Read this essay in Hindi to learn about ozone layer depletion and its consequences.
ओजोन ऑक्सीजन पर सूरज के प्रकाश की क्रिया से बनता है । यह पृथ्वी की सतह से 20 से 50 किमी ऊपर एक पर्त बनाता है । वायुमंडल में यह प्रक्रिया प्राकृतिक रूप से चलती है, पर बहुत धीमी होती है । ओजोन तेज महक वाला एक अत्यधिक विषैली गैस है । यह ऑक्सीजन का एक रूप है जिसके प्रत्येक अणु में तीन परमाणु होते हैं । भूमि पर इसे प्रदूषक माना जाता है तथा यह दमा और ब्रांकाइटिस जैसे साँस की बीमारियाँ पैदा करता है ।
यह वनस्पतियों को भी हानि पहुँचाता है तथा प्लास्टिक और रबड़ जैसी वस्तुओं को नष्ट कर सकता है । लेकिन ऊपरी वायुमंडल का ओजोन सभी जीवनरूपों के लिए अनिवार्य है क्योंकि यह पृथ्वी का सूरज की हानिकारक पराबैंगनी किरणों (ultraviolet rays) से बचाता है । ऊपरी वायुमंडल का ओजोन पराबैंगनी किरणों को सोखकर इन्हें पृथ्वी की सतह तक पहुँचने से रोकता है ।
1970 के दशक में वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि क्लोरोफ्लोरोकार्बन अथवा CFCs के नाम के रसायन जो रेफ्रिजरेटरों में और एरोसोल के छिड़काव के काम में लाए जाते हैं, ओजोन पर्त के लिए खतरे पैदा कर रहे हैं । CFCs के अणु जब तक समतापमंडल (stratosphere) में नहीं पहुँच जाते तब तक ये लगभग अविनाशी होते हैं, पर समतापमंडल में पराबैंगनी किरणें उनको विघटित करके क्लोरीन के परमाणुओं को मुक्त करती हैं ।
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ये क्लोरीन परमाणु ओजोन के अणुओं से क्रिया करके उन्हें ऑक्सीजन के अणुओं में तोड़ देते हैं । ऑक्सीजन के ये अणु पराबैंगनी किरणों को नहीं सोखते । 1980 के दशक के बाद वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन के पर्त को पतला होते पाया है । यही प्रवृत्ति अब आस्ट्रेलिया समेत दूसरे स्थानों पर भी देखने को मिल रही है ।
ओजोन पर्त का विनाश त्वचा का कैंसर और मोतियाबिंद में वृद्धि करता है । यह कुछ फसलों और प्लैंकटन को भी हानि पहुँचाकर प्राकृतिक खाद्य-शृंखलाओं और खाद्य-जालों को प्रभावित करता है । वनस्पति के आवरण में कमी होने पर कार्बन डाइआक्साइड में वृद्धि होता है ।
ओजोन पर्त के संरक्षण के लिए मांट्रियल प्रोटोकोल पर 1987 में हस्ताक्षर होने के बाद तय हुआ कि 2000 तक क्लोरोफ्लोरोकार्बनों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया जाए और फिर ओजोन पर्त को कोई 50 वर्ष तक फिर बहाल होने का अवसर दिया जाए । यूँ तो अधिकांश देशों में क्लोरोफ्लोरोकार्बनों का उपयोग कम या प्रतिबंधित किया जा चुका है, पर ब्रोमीन, हैलोकार्बन और खादों से प्राप्त नाइट्रस आक्साइड जैसे अन्य रासायनिक और औद्योगिक यौगिक अभी भी ओजोन पर्त पर हमले कर रहे हैं ।