Read this essay in Hindi language to learn about consumer aids.
”उपभोक्ताओं की आवश्यकता के अनुसार किसी माल/वस्तु के चयन में उपभोक्ताओं का मार्गदर्शन या सहायता करने वाले साधनों को उपभोक्ता सहायता साधन कहते हैं । ये सहायता लिखित या चित्रित सामग्री के रूप में होती है ।”
उपभोक्ता सहायता साधन: (Consumer Aids):
निम्न उपभोक्ता सहायता साधन बाजार में उपभोक्ताओं को खरीददारी में मदद करते हैं:
1. मानवीकृत निशान/चिन्ह (Standard marks)
ADVERTISEMENTS:
2. लेबल और मूल्य सूची (Label and Price list)
3. उच्छिष्ट या पैकेज (Package)
4. विज्ञापन (Advertisement)
5. उपभोक्ता मंच और उपभोक्ता समाज (Consumer Forum and Consumer Society)
ADVERTISEMENTS:
6. खाद्य कानून (Food Laws)
7. पुस्तकें व पत्रक (Books and Leaflets)
8 उपभोक्ता निवारण मंच (Consumer Redressal Forum)
1. मानवीकृत निशान/चिहन (Standard Marks):
सरकार द्वारा खाद्य पदार्थों और उपभोक्ता के उपयोग की वस्तुओं की गुणवत्ता निर्धारित करने तथा बनाए रखने के लिये विभिन्न कदम उठाए गए हैं ।
ADVERTISEMENTS:
सरकार द्वारा कुछ न्यूनतम मानकों को तय किया गया है । सरकार व्यापारियों/निर्माताओं द्वारा उत्पादित उत्पादों का परीक्षण करके उसमें उपस्थित गुणवत्ता का परीक्षण करने के पश्चात् मानकों की पुष्टि करती है तत्पश्चात् उन्हें मानक चिह्न दिये जाते हैं ।
सरकार द्वारा मानक चिल उपयोग करने का लाइसेन्स इसके बाद व्यापारी/निर्माता को दिया जाता है । समय-समय पर मानवीकृत चिह्न वाले उत्पादों की गुणवत्ता की जाँच की जाती है तथा उनको गुणवत्ता के आधार पर अंक दिये जाते हैं तथा उस उत्पाद को अच्छी गुणवत्ता की गारण्टी वाला सुनिश्चित किया जाता है ।
अत: मानवीकृत चिह्न यह दर्शाता है कि वह वस्तु अच्छी गुणवत्ता वाली है । यदि गुणवत्ता में किसी भी प्रकार की कमी पायी जाती है तो व्यापारी/निर्माता का लाइसेन्स रह कर दिया जाता है तथा वे इन चिह्नों का उपयोग नहीं कर सकते । उपभोक्ता भी मानवीकृत उत्पादों की खरीददारी करके आश्वासन प्राप्त करता है ।
भारत सरकार की दो संस्थायें-संगठन मानकों को निर्धारित करने तथा मानवीकरण चिन्ह देने का कार्य करती हैं ।
ये संगठन निम्नलिखित हैं:
(A) भारतीय मानक ब्यूरो (B.I.S-Bureau of Indian Standard):
यह पहले भारतीय मानक संस्थान (Indian Standard Institute) के नाम प्रचलित था ।
इस संस्थान की विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं:
(i) 1952 में ISI अधिनियम पारित किया गया । इस अधिनियम के अन्तर्गत संस्थान निर्माताओं को ISI चिह्न को प्रयोग करने के लिये लाइसेन्स प्रदान करता है ।
(ii) उपरोक्त अधिनियम के अन्तर्गत भारतीय मानक ब्यूरो को किसी भी उत्पादक और उसकी विधि के लिये मानक चिह्न लगाने का अधिकार प्राप्त है ।
