दहेज प्रथा । “Dowry System” in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. दहेज आखिर क्या है?
3. इतिहास ।
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4. दहेज बुराई क्यों?
5. दुष्परिणाम ।
6. दहेज उन्मूलन के उपाय ।
1. प्रस्तावना:
दहेज की समस्या ने आज भारतीय समाज को बुरी तरह से प्रभावित किया है । दहेज देने का सरल, साधारण रूप अब काफी विकृत हो गया है । दहेज के न देने पर कन्या पक्ष को प्रताड़ित किया जाता है । कई बार यह देखने में आता है कि दहेज रूपी दानव निर्दोष, मासूम कन्याओं को अपना ग्रास बना है ।
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हमारे देश में चूंकि यह मान्यता बन गयी है कि पति का घर ही स्त्री का वास्तविक घर होता है । ऐसे में स्त्री को वहां पर कितनी भी यातनाएं मिलें, वह अपने पति को छोड्कर अपने मायके वापस नहीं आ सकती है । इसी वजह से कई स्त्रियां अत्याचार सहते-सहते दहेज की बलि चढ़ जाती है ।
2. दहेज आखिर क्या है?
विवाह के अवसर पर कन्या पक्ष द्वारा वर पक्ष को जो धन सामग्री या उपहार दिये जाते हैं, उसे दहेज कहते हैं । पहले कन्या पक्ष द्वारा अपनी स्वयं की मर्जी से जो भी सामान दिया जाता था, उसे वर पक्ष द्वारा खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया जाता था, परन्तु आजकल इसने विकृत रूप ले लिया है ।
आज दहेज में सोना, चांदी, कीमती साड़ियां, मोटर साइकिल, पलंग, सोफा, फ्रिज, वाशिंग, मशीन आदि देने पर भी वर पक्ष की हवस खत्म नहीं होती और वे समय-समय पर कन्या को अपने मायके से कैश रकम लाने को कहते हैं ।
न लाने पर कन्या को तरह-तरह के बहाने बनाकर उसका दोष सामने रखकर उसे प्रताड़ित किया जाता है । अधिकांश माता-पिता लड़की को लड़कों की तुलना में कग ही आकते हैं । वे सोचते हैं कि किसी तरह लड़की का विवाह कर उसे विदा कर दिया जाये ।
3. इतिहास:
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‘दहेज’ कब से प्रारम्भ हुआ, यह कहना कठिन है । वैदिक काल में भी भारत में यह प्रथा प्रचलन में थी । भगवतशरण उपाध्याय ने ‘कालिदास का भारतं’ नामक गन्ध में महाकवि कालिदास के समय में दहेज प्रथा का उल्लेख करते हुए लिखा है कि उस समय भी दहेज की प्रथा थी । आजकल के समान विवाह से पूर्व कोई शर्त नहीं थी ।
विवाह सरकार की समाप्ति पर वर को कन्या के अभिभावक अपनी सामर्थ्य और उत्साह के अनुसार ही दहेज देते थे । कन्या को आभूषणों से अलंकृत कर दिया जाता था और ये आभूषण तथा बसु-बान्धवों से मिली भेंट उसका स्त्री धन होता था । गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस में भी इस प्रथा का वर्णन किया गया है: ”कहि न जाये कहु दाइज भरी, रहा कनक-मणि मण्डप पूरी ।”
4. दहेज बुराई क्यों?
दहेज देना बुराई नहीं है । जब माता-पिता स्व खुशी से अपनी सामर्थ्य के अनुसार दहेज देते हैं और वर पक्ष द्वारा इसे स्वीकार कर लिया जाता है, पुन: निकट भविष्य में इसकी मांग नहीं की जाती है, तो इसमें बुराई क्या है ?
