Read this essay in Hindi to learn about India as a mega-diversity nation.
भारत की धरती के अंदर की घटनाओं ने यहाँ उच्चस्तरीय जैव-विविधता की परिस्थितियाँ पैदा की हैं । लगभग 7 करोड़ साल पहले एक ही विराट महाद्वीप के टूटने से उत्तर और दक्षिण के महाद्वीपों का निर्माण हुआ जिसमें भारत गोंडवानालैंड का भाग था और यह भाग अफ्रीका, आस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका के साथ दक्षिणी भूखंड का हिस्सा था । भूखंडों की बाद की गतियों के कारण भारत विषुवत रेखा (equator) से उत्तर की ओर खिसककर उत्तर के यूरेशियाई महाद्वीप में मिल गया ।
बीच में स्थित टेथिस सागर जब सूखा तो जिन पौधों और पशुओं का विकास यूरोप और सुदूर पूर्व, दोनों क्षेत्रों में हुआ था वे हिमालय के बनने से पहले ही भारत में आ पहुँचे । आखिरी झुंड इथियोपियाई प्रजातियों के साथ अफ्रीका से आए जो सवाना और अर्धशुष्क क्षेत्रों में रहने के अभ्यस्त थे । इस तरह जैविक विकास के तीन प्रमुख केंद्रों के बीच में भारत की स्थिति और प्रजातियों का फैलाव हमारी समृद्ध और भारी जैव-विविधता का कारण है ।
जैव-समृद्ध राष्ट्रों में भारत पहले 10 या 15 देशों में आता है और यहाँ पौधों और पशुओं की भारी विविधता है जिनमें से अनेक कहीं और पाए नहीं जाते । भारत में 350 स्तनपायी हैं (यह दुनिया में आठवीं बड़ी संख्या है), पक्षियों की 1200 प्रजातियाँ हैं (संसार में आठवाँ स्थान), सरीसृपों की 453 प्रजातियाँ हैं (संसार में पाँचवाँ स्थान) और पौधों की 45,000 प्रजातियाँ हैं (संसार में पंद्रहवाँ स्थान) जिनमें से अधिकांश तो आवृत्तबीजी (angiosperms) हैं ।
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इनमें 1022 प्रजातियों वाले फर्न और 1,082 प्रजातियों वाले आर्किड की विशेष रूप से भारी विविधता भी शामिल है । 13,000 तितलियों और गुबरैलों (moths) समेत यहाँ कीड़े-मकोड़ों की 50,000 ज्ञात प्रजातियाँ हैं । अनुमान लगाया गया है कि अज्ञात प्रजातियों की संख्या इससे कहीं बहुत अधिक हो सकती है ।
अनुमान है कि भारत के 18 प्रतिशत पौधे स्थानिक हैं और दुनिया में कहीं और पाए नहीं जाते । पौधों की प्रजातियों में फूल देनेवाले काफी हद तक स्थानीय पौधे हैं; इनमें से एक-तिहाई तो दुनिया में कहीं और पाए ही नहीं जाते । भारत के जलथलचारी प्राणियों में 62 प्रतिशत इसी देश में पाए जाते हैं । छिपकलियों की 153 ज्ञात प्रजातियों में 50 प्रतिशत यहाँ की हैं । कीड़ों-मकोड़ों, समुद्री केंचुओं, गोंजरों, मेफ्लाई और ताजे जल के स्पंज के विभिन्न समूहों में भी भारी स्थानीयता देखी गई है ।
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भारत में जंगली पौधों और प्राणियों की भारी जैव-विविधता के अलावा यहाँ फसली पौधों (cultivated crops) और पालतू पशुओं की भी भारी विविधता है । यह उन कई हजार वर्षों का परिणाम है जिसके दौरान भारतीय उपमहाद्वीप में सभ्यताओं का जन्म और विकास हुआ । यहाँ कृषि के परंपरागत फसलों में धान, अनेक दूसरे अनाज, सब्जियाँ और फलों की 30,000 से 50,000 प्रजातियाँ हैं ।
इन पौधों की सबसे अधिक विविधता पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट, उत्तरी हिमालय और पूर्वोत्तर की पहाड़ियों के भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में हैं । जीन बैंकों में भारत में उगनेवाले 34,000 से अधिक अनाज और 22,000 दालें जमा हैं । भारत में मवेशियों की 27, भेड़ों की 40, बकरियों की 22 और भैंसों की 8 देशी किस्में हैं ।
तमाम ‘विदेशी’ वस्तुओं को चूँकि हम अंधे होकर स्वीकार करते जा रहे हैं, इसलिए इनमें से अनेक नस्लें या तो मर चुकी हैं, या मर रही हैं-जर्सी और होलस्टाइन बड़ी हद तक देसी ब्रह्मा बैल को विस्थापित कर चुके हैं; भारी उपज वाले पौधों ने सदियों पुरानी देसी फसलों की जगह ले ली है, नकदी फसलों ने खाद्यान्नों को विस्थापित किया है, यूकेलिप्टस और आस्ट्रेलियाई बबूल ने मिले-जुले शोल वनों को विस्थापित किया है । भारत की भूमि आज धीरे-धीरे अपनी अलग पहचान खो रही है और दुनिया के किसी भी अन्य परिदृश्य की तरह होती जा रही है ।