(iii) बी.आई.एस. प्रमाणन (BIS) योजना किसी वस्तु के उत्पादन के समय उसकी गुणवत्ता बनी रहने के लिये कार्यरत होती है । इस योजना में कच्चे माल की खरीद-फरोख्त से लेकर वस्तु के पूर्ण उत्पादन तक उसकी गुणवत्ता बनाये रखी जाती है । अत: उत्पाद को BIS के द्वारा बनाये नियमों के अन्दर ही पूरी तौर से निर्माण क्रिया की जाती है तभी ISI चिह्न लगाने की अनुमति दी जाती है ।
(iv) इस योजना के तहत लाइसेन्स उन्हीं उत्पादककर्ता को दिये जाते हैं जो इसके योग्य हों तथा जो उत्पाद की गुणवत्ता के निरन्तर भारतीय मानकों के अनुसार बनाये रखने में सफलता प्राप्त करते हों ।
(v) खाद्य पदार्थों के निर्माताओं को ISI चिह्न सिर्फ इस शर्त पर दिया जाता है कि उनकी फैक्टरी का वातावरण उत्तम व स्वास्थ्यकर हो । उनके पास अपने उत्पादकों के परीक्षण के लिये सभी प्रकार की जाँच-पड़ताल करने की सुविधायें हों ।
(vi) यह आवश्यक नहीं है कि सभी उत्पादककर्ता अपने उत्पाद पर ISI चिह्न लगायें, यह उनकी मर्जी पर निर्भर करता है ।
(vii) पी.एफ.ए. अधिनियम के अनुसार, कुछ खाद्य पदार्थों पर यह चिन्ह लगाना अनिवार्य है ।
ये खाद्य पदार्थ निम्न प्रकार हैं:
खाद्य रंग, बिस्कुट, कॉफी-पाउडर, कोको पाउडर, शिशु दूध व आहार, पाउडर दूध, आइसक्रीम, कस्टर्ड पाउडर, कार्न पाउडर, अरारोट, बैंकिंग पाउडर, नमक, सेवई, मैगी, मैकरोनी, स्पैगटी, नूड्ल्स, पास्ता, वेफरस, कंडेन्स दूध, टॉफी, चॉकलेट व चाकलेट पाउडर आदि ।
(viii) प्रतिदिन के उपयोग के कुछ उपकरणों; जैसे: गैस का चूल्हा, प्रेस, बिजली के पंखे, मिक्सी, प्रेशर कुकर, स्विच, रेग्यूलेटर, बिजली की केतली आदि पर ISI चिह्न लगा होता है ।
(ix) विभिन्न प्रकार के वनस्पति तेलों सीमेंट, खनिज जल (Mineral water), हेलमेट, केरोसीन स्टोव, LPG गैस सिलिण्डर, पम्प वाले स्टोव, खदानों तथा अन्य खतरनाक जगहों पर उपयोग होने वाली भारी मशीनें आदि पर भी ISI चिह्न लगे होते हैं ।
(x) ISI चिह्न की लगातार बढ़ती हुई लोकप्रियता व मान्यता के कारण इसके अनुचित उपयोग भी हो रहे हैं । इन मानक चिन्हों का उपयोग उपभोक्ताओं को धोखा देने व ठगने के लिये किया जाता है जिससे अनुचित व्यापार के तरीकों को प्रोत्साहन मिलता है । अत: उपभोक्ता को नकली मानक चिन्ह के प्रति सचेत व सजग रहना चाहिये ।
उपभोक्ताओं को असली व नकली चिन्हों में पहचान करनी आनी चाहिए । यदि किन्हीं उत्पादकों पर मानक चिन्हों का गलत प्रयोग हो रहा है तो उसकी सूचना उससे सम्बन्धित अधिकारियों को तुरन्त देनी चाहिए ताकि वे समय रहते उचित कार्यवाही कर सकें ।
मानक चिन्हों का गलत प्रयोग निम्न प्रकार होता है:
(i) मानक चिन्हों की तरह ही चिन्ह बनाना ।
(ii) बी.आई.एस. व आई.एस.आई. के चिन्हों का दुरुपयोग करना ।
