Read this essay in Hindi to learn about the disease of malaria and how we can prevent it.
मलेरिया मच्छरों से फैलनेवाला एक जानलेवा, परजीवी बीमारी है । मलेरिया का कारण प्लाज्मोडियम (plasmodium) नाम का एककोशीय परजीवी है जिसकी खोज 1880 में हुई थी । बाद में पता चला कि यह परजीवी एक से दूसरे व्यक्ति तक मादा एनोफिलीज मच्छर के काटने पर पहुँचता है जिसे अपने अंडों की वृद्धि के लिए खून की जरूरत होती है ।
इस समय दुनिया की लगभग 40 प्रतिशत आबादी को, जो अधिकतर गरीब देशों में रहती है, मलेरिया होने का खतरा है । एक समय यह रोग अधिक व्यापक था पर 20वीं सदी के मध्य में शीतोष्ण जलवायु वाले अनेक देशों में इसका सफल उन्मूलन किया गया है । आज मलेरिया वापस आ चुका है तथा दुनिया के उष्ण और शीतोष्ण क्षेत्रों में हर जगह मौजूद है । यह हर साल (वि. स्वा. संगठन के अनुसार) 30 करोड़ से अधिक लोगों को गंभीर रूप से बीमार कर रहा है और कम से कम 10 लाख लोगों की जानें ले रहा है ।
इंसानों में मलेरिया के अनेक प्रकार हैं । सबसे खतरनाक किस्म falciparum मलेरिया है । यह सहारा से दक्षिण के देशों में सबसे आम है और वहाँ बहुत अधिक मृत्युदर का कारण है । भारत में भी P. falciparum मलेरिया के प्रसार के संकेत मिल रहे हैं और यह ऐसे कुछ क्षेत्रों में वापस आया है जहाँ से इसका उन्मूलन किया जा चुका था ।
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मलेरिया का परजीवी एक मनुष्य के शरीर में तब प्रवेश करता है जब संक्रमित मादा एनोफिलीज उसे काटती है । मानव शरीर में इस परजीवी में अनेक परिवर्तन आते हैं जो उसके जटिल जीवनचक्र के अंग हैं । उसके विभिन्न चरण प्लाज्मोडियम को शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली से बचने, जिगर और लाल रक्त कोशिकाओं को संक्रमित करने और अंततः उस संक्रमित मनुष्य को काटनेवाले मच्छर को फिर से संक्रमित करने की शक्ति देते हैं ।
मच्छर के अंदर वह परजीवी परिपक्व होकर यौन संबंध के चरण तक पहुँचता है । इस तरह 10 या 10 से अधिक दिन बाद जब वह मच्छर दोबारा खून पीता है तो फिर एक मनुष्य को संक्रमित करता है । मलेरिया के लक्षण मच्छर के काटने के 9-14 दिन बाद नजर आते हैं हालाँकि प्लाज्मोडियम की विभिन्न प्रजातियों के लिए यह काल अलग-अलग हो सकता है ।
मलेरिया से तेज बुखार, सरदर्द, उल्टी और बदन-दर्द होता है । इलाज के लिए दवाएँ उपलब्ध न हो या परजीवी दवारोधक हों तो संक्रमण तेजी से बढ़कर जानलेवा हो सकता है । मलेरिया लाल रक्त कोशिकाओं को संक्रमित और नष्ट करके (एनीमिया के द्वारा) जान ले सकता है और दिमाग और दूसरे अंगों तक रक्त ले जानेवाली नसों को बंद करके भी (सिलेब्रल मलेरिया) ।
मलेरिया के परजीवी अत्यधिक दवारोधक बनते जा रहे हैं । इसके अलावा अनेक कीटनाशक अब रोग फैलानेवाले मच्छरों के खिलाफ उपयोगी भी नहीं रहे । वर्षा के दौरान ठहरे पानी के जमावों की सफाई जैसा उम्दा पर्यावरण प्रबंध मच्छरों की संख्या को कम करता है । मच्छरदानियाँ, जिन पर कीटनाशक छिड़के गए हों, बच्चों को मलेरिया के फैलाव और मौत से बचाते हैं ।
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समय-समय पर रोकथाम के उपाय (Intermittent Preventive Treatment-IPTN) और कीटनाशकों के छिड़काव वाली मच्छरदानियों का उपयोग जैसे उपायों से गर्भवती स्त्रियों के स्वास्थ्य तथा शिशु के प्राणों की रक्षा होती है । कारगर अधुनातन दवाओं, जैसे artemisinin-based combination therapies-ACTs से तत्काल इलाज होने से जिंदगियाँ बचती हैं । अगर सभी देश इन और अन्य उपायों को बड़े पैमाने पर अपनाएँ और सावधानी से उनकी निगरानी करें तो समाज पर मलेरिया की मार काफी कम हो सकती है ।