Read this essay in Hindi to learn about the problems faced by consumers with its solutions.
उपभोक्ता की परिभाषा (Definition of Consumer):
जो व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिये आवश्यक वस्तुएँ व सेवाएँ खरीदता है तथा उनका उपभोग करता है वह उपभोक्ता कहलाता है । हम प्रतिदिन अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नाना प्रकार की वस्तुएँ खरीदते हैं ।
विभिन्न कम्पनियों या संस्थाओं द्वारा पैसा लेकर जो भी सुविधाएँ दी जाती है उन्हें सेवाएँ कहते हैं । इसमें पानी, बिजली, स्वास्थ्य व स्वच्छता, शिक्षा, यातायात व संचार आदि सेवाएँ प्रमुख हैं । अत: इस प्रकार एक छात्र, विद्यालय, शिक्षक व यातायात की सेवाएँ लेता है ।
शिक्षक छात्र को पढ़ाते हैं तथा पढ़ाने के लिये ब्लैकबोर्ड, चौंक व डस्टर का उपभोग करते हैं । जब हम दुकानदार से सामान खरीदते हैं तो उसे पैसे देते हैं वह पैसों से दुकान पर और सामान खरीदकर बेचता है । इस विधि को एक उपभोक्ता का दूसरे पर निर्भर होना कहते हैं ।
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हमारे देश में नाना प्रकार के धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं तथा वे भिन्न-भिन्न रीति-रिवाजों, प्रथा व विश्वास को मानते हैं । इसके साथ-साथ उनका रहन-सहन, खान-पान, आचार-व्यवहार भी भिन्न होता है; जैसे: कश्मीर से कन्याकुमारी तक भिन्न- भिन्न स्थानों पर भाषा व खान-पान में अन्तर पाया जाता है ।
इसके साथ-साथ उपभोक्ता की खरीददारी की क्षमता भी एक सीमा तक ही रहती है । कई बार अनाड़ी उपभोक्ता को दुकानदार या व्यापारी अत्यन्त आसानी से लूट या ठग सकता है । अत: उपभोक्ता को खरीददारी व बाजार की जानकारी होना अत्यन्त आवश्यक है ।
उपभोक्ता की समस्यायें (Problems Faced by Consumer):
उपभोक्ताओं को बाजार से वस्तुएँ खरीदते समय विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है; जैसे: विभिन्न दुकानदारों व व्यापारियों द्वारा लगाई गई कीमतों में भिन्नता, मिलावट व निम्न गुणवत्ता, अनुपलब्धि व जमाखोरी तथा कालाबाजारी, दोषपूर्ण बाँट और नाप, दोषपूर्ण व्यापार पद्धतियाँ, उपभोक्ता मार्गदर्शन की कमी, स्तरीय उत्पादों का अभाव आदि ।
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(1) मूल्य भिन्नता (Variation of prices):
जब हम बाजार जाते है तो एक ही प्रकार के सामान की कई दुकानें होती हैं, परन्तु प्रत्येक दुकान में एक ही प्रकार की वस्तु का मूल्य अलग-अलग होता है । इस प्रकार भिन्न-भिन्न बाजारों में भी मूल्यों में भिन्नता होती है ।
अत: हम कह सकते हैं कि किसी दुकान में एक वस्तु की कीमत कम होती है तथा दूसरी में कीमत बहुत अधिक होती है । मूल्यों में भिन्नता क्यों होती है ? कभी-कभी मूल्यों में भिन्नता के कारण होते हैं परन्तु कई बार सेल्समैन उपभोक्ता से अधिक पैसा कमाने के लिए अधिक मूल्य कमाना चाहता है ।
उपरोक्त बातों के कारण निम्न हो सकते हैं:
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i. दुकानदार की अधिक-से-अधिक लाभ कमाने की लालसा ।
ii. थोक बाजार में एक ही वस्तु का मूल्य खुदरा (Retail) बाजार से कम होता है ।