(iii) अपने उत्पाद के भारतीय मानकीकरण के अनुसार बनाये जाने का गलत दावा करना ।
(iv) मानक चिन्हों का उपयोग कम गुणवत्ता वाले पदार्थों पर करना ।
(v) उत्पादककर्ता/निर्माता के पास का बी. आई. एस. में पंजीकृत न होने का गलत दावा करना तथा बिना लाइसेन्स के मानक चिन्ह वाले पदार्थों का उत्पादन करना ।
(B) विपणन निरीक्षण निदेशालय (Marketing Inspection Directorate):
कृषि सम्बन्धी विभिन्न वस्तुओं के लिये भारत सरकार ने विपणन निरीक्षण निदेशालय की स्थापना की है । यह निदेशालय कृषि मंत्रालय के अन्तर्गत कार्यरत है । इस निदेशालय द्वारा एगमार्क नामक मार्क निकाला गया । एगमार्क प्रमाणीकरण आयोग का कार्य है कि वह विभिन्न खाद्य पदार्थों का निरीक्षण करके उनके स्तर के अनुसार उन्हें भिन्न-भिन्न ग्रेड्स (Grades) में रखे ।
(a). एगमार्क (Agmark):
i. सर्वप्रथम एगमार्क का मानक शुद्ध देशी का था ।
ii. इस संस्था का कार्य है कि यह विभिन्न प्रकार के संसाधित (Processed) और अर्द्ध कृषि उत्पादनों; जैसे: मसाले में जीरा, हींग, हल्दी, काली मिर्च, धनिया पाउडर, लाल मिर्च पाउडर, गरम मसाला पाउडर, साँभर पाउडर, छोला मसाला आदि प्रमुख हैं ।
iii. खाद्यान्नों में: गेहूँ चावल, दाल, गेहूँ का आटा, सूजी, बेसन । पेय पदार्थों में चाय की पत्ती व कॉफी पाउडर ।
iv. अन्य वस्तुओं में नारियल का तेल, सरसों का तेल, मूँगफली का तेल, सोयाबीन का तेल, राइस ब्रैन आयल, शहद, मक्खन, क्रीम, सौंठ, शोरबे का मसाला, जीरा पाउडर, मिर्च पाउडर, काली मिर्च पाउडर, तम्बाकू, गुड, बूरा, अंडा आदि ।
एगमार्क से लाभ (Benefits of Agmark):
i. उपभोक्ताओं को मानवीकृत खाद्य पदार्थों के चयन में सहायता करता है ।
ii. खाद्य पदार्थों को विभिन्न ग्रेड्स में विभाजित करते हैं, जिससे उपभोक्ताओं को उस पदार्थ की गुणवत्ता की पूर्ण जानकारी होती है ।
एगमार्क उपभोक्ता को इस बात का आश्वासन देता है कि एगमार्क लगी वस्तु की मात्रा सही है, उसमें किसी भी प्रकार की मिलावट नहीं है । इसके अतिरिक्त उस वस्तु को उचित व सही तरीके से पैक किया गया है ।
(b) फल उत्पाद आदेश (FPO- Fruit Product Order):
हमारे देश में फल व सब्जियों का संरक्षण प्राचीन समय से चला आ रहा है । यह एक पुरानी परम्परा है जिसका पालन आज भी कई भारतीय परिवार कर रहे हैं । 1930 में फल व सब्जियों का संरक्षण एक उद्योग के रूप में उभरा परन्तु उस समय कुछ ही पदार्थ तैयार किये जाते थे । आजकल एक ही उत्पाद के अनेकों उत्पादककर्ता हैं । ये उद्योग अनियन्त्रित रूप से कार्य कर रहे हैं ।
अत: 1955 में भारत सरकार ने इन उद्योगों पर नियन्त्रण रखने के लिए फल उत्पाद आदेश (Fruit Product Order) पारित किया जिसके आदेश के अनुसार उद्योगों को निम्न बातें करनी आवश्यक होती हैं:
