राजनीति का अपराधीकरण । “Criminalization of Politics” in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. राजनीति और अपराध का सम्बन्ध ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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हमारी संस्कृति में राजनीति को शासन की एक श्रेष्ठ संगठित नीति कहा गया है । इस नीति में राजा या शासक राज्य पर शासन करते हुए एक आदर्श कायम करता था । राजा श्रेष्ठ मानवीय चरित्र एवं गुणों से युक्त होता था । वह प्रजाहितैषी होता था ।
स्वकल्याण के स्थान पर जनकल्याण को सर्वोपरि मानता था । कहा भी गया है: “जासु राजा होय प्रजा दुखारी । सो नृपे अवसि नरक अधिकारी ।” इस आधार पर प्रजा को अपनी राज्यनीति से किसी-न-किसी प्रकार का कष्ट देने वाले राजा को नरक का अधिकारी माना गया है ।
राजा स्वयं आदर्श स्थापित करने के साथ-साथ अपने सभी विभागों तथा कर्मचारियों में भी इन्हीं गुणों की अपेक्षा करता था । उन सब की नियुक्ति का आधार भी यही होता था । यदि किसी प्रकार का अधर्म या अन्याय होता था, तो राजा उस पर अंकुश लगाता था ।
निरंकुश व अत्याचारी राजा को तो प्रजा भी पसन्द नहीं करती थी । वर्तमान में भारतीय राजनीति में जिस तरह से अपराधिक तत्त्वों का बोलबाला हो रहा है, वह जनता तथा देश के स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त घातक हैं ।
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इन तत्त्वों ने भारतीय संस्कृति के रामराज्य की कल्पना को तार-तार कर दिया है । स्वतन्त्रता से पूर्व तथा उसके कुछ वर्षो तक हमारे देश की राजनीति में नेताओं का चरित्र एक आदर्श था । जनता उनके चारित्रिक आदर्शो के कारण उन्हें सिर-माथे पर बिठाती थी । किन्तु वर्तमान राजनीति में कुछ विरले नेताओं को छोड़कर अधिकांश अपराध तथा अपराधी से किसी-न-किसी तरह से जुड़े हुए हैं ।
2. राजनीति और अपराध का सम्बन्ध:
वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य कुछ ऐसा है कि हम राजनीति को अपराधीकरण का पर्याय मानें या फिर अपराधीकरण को राजनीति का पर्याय । ऐसा लगता है कि दोनों में चोली-दामन का साथ है । कुर्सीलोलुप नेता कुर्सी हथियाने के लिए डाकुओं, माफिया सरगनाओं की मदद लेते हैं ।
चुनाव जीतना हो या मतपेटियों को लूटना हो या फिर बूथ कैप्चरिंग करनी हो, किसी विरोधी दल के नेता की हत्या हो या फिर अपने किसी प्रतिद्वन्द्वी को कुर्सी के रास्ते से हटाना हो, अपराधियों की बेखौफ मदद लेते हैं ।
ये अपराधी हत्या, लूटपाट, अपहरण, बलात्कार, देशद्रोह जैसी गतिविधियों में संलग्न रहते हैं । फिर भी स्वार्थपूर्ण राजनेता इनको संरक्षण देते हैं । कानून का मजाक बनाकर इन्हें बड़ी-से-बड़ी सजा से छुड़ा ले जाते हैं । पेशेवर अपराधियों को भी राजनीति में इतना दखल मिल गया है कि वे चुनाव का टिकट भी आसानी से प्राप्त कर लेते हैं । विभिन्न पार्टी के नेता इन्हें अपने दल का प्रत्याशी बनाकर चुनाव लड़वाते हैं ।
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चुनाव जीतने के बाद इन्हें मन्त्री पद तक पहुंचाने में कोई कसर बाकी नहीं रखते । यहां तक कि जेल में सजा काटते हुए भी ये सांसद बने रहते हैं । बिहार और उत्तरप्रदेश तो इसका साक्षात उदाहरण हैं । इस तरह लोकतन्त्र का गला घोंट रहे हैं ।
संसद में ऐसे ही नेता जनता के प्रतिनिधि बनेंगे, तो वे क्या खाक आदर्श स्थापित करेंगे । संसद एवं विधानसभाओं में तो लात-घूंसों तथा जूतम पैजार से लेकर असंसदीय भाषा का प्रयोग भी होने लगा है ।
यह सब राजनीति के अपराधीकरण का ही दुष्परिणाम है । यद्यपि चुनाव आयोग ने राजनीति में बढ़ते हुए अपराधीकरण को रोकने के प्रयास किये, तथापि राजनेताओं द्वारा जब तक ईमानदार प्रयास नहीं होंगे, तब तक इस पर रोक लगाना मुश्किल होगा ।
राजनीति में इतने अधिक घोटाले, षड़यन्त्र हो रहे हैं कि यह एक प्रकार से अपराधीकरण का पूरक बन गये हैं । विभिन्न संचार माध्यम भी ऐसे भ्रष्ट अपराधी नेताओं के दुष्कर्मो को किसी फिल्मी हीरो की तरह महिमामण्डित करके पेश करते हैं ।
इसके विरुद्ध जन आक्रोश पैदा करने में वे असमर्थ नजर आते हैं । जनता भी इसके लिए जिम्मेदार है । वह सब कुछ जानते-समझते हुए भी ऐसे प्रत्याशियों को विजयी बनाती है, जो कि हमारे लोकतन्त्र के गले की फांस बन गये हैं ।
3. उपसंहार:
राजनीति में इस तरह का अपराधीकरण भारत जैसे सांस्कृतिक आदर्शो वाले देश के लिए अत्यन्त घातक, चिन्तनीय, लज्जाजनक है । यदि समय रहते इसे अब भी रोका नहीं गया, तो राजनीति अपराधियों की शरणस्थली बन जायेगी और हमारा लोकतन्त्र पतन के गर्त में समा जायेगा ।
राजनीति में अपराधीकरण को रोकने हेतु सरकार, जनता, प्रचार माध्यम को अपनी ईमानदारीपूर्ण भूमिका का निर्वहन करना होगा ।