Read this essay in Hindi to learn about the food problems of the world.
अनेक विकासशील देशों में जहाँ आबादी तेजी से बढ़ रही है, खाद्य उत्पादन बढ़ती माँग के साथ-साथ नहीं बढ़ पा रहा है । 105 विकासशील देशों में से 64 में खाद्य उत्पादन उनकी जनसंख्या वृद्धि के स्तरों से पीछे है । ये देश अधिक खाद्य-उत्पादन में असमर्थ तथा उसके आयात के लिए आवश्यक धन से वंचित हैं ।
भारत उन देशों में एक है जो अपनी कृषि योग्य भूमि (arable land) के एक बड़े भाग पर सिंचाई के सहारे खेती करके पर्याप्त खाद्य-उत्पादन में समर्थ हुए हैं । 1960 के दशक की हरित क्रांति (Green Revolution) ने देश में भुखमरी की समस्या को कम किया । लेकिन इसके लिए जिन प्रौद्योगिकियों का उपयोग किया गया, उनमें से अनेक पर आज सवाल उठाए जा रहे हैं ।
i. हमारी उपजाऊ जमीनें जिस गति से फिर से उपजाऊ बन सकती हैं उससे अधिक तेजी से उनका दोहन किया जा रहा है ।
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ii. वनों, घास के मैदानों और दलदली जमीनों पर खेती की जा रही है जिससे पर्यावरण संबंधी गंभीर प्रश्न उठे हैं ।
iii. समुद्री और अंतर्देशीय, दोनों प्रकार के मछली संसाधन समाप्त होने के संकेत मिल रहे हैं ।
iv. पोषक भोजन की उपलब्धता में भारी विषमताएँ हैं । आदिवासी जनता जैसे कुछ समुदाय आज भी भोजन की गंभीर समस्याओं से ग्रस्त हैं जिसके कारण वे कुपोषण के शिकार हैं, खासकर स्त्रियाँ और बच्चे ।
इन मुद्दों के कारण नए प्रश्न उठते हैं कि जनसंख्या वृद्धि की दर कम हो जाए तो भी भविष्य की माँग कैसे पूरी की जाएगी । आज दुनियाभर में भोजन की आदतों में बदलाव आ रहा है । जीवन स्तर में सुधार के साथ लोग अधिक मांसाहार करने लगे हैं ।
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लोग अनाज की जगह मांस खा रहे हैं तो पशुओं के लिए दुनिया में चारे की माँग भी बढ़ रही है जिसकी आपूर्ति कृषि पर निर्भर है । इसमें प्रति इकाई खाद्य उत्पादन के लिए अधिक भूमि चाहिए । नतीजा यह होता है कि दुनिया के गरीबों को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाता ।
खाद्य-उत्पादन में तथा भोजन पकाने और बच्चों को खिलाने में स्त्रियों की बेहद अहम् भूमिका होती है । अधिकांश ग्रामीण समुदाय स्त्रियों को पोषाहार संबंधी कोई तकनीकी प्रशिक्षण नहीं मिलता और न ही पोषाहार के मुद्दों पर पठन-पाठन के लिए प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों से उनका कोई परिचय होता है । स्त्रियों और लड़कियों को अधिकतर पुरुषों से कम भोजन मिलता है । .इन विषमताओं को दूर करना आवश्यक है ।
भारत में कृषि-योग्य उत्पादक भूमि की कमी है और खेतों का आकार इतना कम होता है कि केवल खेतों की उपज से परिवारों का पेट नहीं भरा जा सकता । हर पीढ़ी के साथ खेत और भी बँट जाते हैं । कृषि की अनेक विधियाँ, जैसे काटो-जलाओ, झूम खेती, वनों का नाश करती हैं ।
दुनियाभर में हर साल 50 से 70 लाख हेक्टेयर खेतिहर जमीन का ह्रास हो रहा है । पोषक तत्त्वों में कमी और खेतिहर रसायनों का अति-उपयोग भूमि के ह्रास के प्रमुख कारण हैं । जल की कमी खेती की कम उपज का एक महत्त्वपूर्ण कारण है । खारापन (salinization) और जलभराव (water-logging) ने दुनियाभर में बहुत अधिक खेतिहर जमीनों को प्रभावित किया है ।
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फसली पौधों की जैविक विविधता में कमी खेती की उपज में कमी का एक और कारण है । चावल, गेहूँ और मकई दुनिया की दो-तिहाई जनता का स्थायी भोजन है । दुनियाभर के मैदानों, नमभूमियों और दूसरे प्राकृतिक आवासों में फसली पौधों के वन्य समतुल्यों का नाश हो रहा है । इसलिए रोग, खारापन आदि का प्रतिरोध करने में सक्षम किस्मों के विकास की क्षमता भी कम हो रही है । जननिक अभियांत्रिकी (genetic engineering) परंपरागत संकर किस्मों का एक न आज़माया गया और जोखिम भरा विकल्प है ।