iii. यदि दुकान अधिक प्रतिष्ठित है जिस कारण दुकान की देख-रेख, सामान के विज्ञापन, बिक्री के लिये दिये गये प्रलोभन आदि की कीमत दुकानदार उपभोक्ता से ही वसूलता है ।
iv. खुली वस्तुओं की तुलना में पैक की गई वस्तुओं की कीमत अधिक होती है क्योंकि पैकेजिंग (Packaging) में पैसा लगता है ।
v. वस्तुओं पर लिखे गये अधिकतम खुचरा मूल्य या एम.आर.पी. (उसमें सभी प्रकार के कर शामिल होते हैं) जो कि लेबिल पर छपा रहता है, इसमें दुकानदार या विक्रेता का कमीशन भी शामिल होता है । परन्तु यदि दुकानदार अपना कमीशन छोड़ दे व उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिये उत्पादक को एम.आर.पी. से कम कीमत पर बेचे तो वह कुछ ग्राहकों को नियमित उपभोक्ता बना सकता है ।
vi. कुछ दुकानों पर कम्प्यूटर व एयर कंडीशनर आदि लगे होते हैं जिस कारण दुकान की लागत अधिक होती है । इस प्रकार दुकानदार इन सबकी कीमत उपभोक्ता से वसूलता है ।
vii. ऐसा देखा गया है कि हर अलग-अलग स्थानों पर रहने वाली जनता की क्रय क्षमता भिन्न-भिन्न होती है । दुकानदार की कोशिश होती है कि ऐसे लोग जिनकी क्रय क्षमता अधिक है उनसे अधिक मूल्य लिया जाये । दुकानदारों या व्यापारियों का कथन है कि वे उत्पादित वस्तु अत्यन्त साफ-सुथरे ढंग से अच्छी तरह पैक करके दे रहे हैं ।
उनका शोरूम बड़ा व साफ सुथरा है, जिसमें उपभोक्ता अच्छी तरह घूम-घूमकर चीजें खरीद सकता है । कई स्थानों पर घर पर मुफ्त सामान भेजने की सुविधा भी उपभोक्ताओं को प्रदान की जाती है । इसकी कीमत भी वे उत्पादित वस्तुओं में लगाते हैं ।
viii. शहर के पॉश इलाकों में बने मॉल या सुपर मार्केट में भी सामानों की कीमत अधिक होती है ।
ix. कुछ दुकानें विज्ञापन पर भी अधिक पैसा खर्च करती हैं, जिसकी कीमत वे उत्पादित पदार्थ में लगाती हैं ।
x. मौसम के अन्त में माल खत्म करने के लिये सेल लगाई जाती है या वस्तुएँ कम दाम पर बेची जाती हैं ।
xi. कभी-कभी वस्तुओं की माँग अधिक होती है परन्तु पूर्ति कम होती है, उस समय वस्तुओं की कीमत अधिक हो जाती है । इसके अन्य कारण भी हैं; जैसे: उत्पादन में कमी, पूर्ति में देर तथा मौसम की वस्तु उपलब्ध नहीं आदि । इसके साथ-साथ व्यापारी या दुकानदार अधिक लाभ कमाने के लिये उपभोक्ता सामग्री में कमी कर देते हैं ।
xii. कभी-कभी क्रय-विक्रय के बीच की दूरी अधिक होती है तो वस्तुओं की कीमत बढ़ जाती है । यदि किसी वस्तु की क्रय कीमत कम होती है तो उसकी विक्रय कीमत बहुत अधिक हो जाती है ।
xiii. अधिकांशतया उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों का मूल्य कम गुणवत्ता वाले उत्पादों से या समय सीमा खत्म हो जाने वाले पदार्थों से अधिक होता है ।
विक्रेता निम्न तरीके अपनाकर उपभोक्ता से अधिक मूल्य प्राप्त करते हैं:
i. अधिक प्रचलित ब्रांडों की हूबहू नकल वाले उत्पादक पदार्थ बनाकर बेचते हैं ।
ii. भिन्न-भिन्न राज्यों में उत्पादक कर अलग-अलग होने से कुछ खास उत्पादों का एम.आर.पी. भी भिन्न होता है जो कि उत्पादों के लेबल पर छपा रहता है । अत: विक्रेता इसका फायदा उठाकर सबसे अधिक एम.आर.पी. वसूलते हैं ।