i. फल व सब्जियों का संरक्षण उद्योग खोलने से पहले उन्हें इन पदार्थों को बनाने का लाइसेंस प्राप्त करना आवश्यक है ।
ii. यह कानून फल व सब्जियाँ के उत्पाद बनाने वाले उद्योगों को इस बात का आदेश देते है कि उनकी फैक्ट्री में साफ सफाई का पूरा-पूरा ध्यान रखा जाय तथा वहाँ का वातावरण स्वास्थ्यकर हो ।
iii. इस मार्क के अनुसार फल व सब्जियों के उत्पाद की गुणवता तथा उनको बनाने की विधियों व सुविधाओं के लिये कम-से-कम मानक निर्धारित करता है ।
फल उत्पाद आदेश के चिन्ह वाले खाद्य पदार्थ निम्न प्रकार हैं:
i. संरक्षित फल (डिब्बे तथा बोतल) ।
ii. संरक्षित सब्जियों ( डिब्बे तथा बोतल) ।
iii. फलों का रस तथा फलों का गूदा ( डिब्बे बोतल तथा अन्य पैकिंगों में) ।
iv. फलों का पेय जैसे रसिका आदि ।
v. स्क्वैश कोरडियाल आदि ।
vi. जैम,जैली मार्मलेड आदि ।
vii. सूखे फल व सब्जियाँ ।
viii. केंद्रीज व ग्लेज्ड फल ।
ix. जमे हुए फल सब्जियाँ फलों के रस व फलों का गूदा ।
x. शर्बत व कार्बनयुक्त पेय; जैसे-कोला पेय आदि ।
xi. कृत्रिम सिरका
(c) पारिस्थिति/इको मार्क (Key Mark):
भारतीय मानक ब्यूरो ने यह निशान अभी हाल में देना शुरू किया है ।
इस निशान की विशेषतायें निम्न प्रकार हैं:
(i) इस निशान वाले उत्पाद की आई. एस. आई मानक गुणवत्ता की पुष्टि करता है ।
(ii) ये उत्पाद रीसाइकिलिंग हो सकते हैं जिससे पर्यावरण प्रदूषित होने से बचा रहता है ।
यह निशान निम्न वस्तुऔं पर दिया गया है:
a. पेपर बैग
b. जुट बैग
c. प्लास्टिक के समान
d. पैकिंग सामाग्री आदि उत्पाद प्रमुख हैं
e. मिट्टी की बनी मूर्तियों भी इनमें आती हैं ।
(d) ऊन मार्क (Wool Mark):
इस निशान को अन्तर्राष्ट्रीय ऊन सचिवालय द्वारा ऊन व ऊन से बनने वाली वस्तुओं की शुद्धता पर दिया गया है ।
i. यह निशान इस बात को सुनिश्चित करता है कि ऊन व ऊन से बनी वस्तुयें 100% शुद्ध ऊन से बनी हैं ।
ii. उत्पादक के ऊपर लगे लेबल पर इस मार्क को लगाने का अर्थ है कि उत्पाद शुद्ध ऊन का है ।
iii. इस मार्क के अनुसार यदि ऊन के साथ किसी अन्य जन्तु के रेशे का उपयोग किया गया है, तो उसके नाम का प्रतिशत लिखना भी अनिवार्य होता है ।
(e) सिल्क मार्क (Silk Mark):
इस मार्क को भारतीय सिल्क संगठन ने देना शुरू किया था । यह मार्क इस बात को सुनिश्चित करता है कि रेशमी कपड़ा 100% शुद्ध रेशम का बना हुआ है ।
(f) शाकाहारी मार्क (Vegetarian Mark):
यह निशान सुनिश्चित करता है कि उत्पाद में उपयोग की गई सभी सामग्री 100% शाकाहारी या वनस्पति जगत की हैं । यह निशान हरे रंग का होता है ।
(g) माँसाहारी मार्क (Non-Vegetarian Mark):
यह निशान इस बात को सुनिश्चित करता है कि उत्पाद वस्तु में माँसाहारी वस्तुओं का प्रयोग किया गया है । यह निशान लाल रंग का होता है ।
