Read this essay in Hindi to learn about energy resources.
हमारे जीवन में सूर्य ऊर्जा का पहला स्रोत है । गर्मी पाने के लिए हम इमका सीधा उपयोग करते हैं और विभिन्न प्राकृतिक प्रक्रियाओं के द्वारा भी इसका उपयोग करते हैं जो हमें भोजन, जल, ईंधन और आवास प्रदान करती हैं । सूर्य की किरणें पौधों की वृद्धि में सहायक होती हैं । पौधे हमारे भोजन के स्रोत हैं ।
ये हमें आक्सीजन प्रदान करते हैं जिसे हम साँस में लेते हैं तथा जो कार्बन डाइआक्साइड हम मुक्त करते हैं, उसे ये ग्रहण कर लेते हैं । सूर्य की ऊर्जा समुद्रों, नदियों और झीलों के पानी को वाष्प बनाती है जो बादल बनकर वर्षा करते हैं । आज के जीवाश्म ईंधन कभी जंगल थे जो प्रागैतिहासिक काल में सूर्य की ऊर्जा से पैदा हुए थे ।
पशु जब आक्सीजन की मौजूदगी में रासायनिक यौगिकों का विघटन करते हैं तो उनमें मौजूद रासायनिक ऊर्जा मुक्त होती है । भारत में कृषि-कार्यों में आज भी शारीरिक श्रम का व्यापक उपयोग होता है तथा गाड़ियाँ और हल चलाने के लिए पालतू पशुओं का उपयोग किया जाता है । विद्युत ऊर्जा का उपयोग अनेक प्रकार से होता है-यातायात, कृत्रिम प्रकाश, कृषि और उद्योगों के लिए ।
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यह ऊर्जा जल विद्युत से आती है जो जल-चक्र पर आधारित होता है और जल-चक्र संभव होता है सूर्य की ऊर्जा से जिसके कारण वाष्पीकरण होता है । या फिर यह विद्युत ऊर्जा मिलती है ताप बिजलीघरों से जो जीवाश्म ईंधनों से चलते हैं । नाभिकीय ऊर्जा परमाणुओं के नाभिकों में होती है और इसे नियंत्रित करके विद्युत ऊर्जा पैदा की जा रही है ।
हम घरेलू कामों, कृषि, औद्योगिक वस्तुओं के उत्पादन में और यातायात के लिए ऊर्जा का प्रयोग करते हैं । आधुनिक कृषि में रासायनिक खादों का प्रयोग होता है जिन्हें बनाने में बहुत अधिक ऊर्जा की खपत होती है । उद्योगों द्वारा उत्पादक इकाइयाँ चलाने और उन्हें सहारा प्रदान करने वाली नगरीय बस्तियों के लिए ऊर्जा का उपयोग किया जाता है । ऊर्जा से चलने वाली सड़कों और रेलों का इस्तेमाल यातायात के लिए, वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने और खदानों या जंगलों से कच्चा माल लाने के लिए किया जाता है ।
ऊर्जा से संबंधित कोई भी प्रौद्योगिकी पूरी तरह ‘जोखिम-मुक्त’ नहीं है और ऊर्जा की असीमित माँग इस जोखिम को कई गुना बढ़ाती है । ऊर्जा के सभी उपयोग ताप पैदा करते हैं और वातावरण का तापमान बढ़ाते हैं । साथ ही, ऊर्जा के अनेक रूप कार्बन डाइआक्साइड छोड़ते हैं जिसके कारण विश्वव्यापी उष्णता (global warming) पैदा होती है । परमाणु ऊर्जा संयंत्रों ने नाभिकीय सामग्री का रिसाव करके पर्यावरण को अत्यधिक हानि पहुँचाई है । परमाणविक अपशिष्ट का कारगर प्रबंध और सुरक्षित निबटारा दुनियाभर में चिंता का विषय है ।
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इस समय विश्व में कोई दो अरब लोगों को बिजली मिलती ही नहीं । जहाँ एक ओर अधिकाधिक लोगों के लिए बिजली की कमी है, वहीं जिनको यह सुलभ है वे अपनी जरूरतें बढ़ाते जा रहे हैं । साथ ही, विद्युत ऊर्जा का एक बड़ा भाग संप्रेषण में और उपभोक्ता (user) के स्तर पर बरबाद हो रहा है ।