iii. वस्तुओं को बिना पैक किये व बिना लेबल के खुला बेचना ताकि ग्राहक को उस वस्तु का वास्तविक मूल्य ज्ञात न हो सके ।
(2) मिलावट और निम्न गुणवत्ता (Adulteration and Low Quality):
किसी उत्पादक वस्तु में किन्हीं अन्य चीजों की मिलावट करना या फिर किन्हीं वस्तुओं से उत्तम गुणों वाली चीजें निकाल देना ताकि उसकी गुणवत्ता कम हो जाये । उत्पादक को तैयार करते समय निम्न कोटि का कच्चा सामान लगाना अथवा वस्तु का गलत विधि द्वारा उत्पादन या अनुचित संचय द्वारा मिलावट की जाती है ।
अधिकांशतया मिलावट सोच समझकर व जानबूझकर की जाती है । ये सभी पदार्थ या उत्पादक उपभोक्ता के स्वास्थ्य व सुरक्षा के लिये अत्यन्त हानिकारक होते हैं । परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि सभी कम गुणवत्ता वाले पदार्थों में मिलावट की गई हो ।
कम गुणवत्ता वाले पदार्थों को खाने से स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है । कई बार सड़क के किनारे बिकने वाले पदार्थों; जैसे: चाट या ठण्डे पेय पदार्थ भोज्य विषाक्तता का कारण बनते हैं । इनमें हानिकारक रंग, मिलावटी तेल तथा रोगों के कीटाणु पाये जाते हैं, जो बीमारी का कारण बनते हैं ।
कभी-कभी हम अच्छी दुकान से कपड़ा लाते है परन्तु उसका रंग कच्चा निकल जाता है । रेडीमेड कपड़ों में निम्न गुणवत्ता की सिलाई या कशीदाकारी होती है । मिलावटी पदार्थों के चयन से बचने के लिये सदैव ही विश्वसनीय दुकानों से खरीददारी करनी चाहिए ।
(3) वस्तुओं का बाजार में उपलब्ध न होना तथा जमाखोरी कालाबाजारी (Goods not Available in Market Hoarding, Black Marketing):
कई बार बाजार में कई विशिष्ट उत्पादक पदार्थ आपको खोजने पर भी प्राप्त नहीं होते हैं इसका मुख्य कारण निम्न है:
वास्तविक कारण; जैसे: बेमौसम, उत्पादन में कमी, असमय यातायात, चालकों की हड़ताल, कम आपूर्ति तथा माँग अधिक अथवा प्राकृतिक आपदाओं; जैसे: सूखा या बाढ़ आना आदि । उपभोक्ताओं से अधिक दाम प्राप्त करने के लिये व्यापारी कुछ सामान की जमाखोरी करते हैं तथा विशिष्ट उत्पादों को जरूरतमंदों को अत्यधिक बड़े दामों में बेचते हैं, इसे कालाबाजारी कहते हैं ।
कभी-कभी उत्पादक जब वस्तुओं की कीमत बढ़ाना चाहते हैं तो वे बाजार में उत्पादों की आपूर्ति कुछ समय के लिये कम कर देते हैं । अत: यह स्पष्ट है कि सामान्य दिनों में भी जब विक्रेता मूल्यों में वृद्धि चाहते हैं तो वे वस्तुओं की जमाखोरी कर देते हैं; उदाहरणस्वरूप; मक्खन, तेल, पेट्रोल, सब्जियों, अनाज आदि की जमाखोरी की जाती है ।
अधिकांशतया यह भी देखा गया है कि पेट्रोल व डीजल के दाम जनवरी-फरवरी में बढ़ जाते हैं क्योंकि फरवरी के अन्त में सरकार का बजट आता है । अत: ये विक्रेता सरकार की नीतियों की घोषणा के पूर्व ही वस्तुओं की कीमत बढ़ा देते हैं ।
(4) दोषपूर्ण बाँट और नाप (Defective Weight and Measures):
काला बाजारी, जमाखोरी तथा मिलावटी वस्तुओं के साथ-साथ कई बार विक्रेता नाप-तौल के लिये गलत बाँट व नाप का उपयोग करते हैं । व्यापारी अधिकतर मानक नाप-तौल के साधनों का उपयोग नहीं करते ।
