बैसाखी और लोहड़ी । “Baisakhi and Lohri” in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. बैसाखी का महत्त्व ।
3. लोहड़ी का महत्त्व ।
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4. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
बैसाखी तथा लोहड़ी: ये दोनों पंजाब तथा हरियाणा की संस्कृति के विशिष्ट त्योहार हैं । दोनों ही त्योहार अत्यन्त उल्लास व उमंग के साथ मनाये जाते हैं । बैसाखी का त्योहार बैसाख मास की संक्रान्ति, अर्थात पहली बैसाख को मनाया जाता है ।
इस समय खेतों-खलिहानों में नयी फसलें पककर तैयार होकर आती हैं । फसलों को देख-देखकर पंजाब व हरियाणा का किसान नाचने. गाने व झूमने लगता है । ”हो जट्टा आयी बैसाखी’ के साथ यही आनन्दोल्लास पंजाब की धरती को सरोबार कर देता है ।
इसी तरह लोहड़ी का त्योहार महीनों के हिसाब से पौष मास की अन्तिम रात्रि, यानी मकर संक्रान्ति से एक रात पहले मनाया जाता है, जो अकसर 13 या 14 जनवरी को पड़ता है । इस त्योहार का सम्बन्ध भी फसलों की कटाई से है ।
2. बैसाखी का महत्त्व:
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बैसाखी का त्योहार बैसाख मास की संक्रान्ति या पहली तारीख को पवित्र एवं शुभ मानकर मनाया जाता है । नये वर्ष का आरम्भ इसी तारीख से होता है । इस दिन लोग सूर्योदय से पूर्व उठकर पवित्र सरोवरों और नदियों में स्नान हेतु जाते हैं ।
स्नान के बाद विशेष भजन-पूजन कर गरीबों को यथासम्भव दान देने की परम्परा है । नदी-सरोवरों, तीर्थस्थलों पर इस दिन मेलों का आयोजन होता है । पकी हुई फसलों को देखकर भागडा, गिद्धा आदि जोश, उमंग, रास-रंग से भरे हुए गीतों को गाते हुए नवयुवक व युवतियां नाचते हैं ।
बैसाखी पर्व मनाने हेतु विशेष स्थानों पर मेलों का आयोजन होता है । युवक एवं युवतियां सज-धजकर मेलों का आनन्द उठाने के लिए निकल पड़ते हैं । मेलों में नाच-गानों की खूब धूम होती है । यहां खेल-तमाशे, दंगल, कुश्तियां वगैरह आयोजित होती हैं ।
3. लोहड़ी का महत्त्व:
लोहड़ी का पर्व भी अत्यन्त हर्षोल्लास के साथ पंजाब व हरियाणा में मनाया जाता है । शीत का प्रभाव इस समय अपने पूर्ण शबाब पर रहता है । प्रत्येक घरों तथा गली-मुहल्लों में सामूहिक, तो कहीं व्यक्तिगत स्तर पर आग जलाकर पूजा और आरती की जाती है । आग में रेवड़ी इत्यादि डाली जाती है ।
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लोग लोकधुनों पर नाचते हुए नजर आते हैं । आग तापते है । तिल-गुड़ से बने पदार्थ-रेवड़ी, गजक, मूंगफली, मक्की फूल के दाने इत्यादि पदार्थो का सेवन करते हैं । विवाहित बेटियों के लिए इस अवसर पर नये-नये उपहार खरीदे जाते हैं ।
लोहड़ी के समय फसल कटकर तैयार होती है । गन्ने से गुड बनाया जाता है । फिर गन्ने के रस की खीर, मक्के की रोटी, सरसों का साग पकाकर विशेष रूप से खाया जाता है । लोहड़ी की आग जलाने के लिए बालक-बालिकाएं घर-घर जाकर लकड़ियां मांगते हैं ।
4. उपसंहार:
निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि लोहड़ी और बैसाखी-इन दोनों त्योहारों में पंजाब की धरती और संस्कृति की सुगन्ध समायी हुई है । इन त्योहारों में विशेष रूप से खाये जाने वाले पदार्थ वस्तुत: शीत के प्रभाव को कुछ हद तक कम करते है । शरीर को स्वस्थ बनाते हैं ।
मानव-जीवन में ऊर्जा, उमंग, उत्साह, सामूहिकता, सामाजिकता, परिश्रम, सम्पन्नता के महत्त्व को दर्शाने वाले ये दोनों त्योहार मानव-जीवन में अपना विशेष महत्त्व रखते है । सबसे प्रमुख बात यह है कि दोनों ही त्योहार भारतीय कृषि जीवन के लिए, प्रकृति के वैभव एवं श्रीवृद्धि के लिए अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं ।