सामाजिक समस्याएँ । Article on Social Problems in Hindi Language!
आज हिंदू जाति कुरीतियों का घर है । इन कुरीतियों ने उसे जर्जर कर दिया है । समय बदला देश की स्थिति बदली ? हम स्वतंत्र हुए परंतु हमारी सामाजिक विषमताएँ आज भी वैसी ही हैं जैसे दो सौ वर्ष पहले थीं । ये दोष कुछ तो अंग्रेजों ने हमारे समाज को दिए थे और कुछ हमारे ही घर के स्वार्थी धर्म के ठेकेदारों ने ।
एक समय था जब हमारा देश, हमारा समाज विश्व में सर्वश्रेष्ठ समाजों में गिना जाता था । यहाँ की जनता सुखी और धन-धान्य से सम्पन्न थी । हिंदू समाज की सबसे प्रधान समस्या स्त्रियों की है । यद्यपि भारतीय संविधान ने स्त्रियों को पुरुषों के अधिकारों के समान ही अधिकार दिए हैं परंतु वे केवल नाममात्र के हैं । पति की इच्छा ही उसका सर्वस्व है ।
पति के दुराचार अन्याय अत्याचारों को वह मूक पशु की तरह वहन करती है । बाल-विवाह वृद्ध-विवाह विवाह-विच्छेद विवाह-निषेध आदि ने उसकी और भी दुर्दशा कर दी है । न वह स्वतंत्र वायुमंडल में साँस ले सकती है और न स्वतंत्रतापूर्वक किसी से बोल सकती है ।
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समाज की दूसरी समस्या हरिजनों के प्रति दुर्व्यवहार करना है । उनको सामान्य कुएँ से पानी निकालने की आज्ञा नहीं है । हरिजनों को मंदिर में जाने की भी आज्ञा नहीं है । भगवान पर सबका अधिकार है जो उसका प्रेम से स्मरण करता है, वह उसी का है । लेकिन हमारे समाज ने उस पर भी प्रतिबंध लगा रखा है ।
हमारे समाज में विवाह-प्रथा भी एक विषम समस्या है । मूक पशु को जिस तरह एक खूँटे से दूसरे खूँटे पर बाँध दिया जाता है उसी प्रकार हमारी कन्याओं का विवाह कर दिया जाता है । परिणामस्वरूप आए दिन आत्महत्याओं की दुर्घटनाएँ हो रही है । लड़की और लड़कों को अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार होना चाहिए । ऐसा करने से अनमेल विवाह की समस्या स्वत: सुलझ जाएगी ।
विवाह संबंधी दूसरी समस्या दहेज की है । दहेज की समस्या के कारण कन्या का जीवन माता-पिता को भार मालूम पड़ता है । प्रसन्नता की बात है कि भारतीय सरकार ने दहेज पर प्रतिबंध लगा दिया है । परंतु इस कुरीति की जड़ें इतनी गहरी हैं कि उखाड़ने से भी नहीं उखडतीं ।
जात-पात का भेद-भाव भी आज की एक सामाजिक समस्या है । न समाज में परस्पर प्रेम है न सहानुभूति न राष्ट्र का कल्याण है न न्याय । सामूहिक और सामाजिक हित को बात तो कोई सोचता ही नहीं । ब्राह्मण ब्राह्मण के लिए वैश्य वैश्य के लिए और क्षत्रिय क्षत्रिय के लिए ही कुछ करता है । हर जाति का विशाल रूप प्रांतीयता में परिवर्तित हो जाता है ।
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यह संकीर्ण विचारधारा उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है । सांप्रदायिक भावना से प्रेरित होकर हमें कोई भी काम नहीं करना चाहिए । हमारे सामने सदैव देशहित और राष्ट्र कल्याण का आदर्श होना चाहिए । आजकल विद्यार्थियों की अनुशासनहीनता भी एक भयंकर सामाजिक समस्या बनती जा रही है ।
सामाजिक जागृति का अभाव भी हमारी एक सामाजिक समस्या है । हम जो कुछ भी करते हैं वह अपने लिए करते हैं । हमारे सभी काम अपने संकुचित अहभाव पर आधारित होते हैं समाज हित हमसे बहुत दूर रह गया है । निरक्षरता की समस्या भी इतने विशाल देश की एक भयानक समस्या है । अनपढ़ व्यक्ति न अपने अधिकारों को समझ पाता है और न अपने कर्त्तव्य का ही उसे ज्ञान होता है ।
वर्तमान में परीक्षाओं में नकल भी एक भयंकर सामाजिक समस्या बनती जा रही है । निर्भीकता और उद्दंडता कुछ छात्रों के मन और मस्तिष्क में रहती है । यह समस्या भी भारतीय शिक्षकों तथा समाज सुधारकों के आगे मुँह बाये खड़ी है और इस समस्या का समाधान और भी नजर नहीं आता है ।
हमें इन समस्याओं को दूर करने के लिये भगीरथ प्रयत्न करना चाहिए । जिससे कि समाज का और अहित न हो सके । हमारी राष्ट्रीय सरकार भी इन सामाजिक विषमताओं को समूल नष्ट करने के लिये प्रयत्नशील है । इनका निबटारा करने पर ही हमारा देश वास्तविक उन्नति कर सकेगा । अन्यथा हमारी अमूल्य स्वतंत्रता का कोई मूल्य नहीं रहेगा ।