i. नकली व कम वजन के बाँटों का प्रयोग करके या बाँट की जगह ईंट, पत्थर या खोखले तले वाले बाँट आदि का प्रयोग करते हैं ।
ii. तराजू की कमानी ऐसी होती है जो पलड़ों के खाली होने पर भी सीधी नहीं रहती है ।
iii. जब तराजू खाली हो तब भी तराजू की सुई शून्य पर स्थिर नहीं होती ।
iv. हाथ से पकड़ने वाले तराजू का उपयोग करके उपभोक्ता को धोखा देना ।
v. तराजू के पलड़ों के नीचे चुम्बक या गत्ते का टुकड़ा लगा देते हैं ।
vi. दुकानदार खाद्य पदार्थों को डिब्बों के साथ तौल देते हैं ।
vii. पिचके तले वाले मापों का प्रयोग ताकि दूध या तेल तरल पदार्थ कम नाप में बेचे जा सकें ।
viii. पेट्रोल पम्प, ऑटोरिक्शा व टैक्सी के मीटर की सुई शून्य पर न रहना ।
ix. छोटे या मुड़े हुए गत्तों का प्रयोग करना या फिर कपड़े को खींचकर नापना जिससे उपभोक्ता को कम कपड़ा मिले । इस प्रकार दुकानदार कम कपड़ा नापकर अधिक मुनाफा कमाते हैं । जिसकी उपभोक्ता को किसी भी प्रकार की जानकार नहीं हो पाती है ।
x. पैक किये गये पदार्थों के लिये उपयोग में आने वाली शीशियों व डिब्बों की बनावट ऐसी होती है कि उपभोक्ता को कम सामान प्राप्त होता है; जैसे: मोटे तले की शीशी या लम्बी पतली शीशी जिसमें देखने पर वस्तु अधिक लगती है पर वास्तविकता में कम होती है ।
(5) दोषपूर्ण व्यापार की विधि (Defective Business Procedure):
व्यापारी अधिक पैसा कमाने के लिये कुछ दोषपूएं तरीके अपनाते है ताकि अधिक-से- अधिक धन कमा सकें ।
ये विधियाँ निम्न प्रकार हैं:
i. खराब गुणवत्ता वाली वस्तुओं को इस तरह से आकर्षक ढंग से पैक करना ताकि ग्राहक उत्पाद को न देख सके ।
ii. बड़े-बड़े पैकेटों में कम मात्रा में छोटी-छोटी वस्तुओं को पैक करना ।
iii. अच्छी गुणवत्ता वाले उत्पादों के ब्रांड, लेबलों का प्रयोग करके कम गुणवत्ता वाले पदार्थों को बेचना ।
iv. ऐसी वस्तुएँ जिनका स्तर अच्छा न हो उन पर आकर्षक उपहार या छूट देना या उनकी कीमत कम करना जो उचित नहीं है । इस प्रकार उपभोक्ता को धोखा दिया जाता है ।
(6) उपभोक्ता मार्गदर्शन में कमी (Consumer Guide):
व्यापारियों पर ही निर्भर रहना पड़ता है । इन लोगों के पास सही या पूरी जानकारी नहीं है तथा कई बार वे सही सूचना नहीं दे पाले हैं । दुकानदार उन्हीं उत्पादों को बेचना चाहते हैं जिन पर उन्हें अधिक कमीशन मिलता है ।
कपड़ों के दुकानदार कई बार अपने ग्राहकों पर अधिक ध्यान नहीं देते तथा वे ग्राहकों से रूखा व्यवहार करते है, इसके साथ-साथ सामान भी ठीक से नहीं दिखाने अत: ग्राहकों को वस्तुओं का चुनाव करने में परेशानी का सामना करना पड़ता है ।
(7) असत्य विज्ञापन (Untrue Advertisement):
आजकल बाजार में प्रतिदिन नई-नई वस्तुएँ आने लगी हैं । निर्माता स उत्पादकों में एक प्रकार की ही वस्तुओं के उत्पादन करने में होड़ लगी हुई है । अत: उत्पादक व निर्माता अपना उत्पाद बेचने ठेके लिये विज्ञापन का सहारा लेते हैं ताकि अधिक-से-अधिक लोगों को अपने उत्पाद की जानकारी दे सकें । ये विज्ञापन उपभोक्ताश को उत्पाद के बारे में जानकारी देते हैं; जैसे: उसकी विशेषताएँ व उपयोग करने के तरीकों का पूर्ण ज्ञान देना ।