(h) हॉलमार्क (Hall Mark):
ये मार्क सोना व चाँदी आदि कीमती धातु की गुणवत्ता के लिये लगाये जाते हैं । सोना 91.6% शुद्ध होता है ।
(2) लेबल और मूल्य सूची (Label and Price List):
लेबल (Label):
लेबल वस्तु की गुणवत्ता, प्रयोग और बनाने की विधि के बारे में उपभोक्ता को पूर्ण जानकारी प्रदान करता है । लेबल पर कई प्रकार की सूचनायें छापी जाती हैं तथा उसे उत्पाद पदार्थ की पैकिंग (पैकेट, बोतल, डिब्बे या कन्टेनर) पर चिपकाया जाता है । लेबिल पूर्ण हो इसके लिये भारतीय मानक ब्यूरो ने कुछ मानक निर्धारित किये हैं, उसी के अनुसार मुद्रित लेबल पैकिंग पर लगाया जाता है ।
लेबल द्वारा निम्न जानकारी प्राप्त होती है:
i. उत्पादक का नाम
ii. उत्पाद में उपयोग की गई सामग्री की सूची
iii. तैयार उत्पाद का वजन मात्रा व गुणवत्ता
iv. उत्पाद के निर्माण-तारीख
v. उत्पाद के समाप्त करने की अन्तिम तारीख
vi. उत्पाद की प्रकृति-निर्माता का नाम, पता व ट्रेड्रमार्क
vii. मानवीकृत चिन्ह
viii. उत्पादक को उपयोग करने व संचय करने की विधि
ix. उत्पाद-मूल्य
x. उत्पाद में पोषक तत्व-पौष्टिकता
xi. बैच व लाइसेन्स की संख्या
xii. गारण्टी का समय
xiii. आवश्यक चेतावनी यदि हो तो ।
कई बार निर्माता लेबल पर गलत या अधूरी सूचना देते हैं जो कि उपभोक्ता को धोखा देने या गुमराह करने के लिये होती है । कभी-कभी मुद्रित सूचनायें साफ व स्पष्ट नहीं होतीं जिससे उपभोक्ता को पढ़ने में असुविधा होती है । अत: इस प्रकार के लेबल उपभोक्ता को सहायता तो नहीं देते बल्कि एक सिर दर्द बन जाते हैं ।
मूल्य सूची (Price List):
उत्पादककर्ता सूचियाँ उपलब्ध कराकर विभिन्न उत्पादों के बारे में जानकारी उपभोक्ता को प्रदान करता है ।
(3) पैकेज (Package):
पैकिंग से अर्थ है कि उत्पाद को किन-किन विधियों से सुरक्षित किया जाय । पैकिंग की गई वस्तु जल्दी खराब नहीं होती । लंच उत्पादकों को सुरक्षित रखने के लिये उनकी पैकिंग की जाती है ।
पैकिंग के लाभ निम्न प्रकार हैं:
i. वस्तु खराब नहीं होती ।
ii. वस्तु के टूटने का डर नहीं रहता ।
iii. वस्तु में मिलावट नहीं हो सकती ।
iv. वस्तु की चोरी नहीं हो सकती ।
बच्चों के लिये बनाये जाने वाले पदार्थों के लिये रंग-बिरंगे व आकर्षक पैकिंग का प्रयोग करते हैं, परन्तु उनकी गुणवत्ता की कोई गारण्टी नहीं होती । अत: उत्पाद खरीदते समय केवल आकर्षक व रंग-बिरंगी पैकिंग को देखकर ही उत्पाद नहीं खरीदना चाहिए बल्कि उन वस्तुओं के मार्क के बारे में जानकारी लेकर तथा अन्य जगह उन्हीं वस्तुओं की जानकारी लेकर ही खरीदना चाहिए ।
(4) विज्ञापन (Advertisement):