आज व्यापक रूप से यह माना जा रहा है कि ऊर्जा के उपयोग की दीर्घकालिक प्रवृति एक प्रदूषणरहित विश्वव्यापी ऊर्जा व्यवस्था की दिशा में होनी चाहिए जो कार्बन का कम उपयोग करे तथा जो ऊर्जा के सीमित, अनवीकरणीय स्रोतों पर कम से कम आधारित हो । अनुमान है कि नवीकरणीय ऊर्जा और अनवीकरणीय जीवाश्म ईंधन के स्रोतों के उपयोग की मौजूदा विधियाँ विश्वस्तर पर ऊर्जा की माँगों को अगले 50-100 सालों से अधिक समय तक पूरा नहीं कर सकेंगी ।
इस तरह जब हम ऊर्जा की बरबादी करते हैं तो हम पृथ्वी के वातावरण के ह्रास को बढ़ावा देते हैं । हम सबको ऊर्जा के उपभोग में और अधिक जिम्मेदारी से काम लेना चाहिए । याद रखिए कि अगर बिजली का एक बल्ब भी बेमतलब जल रहा है तो वह पर्यावरण के ह्रास में योगदान दे रहा है ।
ऊर्जा की बढ़ती आवश्यकता (Growing Energy Needs):
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मनुष्य की आर्थिक संवृद्धि और विकास से ऊर्जा का हमेशा ही गहरा संबंध रहा है । तीव्र आर्थिक संवृद्धि पर आधारित विकास की मौजूदा रणनीतियों में ऊर्जा के उपयोग को आर्थिक विकास का सूचक माना जाता है । लेकिन यह सूचक ऊर्जा के अत्यधिक उपयोग से समाज पर पड़ने वाले प्रतिकूल, दीर्घकालिक प्रभावों पर ध्यान नहीं देता ।
1950 और 1990 के बीच दुनिया की ऊर्जा की आवश्यकता चार गुनी बढ़ी है । दुनिया में बिजली की माँग पिछले 22 बरसों में दोगुनी हुई है । दुनिया में ऊर्जा का कुल उपभोग 2000 में 900.6 करोड़ टन तेल के बराबर था जो औसतन डेढ़ टन प्रति व्यक्ति बैठता है । इस समय विश्वभर में बिजली वह ऊर्जा है जिसका उपयोग सबसे तेजी से बढ़ रहा है । आशा है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र 2005 तक ऊर्जा के उपभोग में उत्तरी अमरीका से आगे निकल जाएगा और 2020 तक उत्तरी अमरीका से कोई 40 प्रतिशत अधिक ऊर्जा का उपभोग कर रहा होगा ।
लगभग 200 वर्षों से कोयला ऊर्जा का प्रमुख स्रोत रहा है और उसने उन्नीसवीं सदी में औद्योगिक क्रांति को आगे बढ़ाया । बीसवीं सदी के अंत तक दुनिया के व्यावसायिक ऊर्जा उपभोग में तेल का भाग 39% था, और उसके बाद कोयले (24%) और प्राकृतिक गैस (24%) का स्थान आता था । बाकी में परमाणु ऊर्जा (7%) और जलविद्युत/नवीकरणीय स्रोत (7%) शामिल थे ।
भारत के व्यावसायिक ऊर्जा स्रोतों में प्रमुख है कोयला जो 2001 में कुल उपभोग का 55 प्रतिशत था । उसके बाद तेल (31%), प्राकृतिक गैस (8%), जलविद्युत (5%) और परमाणु ऊर्जा (1%) आते थे ।
भारत में ऊर्जा की प्राथमिक आपूर्ति में जैवभार (मुख्यतः लकड़ी और गोबर) का भाग लगभग 40 प्रतिशत था । कोयला विद्युत उत्पादन के लिए आज भी प्रमुख स्रोत है । लेकिन 1970 और 1980 के दश्कों में नाभिकीय ऊर्जा का अधिकाधिक प्रयोग होने लगा । 1980 और 1990 के दशकों में प्राकृतिक गैस का उपयोग तेजी से बढ़ा है ।
ऊर्जा के प्रकार (Types of Energy) :