अधिकांशतया उत्पादक व निर्माता अपने सामान की अधिक से अधिक बढ़ाई करते हैं ताकि ग्राहक उनकी ओर आकर्षित होकर उसे तुरन्त खरीद लें । परन्तु वस्तु खरीदने के पश्चात् उपभोक्ता को वस्तु के अवगुणों का अहसास होता है कि जैसा विज्ञापन में वस्तु को दिखाया है वैसा कुछ भी वस्तु में नहीं है ।
अत: इस प्रकार के असत्य विज्ञापन उपभोक्ता को धोखा देते हैं । अत: हमें वस्तु खरीदते समय केवल विज्ञापन का सहारा लेकर वस्तु खरीदने का निर्णय नहीं करना चाहिये ।
(8) अधूरे व गलत लेबिल (Incomplete and Wrong labels):
प्रत्येक वस्तु पर निर्माता एक लेबल लगाता है जिसके द्वारा उपभोक्ता को वस्तु के बारे में जानकारी प्रदान करता है । लेबल द्वारा उपभोक्ता को वस्तु की कीमत, गुण, बनाने वाली सामग्री आदि की जानकारी प्राप्त होती है जिसके द्वारा उपभोक्ता उचित व सही निर्णय ले सकता है परन्तु आधे-अधूरे लेबिल लगाकर या लेबिल पर गलत सूचना देकर उत्पादक एक प्रकार से उपभोक्ता को धोखा देने का प्रयास करता है ।
(9) खराब व घटिया वस्तुओं को बेचना (Defective Items):
दुकानदार या निर्माता अधिकतर खराब व घटिया किस्म की वस्तुओं को अधिक दाम पर बेच देते हैं, जैसे: साड़ियों में सिंथेटिक जार्जट को शुद्ध जार्जट के रूप में बेचना, फर्नीचरों में शीशम की लकड़ी का प्रयोग करके उसे टीक की लकड़ी का बताकर अधिक दाम पर बेचना ।
इस प्रकार कभी-कभी ग्राहकों को पता नहीं चल पाता है कि उनके द्वारा खरीदी जा रही वस्तु में घटिया सामग्री का उपयोग किया गया है । इस बात का ज्ञान उपभोक्ता को उस वस्तु के इस्तेमाल करने के बाद होता है ।
(10) नकली वस्तुओं की बिक्री (Fake Items):
निर्माता व उत्पादक अधिक-से-अधिक धन कमाने की लालच में नकली वस्तुएँ बेचते हैं । ये लोग असली वस्तुओं की पैकिंग में नकली वस्तुएँ रखकर बेचते हैं; जैसे: दवाइयाँ तेल या घी या मेकअप का सामान
आदि ।
(11) निर्माता व दुकानदार गलत तरीके अपनाते हैं (Wrong Methods):
आजकल अधिकांशतया एक-दो वर्ष का पुराना माल बेचने के लिए विक्रेता उपभोक्ता को लुभाने के लिये सेल लगाते हैं या एक के साथ एक मुफ्त या 20 से 70% की छूट आदि देते हैं । विक्रेता वस्तुओं के दाम पहले से ही अधिक रखते हैं । अत: उनको किसी प्रकार का नुकसान नहीं होता तथा वे पुराने सामान के स्थान पर नये सामान संचित करते हैं ।
(12) मानवीकृत उत्पादनों की कमी (Lock of Personified Production):
आजकल बाजार में नाना प्रकार की वस्तुएँ आ गई हैं, परन्तु हर वस्तु पर मानवीकृत निशान नहीं होता है । ये मानवीकृत चिन्ह से सस्ते होते हैं और इनके ब्राण्ड भी अधिक लोकप्रिय होते हैं । अत: ग्राहक के लिये यह तय करना अत्यन्त कठिन होता है कि मानकीकरण चिन्ह वाली वस्तु खरीदें या कम दाम की लोकप्रिय वस्तु खरीदें । मानवीकरण चिन्ह का दुरुपयोग भी विक्रेता द्वारा किया जाता है, नकली व गलत उत्पादों पर भी ये चिन्ह पाये जाते हैं ।
उपभोक्ता की समस्याओं का समाधान (Solution of Consumer Problems):
उपभोक्ता की समस्याओं के बारे में विस्तार से वर्णन हम कर चुके हैं ।
उन समस्याओं में समाधान के लिये निम्न सुझावों को उपयोग करने की सलाह दी जानी चाहिये:
(1) बाजार का सर्वेक्षण करना (Market Survey):