परन्तु वर पक्ष द्वारा दहेज की मांग करना और न देने पर कन्या को प्रताड़ित करना, इसमें बुराई है । दहेज मांगने का मतलब है कि मांगने वाले का कोई स्वाभिमान नहीं है अर्थात् उसका दृष्टिकोण दूसरों की वस्तुओं पर नजर रखने का है ।
यह उसकी भीख मांगने वाली आदत को दर्शाता है । आज वर पक्ष के माता-पिता यह कहते हैं कि भई! हमने इसे डॉक्टरी पड़ाने, इंजीनियर बनाने या आई॰ए॰एस॰ बनाने में इतने रुपये खर्च किये हैं । हमें तो इसका मूल व लाभ मिलना चाहिए । इससे आपकी बेटी का ही भविष्य सुनहरा हो सकेगा । यह कहकर वे मनमाना दहेज मांगते हैं । बस, मांगने से ही बुराई की शुराआत हो जाती है ।
वर्तमान में कई कन्याओं का विवाह सिर्फ इसीलिए नहीं हो पाता कि उनके माता-पिता के पास उनके दहेज के लिए रुपये नहीं होते । आज दहेज रूपी शिशुपाल अपने क्रूर हाथों से कितनी ही कन्याओं का गला घोंट उन्हें आत्महत्या के लिए मजबूर कर रहा है ।
5. दुष्परिणाम:
दहेज प्रथा राष्ट्र के समष्टिगत रूप के लिए सबसे बड़ा घातक शत्रु है । पिता जब यह देखता है कि वह अपनी ईमानदारी की कमाई से बेटी का दहेज नहीं जुटा पायेगा, तो वह बेईमानी, रिश्वतखोरी जैसे अपराधी में संलग्न हो अपनी बेटी का विवाह करता है । तो भी उसे ससुराल में कई प्रकार के ताने सुनने को मिलते हैं ।
पति बात-बात पर उसका अपमान करता है । ऐसा जताता है कि उसने उससे विवाह कर उस पर बड़ा उपकार किया है । कई सुन्दर कम उग्र की लड़कियों का विवाह बूढ़े-खूसट से इसलिए कर दिया जाता है; क्योंकि वह पैसे वाला है ।
चूंकि कन्या को जन्म से ही बोझ समझा जाता है, इसलिए अधिकांश कन्याएं अपने ससुराल में कई तरह से प्रताड़ित होते हुए भी अपने माता-पिता के समक्ष मुंह नहीं खोलतीं । अन्तत: वह जलकर, जहर खाकर, ट्रेन के नीचे आकर, फांसी लगाकर अपने जीवन का अन्त करती हैं ।
6. दहेज उन्मूलन के उपाय:
1. इस प्रथा को रोकना वर पक्ष के हाथ में है । यदि लड़का पढ़ा-लिखा, समझदार है, तो वह अपने माता-पिता से विरोध कर बिना दहेज लिये विवाह कर समाज के समक्ष एक आदर्श उपस्थित कर सकता है ।
2. सरकार को इस दिशा में कठोर कानूनों को अमल में लाना चाहिए । तभी दहेज देने और लेने पर रोक सम्भव होगी ।
3. प्रेम-विवाह, अन्तर्राष्ट्रीय विवाह को प्रोत्साहन देने हेतु चुपका-युवतियों को क्रान्तिशील होना चाहिए ।
4. दहेज निषेध अधिनियम भी एक अच्छा कदम है ।
5. इस दिशा में अधिक-से-अधिक टी॰वी॰ सीरियल, नाटक, चलचित्रों द्वारा जनता को शिक्षित करना चाहिए ।
6. कन्या पक्ष के अभिभावक कन्या को भार न मानते हुए उन्हें अधिक-से-अधिक शिक्षित करें, ताकि वे अपने पैरों पर खड़ी हो सकें ।
प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने कहा था: “ऐसे रीति-रिवाज, जो स्त्री वर्ग के लिए कष्टप्रद हैं, उन्हें नष्ट करने का हर सम्भव प्रयास किया जाना चाहिए ।” दहेज भी एक ऐसा रिवाज है ।
इस बुराई को कठोर कानून द्वारा ही समाप्त नहीं किया जा सकता, इसके लिए सामाजिक चेतना व जागृति की बलवती आवश्यकता है । इन दहेज के असुरों के संहार के लिए भविष्य में बनने वाली सास को ही प्रयास करने होंगे । उसे दहेज लेने से साफ इनकार कर देना चाहिए ।