करने वाले पदार्थ के प्रति यूनिट भार द्वारा विकिरण पुंज से अवशोषित ऊर्जा की मात्रा है । विकिरण को रान्जन, रैड व रैम में मापते है ।
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रान्जन:
यह एक्सपोजर की यूनिट है, तथा किसी भाग को दिये गये विकिरण की माप में इसका प्रयोग होता है । रान्जन हवा में किसी बिन्दु पर शोषित रेडियेशन की मात्रा है, अर्थात एक मिली॰ हवा द्वारा पैदा किये गये आयनों की मात्रा है । आजकल एस-1 तन्त्र मे कूलम्ब/किग्रा॰ का प्रयोग किया जाता है ।
एक रान्जन = 2.58 x 10 कूलम्ब/किग्रा॰ वायु रान्जन का प्रयोग 3 मिलियन वोल्ट तक की एकस-रे व गामा रे के लिए ही किया जाता है ।
रेड:
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यह अब्जार्बड डोज की यूनिट है । यह बाड़ी टिश्यू या किसी अन्य पदार्थ के प्रति ग्राम द्वारा अवशोषित विकिरण ऊर्जा की मात्रा है । आजकल इसके स्थान पर ग्रे का प्रयोग किया जाता है ।
ग्रे (जी॰ वाई) = 1 जूल/किग्रा॰
1 ग्रे = 100 रेड
प्रति रेड के लिए शरीर के प्रति ग्राम टिश्यू को 100 अर्ग ऊर्जा अवशोषित करनी होगी । सामान्य उपचार के लिए 100 किलोवोल्ट से 2 मिलि॰ वोल्ट में साफ टिश्यू की 1 रान्जन एक्सपोजर से लगभग 1 रेड डोज मिलेगी ।
रेम:
यह अर्न्जाबड व डोज मोडीफाइंगफैक्टर का गुणनफल होता है । अधिकतम परिमिसिविल डोज (एम॰पी॰डी॰) 30 वर्ष के समय समाज के किसी भी व्यक्ति को पांच रेम से अधिक नहीं होनी चाहिए ।
कूरी:
यह एक ग्राम रेडियम से निकली हुई रेडोन की मात्रा (इक्यूलिब्रियम में) को दर्शाती है तथा किसी रेडियोएक्टिव आइसोटोप की क्रियाशीलता (एक्टीवीटी) बताती है । इसकी परिभाषा इस प्रकार भी देते हैं कि एक सेकण्ड में कितने डिसइन्ट्रेगेस्न हो रहे हैं ।
1 कूरी = 3.7 x 1010 डिसईन्ट्रेगेस्न प्रति सेकण्ड
बेक्यूरल (बीक्यू) 1 कूरी = 3.7 x 1010 बी क्यू
हाफ वेल्यू लेपर (एच॰वी॰एल॰):
किसी पदार्थ की वह मोटाई जो डोज को इसकी आरंभिक स्थिति से आधा कर दें, एच॰बी॰एल॰ कहलाती है । इसे मिमी॰ या सेमी॰ में व्यक्त करते हैं । सामान्यतया एच॰बी॰एल॰ पदार्थ के रूप मे तांबा, लेड व एल्यूमिनीयम का प्रयोग किया जाता है ।
ट्यूमर लिथल डोज (टी॰एल॰बी॰):
विकिरण की वह मात्रा जो ट्यूमर को पूरी तरह नष्ट कर ट्यूमर का पूर्ण व स्थायी विनाश कर दे ।
थेरेप्यूटिक रेशियों:
यह सामान्य टिश्यू टालेरन्स व ट्यूमर लीथल डोज का अनुपात होता है । यदि वह अनुपात एक से अधिक हो तो यह माना जाता है कि ट्यूमर रेडियोसेन्सिटिव है ।
टारगेट वोल्यूम:
उपचार किया जाने वाला एरिया (ट्यूमर एरिया व आसपास का सामान्य टिश्यू) ।
ट्यूमर वोल्यूम:
यह ग्रास ट्यूमर व इसके माइक्रोस्कोपिक फैलाव, जो सामान्य आंखों से नहीं दिख पाता है, को निरूपित करता है (चित्र 14.1) ।
ट्यूमर डोज:
यह दयूमर की किसी विशिष्ट स्थिति में एब्जार्बड, डोज की मात्रा रैड में है ।
डेप्थ डोज़ का प्रतिशत:
इस पर:
1. ट्यूमर की गहराई
2. फील्ड साइज के डाइमेन्शन व
3. स्किन सोर्स दूरी (एस. एस. डी.) का प्रभाव पड़ता है ।
