सत्संगति | Article on “A Good Company” in Hindi Language!
प्रस्तावना:
मानव एक सामाजिक प्राणी है । एक दूसरे के सम्पर्क में आना मानव का स्वाभाविक गुण है । यह समाज गुण व अवगुणो से भरा पड़ा है । इसलिए गुणग्राही व्यक्ति सदैव गुणवानो की संगति करता है । दुर्जन व्यक्ति दुर्गुणो को ग्रहण करता है । इसलिए सज्जन लोगो की संगति का बहुत बड़ा महत्व है ।
मनुष्य जैसी संगति में बैठता है, उसका उस पर कुछ न कुछ प्रभाव अवश्य पड़ता है । प्राकृतिक निर्जीव पदार्थो पर भी संगति का प्रभाव पड़ता है फिर मनुष्य की बुद्धि तो अत्यन्त कोमल है, उस पर उसकी संगति का प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है । इसलिए सभी कवियो व महापुरुषो ने अच्छे लोगो की संगति करने की सलाह दी है:
संगति कीजै साधु की, हरै और की व्याधि ।
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संगति बुरी असाधु की, आठों पहर उपाधि ।।
सज्जन लोगों के लक्षण:
संत लोग ज्ञान के भण्डार होते हैं, वे सदैव दूसरी के लिए कार्यरत रहते हैं । कहा है “परोपकाराय सता विभूतय” सज्जन लोगो की सम्पत्ति हमेशा दूसरो की भलाई के लिए होती है । वे दूसरी के अज्ञान को दूर करते हैं । सबके हृदय में सत्य का सचार करते हैं । अपने सम्पर्क में आने वाले के मान को चारो ओर फैलाते है ।
सतो का हृदय अत्यन्त कोमल होता है । वे दया की मूर्ति होते हैं, वे दूसरी के दुःख पर दुःखी और दूसरो के सुख पर सुखी होते हैं । वे सुखी होते है । वे दूसरी के दुःखो को दूर करने के लिए अपने सारे दुख भूल जाते है ।
सज्जन लोगों का साथ:
सज्जन लोगो के साथ से मनुष्य जीवन में आमूल-चूल परिवर्तन आ जाता है । उनके जीवन में एक बहुत बड़ा आकर्षण होता है । बड़े-बड़े चोर, डाकू, संतो के सम्पर्क से संत ही बन गये । रत्नाकर डाकू संतो की संगति पाकर बाल्मीकि जैसे महर्षि बन गये ।
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अगुलीमाल डाकू जब गौतम बुद्ध की संगति में आया तो वह अपना अपरा धपूर्ण जीवन छोड्कर सत बन गया । इसी प्रकार अनेक आख्यान व उदाहरण है कि बड़े-बड़े अपराधी भी संतों के सम्पर्क में आने से सुधर जाते हैं । इसलिए कहा है:
सठ सुधरहिं सत संगति पाई ।
पारस परस कुधातु सुहाई ।।
सज्जनो के साथ में यह सबसे बड़ी विशेषता है कि वे अपने सम्पर्क मे आने वाले लोगों को भी अपने समान ही महान् बना देते हैं । वे गुणा की खान होते है । वे अपने समस्त गुण अपनी संगति में आने वाले में बिखेर देते हैं । व्यवहारिक जीवन द्वारा भी हमें अच्छे व बुरे लोगो की संगति मिलती रहती है ।
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संत लोग कोई गेरुवा व भगवा पहने जटा बढ़ाये नहीं होते हैं, वे हमारे आस-पास भी रहते हैं । जिनमें सारे अच्छे गुण पाये जाते हैं वे सज्जन होते हैं । विद्यालय में छात्र अच्छे लड़को की संगति से अच्छे बन जाते हैं । परिश्रमी, लगनशलि, विनम्र स्वभाव, मधुरभाषी बालक सज्जन होते हैं, उनकी सगति से अन्य बालक भी उन्ही की तरह बन जाते है ।
कुसंगति का दुष्परिणाम:
कहा है: ‘संगति बुरी असाधु की आठों पहर उपाधि ।’ दुर्जन लोगों की सगति मे हर समय उपद्रव ही होते है । चोर, डाकू, बदमाश, बेईमान लोगों की संगति करने से उसी प्रकार के अवगुण आ जाते हैं । कभी-कभी बुरी सगति मे अच्छे लोग फस जाते हैं ।
कई चोरों की संगति में जाते है तो चोर बचकर निकल जाते है परन्तु शरीफ लोग फंस जाते है । शरारती लड़को के सम्पर्क में जाने से शरारती लड़के शरारत करके गायब हो जाते हैं व फंस जाते हैं सीधे-साधे बालक । कुसंगति के बड़े बुरे परिणाम होते है । रहीम कवि कहते हैं :
वसि कुसंग चाहत कुशल यह रहीम जिय सोस ।
महिमा घटी समुद्र की, रावण बसयो पड़ोस ।।
उपसंहार:
इसलिए प्रत्येक विद्यार्थी को उन लड़को की संगति करनी चाहिये जो गुरुजनो के प्रिय और कक्षा में परिश्रमी व आज्ञाकारी होते है, । इसके विपरीत जो बालक पढ़ते नहीं हैं, कक्षा से भाग जाते हैं आवारागर्दी करते हैं उनके साथ में जाने से एक अच्छा लड़का भी बिगड़ जाता है ।
कई लड़को को बड़े बुरे व्यसन होते हैं । बीड़ी-सिगरेट पीना, जूआ खेलना, विद्यालय के समय पर फिल्मसे देखने जाना, ऐसे लड़कों का साथ करने से एक अच्छा बालक भी उन्ही की तरह बुरी आदते सीखता है ।