अक्षय तृतीया । “Akshaya Tritiya” in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. अक्षय तृतीया का महत्त्व ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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”अक्षय तृतीया” जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि जो क्षय नहीं होती, वह तिथि अक्षय तृतीया है । ब्रह्म पुराण के अनुसार वैशाख शुक्लपक्ष तृतीया, सत्ययुग की कार्तिक शुल्दा पक्ष त्रयोदशी, द्वापर की तथा माघ पूर्णमासी, कलयुग की युगादि तिथियां हैं । इन तिथियों में किये गये कर्म अक्षय होते हैं । चूंकि सतयुग सबमें श्रेष्ठ है, अत: अक्षय तृतीया में किया गया जल तर्पण चन्द्रदेव के पास सुरक्षित रहता है ।
2. अक्षय तृतीया का महत्त्व:
हमारे भारतीय समाज में अक्षय तृतीया का पर्व इतना महत्त्वपूर्ण एवं पवित्र है कि इस दिन विवाहादि कार्यों के लिए भी मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती है । इस दिन जल सम्बन्धी कार्य, जैसे-प्याऊ लगवाने, कुएं खुदवाने, तालाब बनवाने, उपवन तैयार करने और उसे लोककल्याण के लिए जो अर्पित करता है, वह स्वर्गलोक का अधिकारी होता है ।
उसके द्वारा दिया गया दान चन्द्रदेव के पास सुरक्षित रहता है । यह दान उसके पितरों को मोक्ष प्रदान करता है । इस पवित्र दिन से आरम्भ किया हुआ व्यवसाय तथा किसी भी प्रकार का कार्य नुकसानदायक नहीं होता ।
यह भी कहा जाता है कि इस दिन पितृ से सम्बन्धित क्रियाकर्म सहस्त्रों गुना होकर पितरों को प्राप्त होता है । इस तिथि को किये गये सारे कर्म अक्षय होते हैं । चूंकि चन्द्रदेव जल से सम्बन्धित हैं, अत: जलदान को इस दिन श्रेष्ठ माना गया है ।
3. उपसंहार:
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ज्योतिष शास्त्र तथा धार्मिक मान्यताओं के अनुसार-अक्षय तृतीया को सर्वाधिक पवित्र एवं लोककल्याणकारी, लाभकारी तिथि माना गया है । इस दिन परम्परावादी हिन्दू अक्षय तृतीया तक पूरे न 5 दिनों तक बड़ा इत्यादि बनाकर सर्वप्रथम पितरों को अर्पित करते हैं, फिर दूसरों को खिलाते हैं ।
इससे पितर प्रसन्न एवं तृप्त होते हैं । ग्रामीण समाज इस तिथि विशेष पर बड़े पैमाने पर विवाह कार्य सम्पन्न कराते हैं । इस तिथि को किसी शुभ मुहुर्त की आवश्यकता नहीं है; क्योंकि यह तिथि ।