उपभोक्ताओं को उत्पादों की महत्वपूर्ण जानकारी विज्ञापनों से प्राप्त होती है । विज्ञापन द्वारा वस्तु की उपलब्धता, गुणवत्ता, प्रयोग विधि तथा वस्तु के बारे में विशेष जानकारी प्राप्त होती है । कभी-कभी उत्पादों के बारे में विज्ञापन द्वारा पूर्ण व उचित जानकारी प्राप्त नहीं होती, क्योंकि निर्माता अपने विज्ञापनों के लिए मुख्यतया इस माध्यमों का सहारा लेते हैं, जैसे; टेलीविजन, रेडियो, समाचार-पत्र व मैगजीन आदि ।
कभी-कभी इन विज्ञापनों द्वारा उपभोक्ता को उत्पाद के बारे में सही व उचित जानकारी प्राप्त नहीं हो पाती । यदि उपभोक्ता बिना महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त किये वस्तु खरीदता है तो यह उसकी अज्ञानता व अपरिपक्वता है ।
अत: स्पष्ट है कि इस प्रकार के विज्ञापन उपभोक्ताओं को धोखा देने व गुमराह करने के लिये दिये जाते हैं । आजकल यह अत्यन्त प्रचलित है कि निर्माता मनोवैज्ञानिक विधि से उपभोक्ता को अपना उत्पाद खरीदने के लिये उकसाते हैं; जैसे: ”केशवर्द्धन तेल लगाने से एक हफ्ते में बाल पैर तक लम्बे हो जायेंगे” फलांफलां क्रीम लगाने से रंग गोरा हो जायेगा ।
उपभोक्ता इन विज्ञापनों से आकर्षित होकर उत्पाद खरीद लेते हैं तथा बाद में पछतावा ही हाथ में आता है । अत: उपभोक्ता को अपनी सूझबूझ से वस्तुयें खरीदनी चाहिए न कि भ्रमित करने वाले विज्ञापनों को देखकर । उपभोक्ता को विज्ञापन से केवल बाजार में उपलब्ध विभिन्न चीजों की जानकारी लेनी चाहिए क्रय करने की नहीं ।
(5) उपभोक्ता मंच और उपभोक्ता समाज (Consumer Forum and Consumer Society):
कई उपभोक्ता आपस में संगठित होकर उपभोक्ता समाज के रूप में कई समितियाँ बना लेते हैं । ये समितियाँ उपभोक्ता को उचित मूल्य पर अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तु खरीदने में मदद करती हैं । इस प्रकार की संगठित समितियों का कार्य उपभोक्ता को सहायता पहुँचना ही होता है, अधिकांशतया ये निःशुल्क अपनी सेवाएँ देती हैं ।
ये समितियाँ किसी प्रकार का लाभ कमाने का कार्य नहीं करतीं । ये केवल अपने सदस्यों से सदस्यता शुल्क लेती हैं । कई संगठन स्वयं ही उत्पादों को बेचने का कार्य करते हैं । ये कई बार अच्छी गुणवत्ता वाले उत्पाद सीधे निर्माताओं से खरीद कर तथा उचित कीमत पर उपभोक्ता को बेचते हैं ।
कई समितियाँ तो क्रय मूल्य पर ही उपभोक्ता को वस्तुयें बेचती हैं । इन समितियों को सरकार से अनुदान के रूप में सहायता भी मिलती है, इसके साथ कर से छूट भी मिलती है । कृषि बैंक कम-से-कम ब्याज पर इन्हें ऋण भी देते हैं ।
कुछ ऐसी भी स्वैच्छिक संस्थाएँ (Autonomous Society) भी होती हैं जोकि उपभोक्ताओं के हितों के लिये कार्यरत हैं तथा वे उपभोक्ता के हितों की रक्षा करती हैं । इन संस्थाओं में प्रमुख हैं: सुपर बाजार, सरकारी भण्डार या जनता बाजार जो कि उपभोक्ताओं को उचित मूल्यों पर गुणवत्ता वाले उत्पाद उपलब्ध कराते हैं । सुपर बाजार की विशेषता है कि वहाँ खाद्य पदार्थों का परीक्षण करने के लिये स्वयं की प्रयोगशालायें होती हैं । अत: सुपर बाजार में खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता का परीक्षण समय-समय पर होता रहता है ।