विकिरण के साधन तथा इनका प्रयोग:
रेडियोथेरेपी, ब्रेकीथरेपी या टेलीथैरेपी द्वारा की जा सकती है ।
ब्रेकीथरेपी:
इसमें विकिरण सोर्स को ट्यूमर में इन्सर्ट कर देते हैं या ट्यूमर के बहुत पास रखते हैं । जब इसे दयूमर कई अन्दर रखते हैं तो इन्टरस्टीसियलथेरेपी कहलाती है जैसे जीभ व गाल में । तथा जब विकिरण सोर्स को बाडी कैबेटी में रख देते हे, तो इसे इन्ट्राकैवेटरी ब्रेकीथेरेपी कहते हैं जैसे वेजाइना, गर्भाशय, इसोफेगस आदि ।
ब्रेकीथेरेपी के लाभ:
1. सोर्स लगातार ट्यूमर और टिश्यू के स्पर्श मे रहता है ।
2. आस पास का सामान्य टिश्यू बचाया जा सकता है ।
3. डोज का वितरण निर्धारित किया जा सकता है ।
हानियां:
1. सभी स्थानो पर इसका प्रयोग संभव नहीं है ।
2. डोज का निर्धारण बिलकुल सही-सही होना चाहिए ।
3. विकिरण से होने वाली रियेक्शन रोकनी संभव नहीं है ।
4. प्राय: वार्ड में भर्ती आवश्यक है ।
5. बहुत क्य रोगियों का उपचार एक समय पर संमव है ।
टेलीथेरेपी:
टेलीथैरेपी द्वारा ट्यूमर के उपचार में विकिरण का सोर्स दूरी पर स्थित होता है । जैसे एक्स-रे व कोबाल्ट ।
टेलीथेरेपी से लाभ:
1. अधिक संख्या में रोगियों का प्रतिदिन उपचार किया जा सकता है ।
2. रेडियेशन रियेक्शन प्रतिदिन देखा जा सकता है । अत: विकिरण डोज का निर्धारण आसानीपूर्वक संभव है ।
3. कुछ दुर्गम स्थानों पर स्थित कैंसरों का इलाज भी किया जा सकता है ।
4. डोज वितरण व निर्धारण, फील्ड साइज व डायफ्रामों के प्रयोग द्वारा ज्यादा आसानीपूर्वक किया जा सकता है ।
हानियां:
1. रोगी को प्रतिदिन कई हफ्तों आना पड़ सकता है ।
2. आस पास के टिश्यू में भी विकिरण लग जाता है ।
गामा रेडियेशन:
इसे किलोवोल्टेज व मेगावोल्टेज रेडियेशन दो भागों में बांटा जा सकता है ।
किलोवोल्टेज रेडियेशन:
यह आयोनाइजिंग विकिरण होता है जिसकी ऊर्जा एक मिलियन इलेक्ट्रॉन बोल्ट से कम होती है ।
किलोवोल्टेज व मेगावोल्टेज विकिरण में अन्तर:
1. पेनीट्रेशन:
मेगावोल्टेज रेडियेशन की पेनीट्रेशन सर्किल अधिक होती है, अत: वे अच्छी डेप्थडोज प्रदान करते हैं ।
2. मेगावोल्टेज रेडियेशन की अच्छी डेप्थ डोज होने के कारण त्वचा को कम डोज मिलती है । अत: उपचार फील्डों की कम संख्या द्वारा ही किया जा सकता है । अत: इससे ट्रीटमेंट प्लानिंग आसान हो जाती है ।
3. स्किन स्पेयरिंग प्रभाव मेगावोल्टेज विकिरण में यह प्रभाव होता है, क्योंकि ऊर्जा के आधार पर मैक्सिमम विल्डअप त्वचा के नीचे होता है । त्वचा को भिन्न डोज प्राप्त होती है ।
4. बोन स्पेयरिंग प्रभाव:
मेगावोल्टेज रेडियेशन में बोन स्पेयरिंग प्रभाव होता है यह फोटोइलैक्ट्रीक प्रभाव न होने के कारण होता है । जबकि किलोवोल्टेज विकिरण में फोटोइलैक्ट्रीक शोषक (अवशोषक) होने की बजह से कम डोज ट्यूमर तक पहुंच पाती है । इसे चित्र 14.2 में दिखाया गया है ।
ब्रेकीथेरेपी में प्रयोग होने वाले प्रमुख रेडियोआइसोटोप:
1. रेडियम Ra 126
2. सीजियम C.s. 136
3. कोबाल्ट C.o. 60
4. इरीडियम I.r. 192
टेलीथेरेपी में प्रयोग होनेबाले आइसोटोप:
कोबाल्ट
सीजियम