किसी भी प्रकार के उत्पाद खरीदने से पहले उसके बारे में बाजार में पहले सर्वेक्षण कर लेना चाहिये तथा अन्य साधनों से भी उत्पाद के बारे में पूर्ण जानकारी लेनी आवश्यक है; जैसे: टीवी, अखबार, पत्रिकायें सेल्समैन, इन्टरनेट या कोई ऐसा व्यक्ति जो उत्पाद का प्रयोग कर चुका हो ।
(2) विश्वसनीय दुकानों से खरीददारी करें (Purchase from Trustable Shops):
यह उत्तम होगा यदि ग्राहक अपने घर के पास के सरकारी भण्डार, उचित दरों की दुकानों कम्पनी के अधिकृत शोरूम या अन्य विश्वसनीय दुकानों से ही सामान खरीदें । इनसे जो भी सामान आप खरीदेंगे वह अच्छी गुणवत्ता का होगा ।
(3) बिल रसीद व गारण्टी कार्ड लें (Take Bill Receipt or Guarantee Card):
जो भी वस्तु ग्राहक खरीदें उसका बिल रसीद व गारण्टी कार्ड अवश्य ही लेना चाहिये, इन सभी को अच्छी तरफ सुरक्षित स्थान पर रख ना चाहिये ताकि यदि उत्पाद में किसी प्रकार का दोष हो तो उस समय ये काम में आयेंगे ।
(4) पैक व लेबल की वस्तुयें खरीदें (Buy Packed or Labelled items):
खुली वस्तुओं के स्थान पर पैक व लेबल लगी वस्तुयें खरीदना उत्तम होगा ।
(5) लेबलों की जानकारी सावधानीपूर्वक पढ़ें (Red Labelled Information Carefully):
बाजार में उपलब्ध वस्तुओं पर ब्रान्डों के नाम, बनाने में उपयोग की गई सामग्री, कुल वजन, अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) वस्तु निर्माण तथा खराब होने की तिथि और मानक चिन्ह आदि लेबलों को सावधानीपूर्वक पढ़ना चाहिये ।
(6) कम आपूर्ति वाली वस्तुओं के विकल्प (Option of Less Available Items):
किन्हीं कारणों से यदि प्रमुख वस्तुओं की आपूर्ति कम हो रही हो तो उनके स्थान पर दूसरी वस्तुओं के विकल्पों के बारे में पहले से सोच लेना चाहिये । कभी भी जमाखोरी कालाबाजारी व अधिक मूल्य पर वस्तु न खरीदें ।
(7) दोषपूर्ण बाँट व नाप की जाँच करें (Check Defective Measures):
कभी भी बाँट के स्थान पर ईंट या पत्थर जैसे अनियमित बाँट द्वारा तौली हुई वस्तुयें न खरोदें । सदैव इस बात का ध्यान रखें कि नाप-तौल के साधनों पर मानक चिह्न लगा हो तथा विक्रेता किसी भी प्रकार दोषपूर्ण नाप-तौल के तरीकों का उपयोग न करे ।
(8) मुफ्त उपहार या आकर्षक छूट (Free Gift or Attractive Discount):
उपभोक्ताओं को मुफ्त उपहार या आकर्षक छूट जैसे धोखों में नहीं आना चाहिये । परन्तु यदि ब्राण्डेड वस्तुओं पर इस प्रकार के मुफ्त उपहार या आकर्षक छूट मिल रही है तो ले लेना चाहिये ।
(9) उत्पाद की गुणवत्ता का ध्यान रखें (Consider Product Quality):
इस बात का भी ध्यान ग्राहकों को रखना चाहिये कि ऐसे उत्पाद खरीदे जो उत्तम गुणवत्ता के हों तथा खरीदने के पश्चात् अच्छी सेवा की गारण्टी भी दें ।
(10) धोखाधड़ी की सूचना सम्बद्ध अधिकारियों कों दें (Inform to Officer for Fraud):
ग्राहकों का कर्तव्य है कि यदि कोई विक्रेता या व्यापारी धोखाधड़ी कर रहा है या दोषपूर्ण व्यापारिक तरीके अपना रहा है तो उसकी सूचना सम्बन्धित अधिकारियों को अवश्य ही दें । अत: उपभोक्ताओं को केवल मानकीकारण चिस्न वाली वस्तुयें ही खरीदनी चाहिये, क्योंकि वे अधिक सुरक्षित व टिकाऊ होंगी ।