Read this essay in Hindi to learn about climate change and its effects on the environment.
अनेक क्षेत्रों में औसत तापमान हाल के दशकों में बढ़ा है । पिछली सदी में विश्व की सतह का औसत तापमान 0.6-0.2 सेल्सियस तक बढ़ा है । विश्व के स्तर पर, 1998 सबसे गर्म साल था और 1990 का दशक अभी तक का सबसे गर्म दशक था । अनेक और खासकर मध्य और उच्च अक्षांशों वाले देशों में वर्षा बढ़ी है ।
कुछ क्षेत्रों में, जैसे एशिया और अफ्रीका के कुछ भागों में, सूखों की बारंबारता और तीव्रता हाल के दशकों में बढ़ी है । 1970 के दशक के मध्य से, पिछले 100 वर्षों की तुलना में भारी तूफान लानेवाले अल-नीनों की बारंवारता, तीव्रता और अवधि भी बढ़ी हैं । ये सभी पृथ्वी के रोगग्रस्त होने की निशानियाँ हैं । मनुष्यों के कार्यकलापों के कारण पृथ्वी अपना संतुलन खो रही है ।
ADVERTISEMENTS:
जलवायु के भावी परिवर्तनों की भविष्यवाणी कंप्यूटर पर आधारित माडलों से किए गए अनेक प्रयोगों पर आधारित है । भावी जनसंख्या वृद्धि और ऊर्जा की खपत जैसे कारकों के आधार पर इनकी गणना की जाती है । जलवायु परिवर्तन के संबंध में अंतःसरकारी दल (intergovernmental panel) के जलवायु-वैज्ञानिकों ने इस सदी में मौसम के परिवर्तनों का अनुमान लगाने के लिए अनेक प्रयोगों के परिणामों की समीक्षा की है ।
इन अध्ययनों से पता चला है कि निकट भविष्य में संसार के औसत सतह तापमान में 1.4 से 5.8० सेल्सियस की वृद्धि होगी । यह उष्णता भू-क्षेत्रों और उच्च अक्षांशो वाले क्षेत्रों में अधिक होगी । उष्णता की प्रक्षेपित दर पिछले 10,000 वर्षों वाली दर से अधिक है । मौसमों की अतियों की बारंबारता बढ़ सकती है तथा बाढ़ या सूखा ला सकती है । शीत लहरें कम होंगी पर गर्म वायु के झोंके अधिक आएँगें । अल नीनों की बारंबारता और तीव्रता बढ़ सकती हैं ।
संसार का औसत समुद्रतल वर्ष 2100 तक 9 से 88 सेमी तक बढ़ सकता है । आज दुनिया की आधी से अधिक आबादी समुद्र से 60 किमी दूरी तक रहती है । खारे पानी के फैलाव और सागर के प्रसार से उस पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं । मिस्र का नील डेल्टा, बांग्लादेश का गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा तथा मार्शल आइलैंड्स और मालदीप समेत अनेक छोटे द्वीप सबसे अधिक प्रभावित हो सकने वाले क्षेत्र हैं ।
तापमान की अतियों, सूखे और बाढ़ से मानव-समाजों पर गंभीर प्रभाव पड़ेंगे । बदलती जलवायु इन अतियों की बारंबारता और/या तीव्रता में बदलाव लाएगी । यह भी मानव के स्वास्थ्य के लिए एक बुनियादी चिंता का विषय है । जनता का स्वास्थ्य एक बड़ी सीमा तक सुरक्षित पेय जल, पर्याप्त भोजन, सुरक्षित आवास और उम्दा सामाजिक दशाओं पर निर्भर है । जलवायु परिवर्तन से ये सभी बातें प्रभावित होंगी ।
ADVERTISEMENTS:
ताजे जल की आपूर्ति पर गंभीर प्रभाव पड़ेंगे; सूखा और बाढ़ के दौरान पीने और कपड़े धोने के लिए साफ पानी की उपलब्धता कम होगी । जल प्रदूषित होगा और जल निकास की व्यवस्थाओं को हानि पहुँचेगी । दस्त जैसे संक्रामक रोगों के प्रसार का जोखिम बढ़ेगा । प्रभावित क्षेत्रों में प्रत्यक्ष रूप से, तथा कीड़ों और पौधों-पशुओं के रोगों में वृद्धि के कारण अप्रत्यक्ष रूप से भी, खाद्य उत्पादन में भारी कमी आएगी ।
स्थानीय खाद्य उत्पादन में कमी भुखमरी और कुपोषण का कारण बनेगी जिसके स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेंगे, खासकर बच्चों के लिए । खाद्य और जल की कमी से प्रभावित क्षेत्रों में टकराव पैदा होंगे । मानव-स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तनों के प्रभाव के चलते एक बड़ी आबादी विस्थापित होगी जो पर्यावरणीय शरणार्थी कहलाएगी । स्वास्थ्य संबंधी और भी समस्याएँ पैदा होंगी ।
जलवायु के परिवर्तनों से रोगवाहक प्रजातियों (vector species), जैसे मच्छरों का वितरण भी प्रभावित हो सकता है । इससे फिर उन नए क्षेत्रों में, जो स्वास्थ्य संबंधी ठोस ढाँचे से वंचित होंगे, मलेरिया और फाइलेरिया जैसे रोग फैल सकते हैं । मच्छरों से फैलने वाले अनेक रोगों (जैसे डेंगू, पीला बुखार; yellow fever) और किलनियों (ticks) से फैलनेवाले रोग (मष्तिष्क ज्वर आदि) के मौसमी प्रसार और वितरण में जलवायु परिवर्तनों के कारण वृद्धि हो सकती है ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा गठित एक कार्यदल ने चेतावनी दी है कि जलवायु का परिवर्तन मानव के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है । जलवायु का परिवर्तन स्वास्थ्य संबंधी कुछ मौजूदा समस्याओं को बढ़ाएगा तथा नई और अप्रत्याशित समस्याएँ भी लाएगा ।
ADVERTISEMENTS:
जलवायु के अनुमानित परिवर्तनों से स्वास्थ्य संबंधी संभावित प्रभावों में कमी लाने की रणनीतियों में संक्रामक रोगों और रोगवाहकों की निगरानी भी शामिल होनी चाहिए ताकि रोगों के प्रसार और वाहकों के भौगोलिक वितरण के शुरुआती परिवर्तनों का पता लगाया जा सके, इन पर नियंत्रण रखने के लिए पर्यावरण प्रबंध के उपाय किए जा सके तथा बाढ़ों या सूखों और उनके स्वास्थ्य संबंधी परिणामों के लिए तैयारी की जा सके ।
महामारियों की तैयारी के लिए अग्रिम चेतावनी की प्रणालियों की स्थापना और शिक्षा की आवश्यकता है । जल और वायु प्रदूषण का नियंत्रण मानव स्वास्थ्य के लिए अधिकाधिक आवश्यक बनता जाएगा । जनशिक्षा का मकसद व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन लाना होना चाहिए । दुनिया विश्वव्यापी जलवायु परिवर्तन के प्रत्याशित परिणाम के बारे में अधिक जिम्मेदार बने, इसके लिए शोधकर्ताओं और स्वास्थ्यकर्मियों का प्रशिक्षण अनिवार्य है ।