Read this essay to learn about radiation in Hindi language.
भौतिक शास्त्र की परिभाषा के अनुसार विकिरण एक ऐसी ऊर्जा है जो निर्वात में अर्थात किसी माध्यम के एक स्थान से दूसरे स्थान तक गमन कर सकती है । ऊष्मा व प्रकाश विकिरण के कुछ उदाहरण हैं जो हमारी इन्द्रियों द्वारा महसूस किए जा सकते हैं । पर एक्स किरणों जैसे विकिरण हमारी इन्द्रियों द्वारा महसूस नहीं किया जा सकता ।
यही कारण है कि जहां दूसरी अम्य ऊर्जा द्वारा तुरन्त दर्द की अनुभूति होती है, वहीं एक्स किरणोंकी अधिक मात्रा पर भी दर्द की अनुभूति नहीं होती । यदि धूप से चमड़ी काफी जल जाय तो कुछ ही घंटों में जलन का अनुभव होने लगता है, जबकि एक्स किरणों के उद्मास के बाद रोग के लक्षण दिखाई देने में कुछ हफ्तों से कई वर्ष लग सकते है ।
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एक्स किरणों जैसे विकिरण में एक यह गुण है कि वे पदार्थ में आयनीक्वण अर्थात धनात्मक और ऋणात्मक परमाणु अथवा अणु जिन्हें आयन कहते हैं, पैदा करते हैं । अत: आगे से इन्हें आयनीकारक विकिरण से संबोधित करेंगे ।
क्योंकि आयनी कारक विकिरण की अनूभूति इन्द्रियों द्वारा नहीं की जा सकती, अत: उनसे बचाव उसी प्रकार नहीं कर सकते जैसे ऊष्मा ऊर्जा से गर्म होने का आभास होने पर अर्थात यदि कहीं अग्नि जल रही हो तो स्वयं ही उसके पास तक नहीं पहुंचेंगे क्योंकि पास जाने पर जलने का भय होगा ।
इसलिए सन् 1895 में रोंजन द्वारा एक्स किरणों के आविष्कार के बाद शीघ्र ही आयनीकारक विकिरण से क्षति का ज्ञान होने पर भी इसकी क्षति का मात्रात्मक अनुमान तब तक नहीं लगाया जा सका जब तक संसूचकों (डिटेक्टर्स) का विकास नहीं हो गया इसलिए पदार्थ से इन विकिरण की अन्तरक्रिया के गुणों के अध्ययन के बाद ही बचाव या संरक्षण के उपाय सोचे जा सके ।
1898 में क्यूरी दम्पत्ति द्वारा रेडियम के आविष्कार के साथ ही आयनीकारक विकिरण के दूसरे स्रोत भी उपलब्ध हो गए । रेडियम जैसे पदार्थ से धनात्मक हीलियम परमाणु जिन्हें अल्फा कण कहते है, और उदासीन यानी आवेशहीन पर अधिक भेदन क्षमता के कारण, जिन्हें गामा किरण कहते है, उत्सर्जित होते हैं ।
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गामा किरणें विद्द्युतीय चुम्बकीय विकिरण का ही एक रूप हैं । एक्स किरण भी इसी प्रकार का विकिरण है । यदि ये किरणें एक्सरे मशीन से पैदा की जायें तो गामा किरणों की तुलना में कम शक्तिशाली होती हैं । पर यदि त्वरक से पैदा की जायें तो गामा किरणों से अधिक शक्तिशाली होती हैं ।
जहां एक्स किरणें शरीर पर केवल बाहर से ही पड़ सकती हैं वहीं दूसरी किरणें शरीर के अन्दर भी प्राप्त हो सकती हैं, यदि उनको उत्सर्जित करने वाले पदार्थ द्रव या पाउडर अवस्था में हों । क्योंकि ऐसी अवस्था में वे मुंह अथवा घाव के जरिये हमारे शरीर में अन्दर पहुंच सकते हैं, हां यदि विकिरण उत्सर्जक ठोस अर्थात बाधित अवस्था में हों, तो एक्स किरणों की तरह शरीर को केवल बाहर से ही उद्भासित कर सकते हैं । इस प्रकार एक्स किरणों या विकिरण के बाधित स्रोत बाहर से उद्भास दे सकते हैं और अबाधित स्रोत बाहरी एवं आन्तरिक दोनों उद्भास दे सकते हैं ।
विकिरण संरक्षण या सुरक्षा संतोषजनक है अथवा नहीं, इसको निश्चित के लिए विकिरण क्षति मूल्यांकन आवश्यक है । इस मूल्याकन के बिना कुछ लोगों में, जो विकिरण से डरते हैं, विकिरण स्तर सुरक्षित सीमा में होने भी घबराहट पैदा हो जाएगी और कुछ लोग जो विकिरण के प्रति लापरवाह हैं, उच्च विकिरण क्षेत्र में भी निधड़क चले आएंगे और उद्भूति हो जाएंगे ।
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यहां यह स्पष्ट कर दें कि विकिरण उद्भास को शून्य कर देना असंभव है क्योंकि हम अपने दैनिक जीवन में लगातार दिन रात ब्रह्माण्डीय किरणों (जो सुदूर अन्तरिक्ष से हमारे पास आ रही हैं) से उद्भाषित होते ह्ते हैं ओर इसके अलावा भवन निर्माण के लिए काम आने वाले पदार्थ, दूध, वायु और शरीर स्वयं से हमें विकिरण प्राप्त होता रहता है । सारिणी 6.1 में इसके आंकड़े दिए गए हैं ।
यह जानने के लिए कि आयनी कारक विकिरण की कितनी मात्रा हानिकारक है विस्तार से अनुसंधान एवं परीक्षण किए गए हैं । विकिरण कार्मिकों के चिकित्सीय परीक्षणों और हिरोशिमा एवं नागासाकी के उत्तरजीवियों पर विकिरण के प्रभावों के अध्ययन से भी कुछ निष्कर्ष निकाले गए हैं । इन्हीं निरीक्षणों के आधार पर अनुइाएय सीमा भी निश्चित की गई है ।
वर्तमान विचारधारा के अनुसार विकिरण मात्रा को जितना कम से कम संभव हो उतना प्राप्त करना चाहिए पर अनुसय सीमा से अधिक नहीं । अब तक यह अनुज्ञेय सीमा विकिरण कार्मिकों के लिए 50 मिलीसीवर्ट (5 रैम) प्रतिवर्ष थी, पर आई॰सी॰आर॰पी॰-60 के अनुसार इसको 5 लगातार वर्षो में विकिरण कार्मिकों के लिए कुल मात्रा 100 मिलीसीवर्ट और जन साधारण को 3 मिलीसीवर्ट कर दी गई है ।
हां किसी एक वर्ष मं विकिरण कार्मिक 50 मिली सीवर्ट प्राप्त कर सकता है । इसके अनुसार अधिक उद्भास से दूर रहना चाहिए एवं कम से कम विकिरण प्राप्त करना चाहिए । अंगेजी में इसे “अलारा” सिद्धान्त कहते हैं हिन्दी में “जिस्सा” अर्थात जितना स्वल्प संभव हो उतना कह सकते हैं ।
रेडियोलोजी विभाग में निर्बाधित स्रोत ही काम में नहीं लाए जाते हैं । अत: इस अध्याय में एक्स व बाधित गामा स्रोतों के बारे में विस्तार से चर्चा होगी । पारंपरिक व कम्प्यूट्रीकृत टोमोग्राफी (सी॰टी) दोनो ही प्रकार की मशीनों से, निदान कार्य में सुरक्षा पर तो विस्तार से चर्चा की जाएगी, पर ‘निर्वाधित स्रोतों से कार्य में सुरक्षा’ पर संक्षिप्त विवरण भी दिया जायगा ।
विकिरण खतरे या क्षति के मूल्यांकन एवं उन पर नियंत्रण को स्पष्ट रूप से समझाने के लिए इस अध्याय को कुछ भागों में बांट दिया गया है जैसे विकिरण से क्षति, पदार्थ में अन्तरक्रिया, मापन इकाइयां, विकिरण संसूचन (डिटेक्टरस) के सिद्धान्त और विकिरण संरक्षण की विधियां ।