किसी भी समाज एवं राष्ट्र के विकास के लिए लोगों का शिक्षित होना आवश्यक है । शिक्षा के द्वारा ही मनुष्य ज्ञान प्राप्त करता है और उसे उचित-अनुचित की पहचान होती है । शिक्षा के द्वारा ही मनुष्य को मानव-जीवन और उसके धर्म एवं कर्तव्यों का ज्ञान प्राप्त होता है । निरक्षर व्यक्ति को पशु समान माना जाता है ।
अत: सुखी जीवन के लिए प्रत्येक व्यक्ति का साक्षर एवं शिक्षित होना आवश्यक है, ताकि वह समाज एवं राष्ट्र के विकास में अपना सहयोग देकर राष्ट्र का सच्चा नागरिक होने का गौरव प्राप्त कर सके । वास्तव में शिक्षा के अभाव में व्यक्ति पशु के समान अन्य सभी कार्य तो कर सकता है ।
वह निद्रा ले सकता है, भोजन कर सकता है, पशु के समान सन्तानोत्पत्ति भी कर सकता है, पशु की तरह मेहनत-मजदूरी करके जीवनयापन भी कर सकता है परन्तु मनुष्य-धर्म का ज्ञान, कार्य प्रणाली की योग्यता और विकास के लिए विज्ञान की जानकारी व्यक्ति को शिक्षा से ही प्राप्त हो सकती है ।
एक निरक्षर व्यक्ति की तुलना में एक शिक्षित व्यक्ति किसी भी कार्य को अधिक व्यवस्थित ढंग से अधिक उपयोगी स्वरूप प्रदान कर सकता है । मनुष्य को व्यावहारिक जीवन में कदम-कदम पर शिक्षा की आवश्यकता पड़ती है । एक निरक्षर व्यक्ति सगे-सम्बंधियों को पत्र नहीं लिख सकता, किसी भी सरकारी कार्य के लिए वह स्वयं प्रार्थना-पत्र नहीं लिख सकता ।
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निरक्षर व्यक्ति को पढ़ाई-सिखाई के समस्त कार्यों के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है । केवल नौकरी के लिए ही पढ़ा-लिखा होना जरूरी है, यह मानकर चलने वालों को जीवन में छोटी-छोटी बात के लिए परेशान होना पड़ता है ।
स्वयं अपना व्यवसाय करने वाले व्यक्तियों को भी शिक्षा की आवश्यकता पड़ती है । शिक्षित किसान नयी-नयी वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग करके अधिक अच्छी फसल प्राप्त कर सकता है । प्रत्येक छोटा-बड़ा व्यापार करने बाला व्यक्ति यदि शिक्षित होगा तो वह अपने व्यापार में अधिक सफलता के लिए नए-नए प्रयोग कर सकता है ।
ज्ञान के अभाव में निरक्षर व्यक्ति में यह योग्यता नहीं होती । आज विश्व के सभी देर्शी में शिक्षा को बढ़ावा दिया जा रहा है । हमारे देश की सरकार भी साक्षरता अभियान चला रही है प्राथमिक विद्यालयों में पहले से ही निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्य है । विशेषतया पिछड़े हुए क्षेत्रों में और गरीबों की शिक्षा पर विशेष बल दिया जा रहा है ।
गरीब विद्यार्थियों को शिक्षा के लिए प्रेरित करने के लिए सरकार ने विद्यालयों में मुफ्त पुस्तकें वर्दी और अल्पाहार की भी व्यवस्था की हुई है । सरकार के प्रयासों का सुखद परिणाम भी देखने को मिल रहा है । भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व की तुलना में आज निरक्षरता में काफी कमी आई है ।
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परन्तु भ्रष्टाचार के कारण सरकारी प्रयासों को वह गति प्राप्त नहीं हुई, जो होनी चाहिए थी । भारत की स्वतंत्रता के आधी से अधिक शताब्दी का समय व्यतीत होने के उपरान्त भी यहाँ निरक्षरता समाप्त नहीं हुई है । यह दुखद स्थिति है कि आज भी हमारे देश के कुछ नागरिकों को अँगूठा लगाना पड़ता है ।
आज भी चिट्ठी-पत्री के लिए कुछ लोगों को किसी साक्षर व्यक्ति की खोज करनी पड़ती है । इसके लिए अधिक दोष सरकार को देना न्यायोचित नहीं होगा । सरकार के द्वारा शिक्षा का प्रचार-प्रसार निरन्तर किया जा रहा है । लेकिन शिक्षा विभाग के अधिकारियों को अधिक मुस्तैदी से कार्य करने की आवश्यकता है ।
राज्य सरकारों को भी निरक्षरता समाप्त करने के लिए अधिक प्रयत्नशील होने की आवश्यकता है । उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि निरक्षरता किसी भी राज्य के विकास में बाधक होती है । राज्य की उन्नति के लिए बच्चे-बच्चे को साक्षर बनाना होगा ।
शिक्षा का प्रचार-प्रसार सामाजिक कर्तव्य भी है । एक शिक्षित समाज ही धर्म-कर्म में निपुण हो सकता है । अत: समाज प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह समाज से समाप्त करने के लिए यथासम्भव प्रयास करे ।
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निरक्षर को जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता और इसका प्रतिकूल प्रभाव सपूर्ण समाज पर पड़ता है । समाज के विकास के लिए उसका शिक्षित होना आवश्यक समाज से निरक्षरता मिटाने के लिए जन-जागरण अभियान आवश्यकता है । सम्पूर्ण समाज का साक्षर होना ही गौरव बात है ।