Read this essay in Hindi to learn about the disease of HIV/AIDS and how it was discovered.
ह्यूमन इम्यूनो डेफिसिएंसी वाइरस अथवा एच आई वी (Human Immuno-deficiency Virus-HIV) एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिसिएंसी सिन्ड्रोम अथवा एड्स (Acquired Immuno-deficiency Syndrome-AIDS) पैदा करता है । यह संक्रमित व्यक्तियों के उत्तक-द्रवों के संपर्क से फैलता है, खासकर यौन-संबंध से ।
चूँकि यह व्यक्ति की रोगरोधी क्षमता को कम करता है, इसलिए संक्रमित व्यक्ति अनेक पर्यावरणजनित रोगों से ग्रस्त होते हैं और उनकी सामान्य जीवन जीने की क्षमता कम होती है । उनकी शक्ति घट जाती है, त्वचा की विक्षति (Karposi’s sarcoma) सामने आती है, संबंधित व्यक्ति वायुजनित या जलजनित रोगों के अधिकाधिक शिकार होते हैं और अंत में मर जाते हैं ।
उप-सहारा अफ्रीका में, जहाँ यह संक्रमण बहुत अधिक है, यह भारी कष्टों और बढ़ती गरीबी का कारण बन रहा है । ये रोगी काम करने के लायक नहीं रह जाते और वे अपने आय के स्रोतों से हाथ धो बैठते हैं । गरीब अधिकाधिक संख्या में प्रभावित हो रहे हैं । एच आई वी/एड्स के कलंक के कारण आय की हानि को ये रोगी प्रायः संसाधनों के अति-दोहन से पूरा करने की कोशिश करते हैं क्योंकि ये रोगी किसी लंबे दायित्व के बारे में सोचने योग्य नहीं रहते ।
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अफ्रीका में इससे पारितंत्रों का ह्रास हुआ है और जड़ी-बूटियों के अति-उपयोग या जंगली जानवरों के भारी शिकार जैसे वन्य प्रभावों के कारण दबाव बढ़ा है । उदाहरण के लिए, दक्षिण अफ्रीका में लोगों में गलत धारणा है कि कछुओं के अंडों से एच आई वी/एड्स का इलाज संभव है, और इसलिए इन अंडों का भारी उपयोग होने लगा है ।
इस रोग से पुरुषों की मौत होने पर खेती का काम पहले से काम के बोझ से दबी स्त्रियों और साथ ही बच्चों के सर आ जाता है जिससे भूमि के प्रबंध और उत्पादकता पर प्रभाव पड़ता है । गरीबी के मारे इन रोगियों के लिए संतुलित आहार और पोषण में सहायता की व्यवस्था अंशतः प्राकृतिक संसाधनों के बेहतर प्रबंध से की जा सकती है, जैसे वनरोपण, साफ पानी और उम्दा भोजन की व्यवस्था से ।
समाज के सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने पर एच आई वी/एड्स का गंभीर प्रभाव पड़ता है । भारत में 2002 तक 39.7 लाख व्यक्तियों के प्रभावित होने का अनुमान था । एड्स की रोकथाम और प्रबंध के लिए शिक्षा की व्यवस्था की भारी आवश्यकता है । यह काम औपचारिक शिक्षा क्षेत्र में भी होना चाहिए और अनौपचारिक विधियों का प्रयोग करके भी । इन रोगियों के बहिष्कार और भेदभाव की समाप्ति के लिए भी शिक्षा की आवश्यकता है ।
भारत में सामाजिक शक्ति से वंचित स्त्रियाँ भारी घाटे में रहती हैं क्योंकि वे अपने साथी से सुरक्षित यौन-संबंध की माँग तक नहीं कर सकतीं । स्त्रियों को एच आई वी से ग्रस्त पतियों की देखभाल का अतिरिक्त बोझ भी बरदाश्त करना पड़ता है । इससे उनके परिवार पर भारी आर्थिक दबाव पड़ता हैं । भारत में यह रोग मुख्यतः नगरीय रोग न रहकर तेजी से गाँवों की ओर बढ़ रहा है ।
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नेपाल में अनुसंधान द्वारा ग्रामीण निर्धनता, वनविनाश और नगरीय क्षेत्रों की ओर आबादी के स्थानांतरण के बीच एक संबंध का पता चला है जिससे एड्स के रोगियों की संख्या बढ़ रही है । 1992 से पहले मुख्यतः नगरीय क्षेत्रों में आनेवाले पुरुष इससे ग्रस्त पाए जाते थे ।
और अभी हाल में बढ़ती संख्या में स्त्रियाँ यौनकर्मियों के रूप में भारतीय नगरों में पहुँच रही हैं । वेश्यावृत्ति में रत स्त्रियों के लिए सुरक्षित यौन संबंध के लिए ग्राहकों से सुरक्षा के उपायों को अपनाने, मसलन कंडोम का उपयोग करने, के लिए कहना कठिन होता है । परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में वे इस रोग से ग्रस्त हो जाती हैं ।
एक संक्रमित व्यक्ति का रक्त चढ़ाए जाने पर रक्त पानेवाला भी एच आई वी/एड्स से ग्रस्त हो जाता है । संक्रमित व्यक्ति को लगी सुई से किसी और को दवा चढ़ाने पर भी यही होता है । लेकिन एड्स की रोकथाम का सबसे महत्त्वपूर्ण उपाय कंडोम का सही उपयोग है जो के दौरान विषाणु के प्रसार में बाधक का काम करता है ।