विज्ञापन । Article on Advertisement in Hindi Language!
विज्ञापनों से मुक्ति असंभव है । सड़क के किनारे पर लगे बड़े-बड़े र्होडिंग हमें घूरते रहते है, चमकदार निऑन दुकानों के ऊपर जलते-बुझते रहते हैं, तुकबन्दी एवं स्लोगन हमारे कानों में चीखते रहते हैं, इसके अतिरिक्त पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ने की सामग्री से अधिक कपड़े धोने की मशीन एवं कस्टर्ड पाउटर के विज्ञोपन की तस्वीरें होती हैं ।
विज्ञापन न केवल हमारी आखों एवं कानों पर प्रहार करता है बल्कि हमारी जेबों पर भी वार करता है । इसके आलोचक बताते हैं कि हमारे देश में राष्ट्रीय आय का 1.6 प्रतिशत विज्ञापन पर खर्च हो रहा है । परिणाम स्वरूप वस्तुओं की कीमतें बढ़ गयी हैं । जब कोई महिला कोई ‘कास्मेटिक’ का समान खरीदती है तो वह बीस प्रतिशत किसी विज्ञापन दाता को अदा करती है ।
अगर वह किसी विशेष प्रकार का उत्पाद खरीदती है तो उसे अधिक कीमत अदा करनी होगी उदाहरण स्वरूप अगर वह एक ‘एल्प्रीन’ खरीदती है तो जों वह कीमत भरती है उसका तीस प्रतिशत वह विज्ञापन का मूल्य अदा करती है । यह ठीक है कि हमें विज्ञापनों का मूल्य अदा करना होता है, किन्तु इसके कुछ लाभ भी हैं ।
ADVERTISEMENTS:
हालांकि कुछ चीजों की कीमत विज्ञापन के कारण बढ़ जाती है किन्तु कुछ चीजों की कीमत कम भी हो जाती है । समाचार पत्र, पत्रिकायें, व्यवसायिक रेडियो स्टेशन एवं टेलीविजन में विज्ञापन सुनाये व दिखाये जाते हैं, जो उत्पादनकर्त्ता को उत्पादन का मूल्य कम करने में सहायता करते हैं ।
इस तरह से हमें निम्न दरों पर सूचना एवं मनोरंजन प्राप्त होता है जो अन्यथा हमे मंहगे दामों पर उपलब्ध हो । इस तरह एक हाथ से हम कुछ खोते हैं तो दूसरे से प्राप्त कर लेते हैं । इसके अतिरिक्त विज्ञापन द्वारा कुछ हद तक यह आश्वासन मिलता है कि यह उत्पाद गुणवत्ता को बनाये रखेगा ।
इससे निर्माताओं में प्रतिर्स्पधा उत्पन्न होती है एवं ग्राहकों को उत्पादनों की बड़ी श्रेणी से पसन्द करने का मौका मिलता है । कुछ मामलों में प्रतिस्पर्धा फलीभूत हो सकती है, उम्मीद है प्रतिवर्ती होने पर प्रतिस्पर्धा विज्ञापन से प्रभावित होकर कीमतों में कमी का कारण बनेगी ।