ऊर्जा के तीन प्रकार हैं: वे जो अनवीकरणीय माने जाते हैं, वे जो नवीकरणीय कहलाते हैं, और परमाणु ऊर्जा जो कच्चे माल (यूरेनियम) की इतनी कम मात्रा का प्रयोग करती है कि व्यवहार में असीमित जैसी ही है । लेकिन यह वर्गीकरण सटीक नहीं है, क्योंकि अनेक नवीकरणीय स्रोतों का ‘निर्वहनीय’ उपयोग न किया जाए तो उनका नवीकरण जिस गति से होता है उससे अधिक गति से उनका क्षय हो सकता है ।
i. अनवीकरणीय ऊर्जा (Non-renewable energy) :
अनवीकरणीय स्रोतों से विद्युत उत्पादन के लिए पहले तो सामग्री को जलाना पड़ता है । ईंधन को सुरक्षित क्षेत्र में रखकर जलाया जाता है । इससे पैदा गर्मी पानी को भाप बनाती है जो पाइपों से गुजरकर टरबाइन की पत्तियों को चलाती है । इससे चुंबकीय ऊर्जा बिजली बनती है जिसका उपयोग हम अनेक उपकरणों में करते हैं ।
अनवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत (Non-renewable energy sources) :
इनमें कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस आते हैं जो खनिज रूप में प्राप्त हाइड्रोकार्बन ईंधन हैं; इनका निर्माण प्राचीन प्रागैतिहासिक वनों से हुआ । इन्हें ‘जीवाश्म ईंधन’ (fossil fuels) कहते हैं क्योंकि ये पौधों के जीवाश्म बनने से पैदा हुए । दोहन की मौजूद दर से कोयला अभी लंबे समय तक चलेगा । लेकिन तेल और गैस संसाधन अगले 50 वर्षों में समाप्त हो सकते हैं ।
ये ईंधन जलने पर व्यर्थ पदार्थ पैदा करते हैं जो कार्बन डाइआक्साइड, गंधक और नाइट्रोजन के आक्साइडों और कार्बन मोनोआक्साइड के रूप में वातावरण में चले जाते हैं और वातावरण को प्रभावित करते हैं । इससे दुनियाभर में लोगों की बहुत बड़ी संख्या साँस की समस्याओं से ग्रस्त हो गई है, ताजमहल जैसे ऐतिहासिक स्मारक प्रभावित हुए हैं तथा अम्लीय वर्षा के कारण अनेक वन और झील नष्ट हुए हैं ।
इनमें से अनेक गैसें हरितगृह (green house) की तरह भी काम करती है; सूर्य की रोशनी अंदर तो आती है, पर गर्मी अंदर ही कैद हो जाती है । इससे विश्वव्यापी उष्णता पैदा हो रही है (तापमान बढ़ रहा है), कुछ क्षेत्रों में पहले से अधिक सूखा पड़ रहा है, दूसरे क्षेत्रों में बाढ़ें आ रही हैं, बर्फीले शिखर पिघल रहे हैं और समुद्र की सतह ऊपर उठ रही है जिससे दुनियाभर में तटीय क्षेत्र धीरे-धीरे डूब रहे हैं । समुद्रों के तापमान में वृद्धि प्रवाल (coral) जैसे संवेदनशील प्राणियों को भी मार रही है ।
ii. नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable energy):
नवीकरणीय ऊर्जा की प्रणालियों में ऐसे संसाधनों का उपयोग होता है जिनकी बराबर भरपाई होती रहती है और ये अकसर कम प्रदूषकजनक होते हैं । कुछ उदाहरण हैं: जल विद्युत, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, भूताप ऊर्जा (अर्थात पृथ्वी के अंदर की गर्मी से प्राप्त ऊर्जा) । हम ईंधन के रूप में पेड़ और कचरा जलाकर तथा दूसरे पौधों को जैव-ईंधन में बदलकर भी नवीकरणीय ऊर्जा प्राप्त करते हैं ।
हो सकता है एक दिन ऐसा भी आए कि हमारे सभी घरों को सूर्य या वायु से ऊर्जा मिले, आपकी कार संभवतः जैव-ईंधन से चले और आपके नगर के कचरे से नगर की विद्युत-आपूर्ति की आंशिक पूर्ति हो । नवीकरणीय ऊर्जा की तकनीकें ऊर्जा प्रणालियों की दक्षता बढ़ाएँगी और लागत कम करेंगी । हम उस मंजिल पर तब पहुँचेगे जब हम जीवाश्म ईधनों की ऊर्जा पर निर्भर नहीं होंगे ।
ऊर्जा सरंक्षण (Energy Conservation):
ऊर्जा के पारंपरिक स्रोत प्रकृति और मानव समाज पर अनेक प्रकार के प्रभाव डालते हैं । भारत के लिए ऊर्जा की आवश्यकता घटाने की नीति अपनाना और साफ ऊर्जा पैदा करने वाली प्रौद्योगिकियों को अपनाना आवश्यक है । ऊर्जा के वैकल्पिक उपयोग करना और नवीकरणीय स्रोतों को अपनाना, ताकि उनका विवेकपूर्ण और समतापूर्ण ढंग से उपयोग किया जा सके, पर्यावरण-स्नेही और निर्वहनीय जीवनशैलियों को बढ़ावा देगा ।
भारत को आयातिक तेल पर अपनी निर्भरता घटानी होगी । इस समय हम अपने प्राकृतिक गैस संसाधनों का उपयोग कम ही कर रहे हैं । हम बिजली पैदा करने के लिए हजारों छोटे बाँध तैयार कर सकते हैं । भारत बिजली संप्रेषण के दौरान भी बिजली की भारी बरबादी करता है । जलावन लकड़ी के लिए बागानों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए । संयुक्त वन प्रबंध (Joint Forest Management) भविष्य में बहुत ही सहायक हो सकता है ।
ऊर्जा-सक्षम चूल्हे वायु के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं ताकि लकड़ी और अच्छी तरह से जले । वायु प्रदूषण रोकने के लिए उनमें चिमनी भी होती है । इस तरह वे श्वास संबंधी समस्याएँ कम करते हैं । हालाँकि देश भर में दो लाख से अधिक ऐसे सुधरे हुए चूल्हे बेचे जा चुके हैं, पर वास्तव में प्रयुक्त चूल्हों की संख्या ज्ञात नहीं क्योंकि अनेक ग्रामीण अनेक कारणों से उन्हे उपयोग के योग्य नहीं पाते ।
1995 में टाटा एनर्जी रिसर्च इंस्टीट्यूट ने अनुमान लगाया था कि भारत में 95 प्रतिशत ग्रामीण और नगरों के 60 प्रतिशत गरीब अभी भी खाना पकाने और दूसरे घरेलू कामों के लिए लकड़ी, गोबर और खर-पतवार पर निर्भर हैं । जैवभार को जैवगैस में या एथेनाल और मेथेनाल जैसे द्रवईंधन में बदला जा सकता है ।
जैवगैस संयंत्र खमीरीकरण की प्रक्रिया द्वारा पशुओं के गोबर आदि और खर-पतवार को गैस में बदलते हैं: यह 60 प्रतिशत मिथेन और 40 प्रतिशत कार्वन डाइआक्साइड होती है । आम तौर पर प्रयुक्त होने वाले कृषि अपशिष्ट में पालतू पशुओं के गोबर, धान की भूसी, नारियल के खोपरे, खर-पतवार या घासफूल शामिल हैं । गैस बनने के बाद बची वस्तु का उपयोग खाद के रूप में होता है ।
जल विद्युत की छोटी इकाइयाँ पर्यावरण-स्नेही होती हैं । ये लोगों को विस्थापित नहीं करतीं, जंगलों या वन्यजीवन के आवासों को नष्ट नहीं करतीं तथा जलीय और स्थलीय जैव-विविधता का नाश नहीं करतीं । इन्हें विभिन्न पहाड़ी नालों, नहरों या नदियों पर बनाया जा सकता है । विद्युत उत्पादन गुरुत्वाकर्षण के कारण नीचे बहते जल पर निर्भर होता है । लेकिन अगर जल का प्रवाह मौसमी हो तो विद्युत उत्पादन सफलतापूर्वक नहीं किया जा सकता ।
ऊर्जा बरबाद करना आसान है, पर उसकी बचत करना उसे पैदा करने से अधिक सस्ता होता है । हम ऊर्जा की बरबादी रोककर या कम करके तथा संसाधनों का अधिक सक्षम उपयोग करके ऊर्जा का संरक्षण कर सकते हैं । लोग प्रायः इसलिए ऊर्जा बरबाद करते हैं कि सरकार उस पर अनुदान देती है । अगर वास्तविक लागत वसूल की जाए तो लोग उसे लापरवाही से बरबाद करने का जोखिम नहीं उठाएँगे ।