(6) खाद्य कानून (Food Laws):
सरकार द्वारा खाद्य कानून बनाने का लाभ उपभोक्ता को प्राप्त होता है । कानून से उपभोक्ता को सुरक्षित एवं पौष्टिक खाद्य पदार्थ प्राप्त करने का अवसर प्राप्त होता है । उपभोक्ता के लिये खाद्य कानून अत्यन्त महत्वपूर्ण है ।
खाद्य कानून का मुख्य ध्येय निम्न प्रकार है:
विभिन्न मिलावटी खाद्य उत्पादों से होने वाले हानिकारक प्रभाव से उपभोक्ता की रक्षा करना । यह कानून व्यापारियों को सही व उचित आचरण से व्यापार करने को प्रोत्साहित करता है तथा आचरण कोड को लागू करने का कार्य करता है ।
भारत सरकार (Govt. of India) ने उपभोक्ता की रक्षा के लिये निम्न कानूनों को पारित किया है:
i. खाद्य अपमिश्रण अधिनियम (Prevention of Food Adulteration Act- P.F.A),
ii. फल उत्पादन आदेश (Food Product Order- F.P.O),
iii. माँस उत्पादन और गुणवत्ता नियन्त्रण आदेश,
iv. औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम,
v. हानिकारक औषधि अधिनियम,
vi. वातावरण या पर्यावरण संरक्षण अधिनियम ।
(7) पुस्तकें व पत्रक (Books and Leaflets):
विभिन्न वस्तुओं के निर्माताओं को अपने उत्पादों की जानकारी उपभोक्ताओं को देने के लिये पुस्तिकाएँ व पर्चे छपवाकर वितरित करने होते हैं । इसमें उत्पाद से सम्बन्धित व्यावसायिक सूचना (Commercial Information) के साथ उत्पाद के तकनीकी विषयों की जानकारी भी दी जाती है । दवाइयों, शिशु आहार, बिजली के उपकरणों के साथ निर्माताओं द्वारा मुद्रित पुस्तिकाएँ एवं पत्रक उपभोक्ताओं को प्राप्त होते हैं ।
(8) उपभोक्ता निवारण मंच (Consumer Redressal Forum):
उपभोक्ताओं को खरीददारी करने के पश्चात् उनके हितों की रक्षा करने के लिये कई समितियाँ या मंच बनाये गये हैं जो कि निर्माताओं की गद्दारी व धोखाधड़ी से रक्षा करते हैं तथा उन्हें उत्पादों की सही कीमत तथा गुणवत्ता के बारे में शिक्षित करते हैं ताकि उपभोक्ता किसी वस्तु को क्रय करने के पश्चात् यह महसूस करे कि जो उत्पाद या सेवा उसने प्राप्त की है ।
उसमें निम्न बातें हैं:
i. मानकीकृत से निम्न स्तर की है,
ii. अनुमानित कीमत,
iii. मूल्य से अधिक मूल्य लिया गया है,
iv. उत्पाद की लिखी मात्रा से कम है,
v. निर्माता द्वारा सेवा ठीक प्रकार से नहीं प्रदान की जा रही है ।
उपरोक्त कोई भी कमी उत्पाद में होने पर उपभोक्ता निर्माता/विक्रेता के खिलाफ उपभोक्ता निवारण मंच में शिकायत दर्ज कर सकता है तथा जिला स्तर पर न्यायालय (Consumer Court) जा सकता है ।