विद्यार्थी अथवा छात्र का अर्थ है: विद्या को मांगने या चाहने वाला । अनुशासन का अर्थ है: नियमों के अनुसार चलना । विद्यार्थी और अनुशासन का गहरा संबंध है । दोनों एक दूसरे के पूरक हैं । विद्या विद्यार्थी के लिए उन्नति-प्रगति के द्वार खोलती है तो अनुशासन उसके जीवन को संयमित बनाता है ।
विद्या और अनुशासन दोनों का लक्ष्य जीवन को सफल और सुविधापूर्ण बनाना है । किसी भी राष्ट्र समाज या संस्था की उन्नति उसके नागरिकों तथा सदस्यों की अनुशासन बद्धता पर निर्भर होती है । इसीलिए कहानी है:
“राष्ट्रोन्नति का आधार,
मानवजीवन का प्राण,
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देश के नवनिर्माण का संबल क्या है ?
केवल अनुशासन है ।”
अनुशासन दो प्रकार का होता है: आंतरिक या आत्मानुशासन तथा बाह्यनुशासन । अपनी इच्छा से नियमों का पालन करना । समाज द्वारा बनाए गए मान दंडों के अनुसार स्वेच्छा से जीवनयापन करना अपने कार्यों को नियंत्रण में रखना-आंतरिक अनुशासन कहलाता है इसके विपरीत कानून के भय से नियम पालन बाह्य अनुशासन है ।
दंड के भय से अनुशासन कर उदाहरण चौराहे पर देखा जा सकता है । पुलिस के सिपाही के भय से लोग लालबत्ती पर रुक जाते हैं और हरी होने पर चलते हैं परंतु जिस चौराहे पर पुलिस की व्यवस्था नहीं होती वहाँ यातायात अनियंत्रित हो जाता है, इन दो प्रकार के अनुशासन में अतिरिक्त या आत्मानुशासन श्रेष्ठ है ।
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विद्यार्थी के लिए अनुशासित होना परम आवश्यक है । अनुशासन से विद्यार्थी को ही लाभ है । विद्यार्थी जीवन में तो इसकी सर्वाधिक महत्ता है विद्यार्थी जीवन ही वह काल है जिसमें बालक सामाजिक अनुशासन का पाठ पड़ता है । इसी काल के द्वारा विद्यार्थी में अनुशासन के द्वारा नैतिक मूल्यों का विकास किया जा सकता है ।
जिस प्रकार एक मकान की स्थिरता उसकी नीव पर आधारित होती है । उसी प्रकार मानव-जीवन की समृद्धि सफलता तथा उन्नति उसके विद्यार्थी जीवन पर टिकी होती है । यही कारण था कि प्राचीन काल में विद्यार्थी को नगरों से दूर गुरूकुलों में विद्या ग्रहण करने भेजा जाता था वहाँ गुरू उसे अनुशासित तथा संस्कारित करके भेजते हैं ।
आज जहाँ भी देखो वहीं अनुशासनहीनता का बोल-बाला है । समाज के हर क्षेत्र में तोड़-फोड़ करना भष्ट्राचार बेईमानी हड़ताल करना तथा अपराधों का बाहुल्य है । लोग अपने संस्कार, मर्यादा तथा संस्कृति को भुलाकर समाज विरोधी कार्यों में लीन हैं । अनुशासनहीनता सुरसा के मुख की भांति बढ़ता जा रहा है ।
विद्यार्थी वर्ग की अनुशासनहीनता से अछूता नहीं है । आजकल विद्यार्थी विद्या का अर्थ करने का इच्छुक न होकर विद्या की अर्थी निकालने वाला बन गया है । विद्यार्थियों की उद्दंडता शिक्षा के प्रति नकल करना अपने से बड़ी का सम्मान न करने की आदत उसकी फैशन परस्ती, मद्यपान, धूम्रपान आदि की लत, नैतिक मूल्यों का ह्रास आदि उनकी अनुशासन हीनता का ही द्योतक है ।
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इस अनुशासनहीनता के कारण छात्र अपने वास्तविक उद्देश्य से भटक गया है । वह नहीं जानता कि अनुशासनहीन विद्यार्थी आगे चलकर न तो अपना भला कर सकता है और न ही समाज और राष्ट्र की सेवा । छात्र-वर्ग इस अनुशासनहीनता के लिए केवल छात्र ही दोषी हो ऐसी बात नहीं ।
इसके लिए हमारी दुषित शिक्षा पद्धति राजनैतिक दलों का छात्रों की अपरिपक्व बुद्धि से लाभ उठाकर उन्हें अपने स्वार्थ के लिए प्रयोग किया जाना, दूरदर्शन तथा चलचित्रों के द्वारा हो रहा है सांस्कृतिक प्रदूषण भी किसी हद तक जिम्मेदार है । आज शिक्षा एक पवित्र कार्य न रहकर व्यवसाय बन गई है ।
शिक्षित युवकों का रोजगार न पा सकना भी उन्हें अनुशासनहीन बना देता है । अच्छे आचार्यों का अभाव भी इस समस्या को बढ़ा रहा है क्योंकि वे स्वयं छात्रों के सामने एक आदर्श प्रस्तुत करने मे असमर्थ है । अनुशासन समाज का एक आवश्यक गुण है ।
जब भी किसी राष्ट्र में अनुशासन का अभाव हो जाता है तो वह या तो पराधीन की बेड़ियों में जकड़ा जाता है या पतन के गर्त में गिर जाता है । भारतवासियों ने जब अनुशासन त्याग कर दिया तो उन्हें पराधीन होना पड़ा ।
पर जब गांधी जी के नेतृत्व में अनुशासित होकर स्वाधीनता के लिए संपर्क किया तो अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा । अत: भावी जीवन को अनंदमय बनाने के लिए देश के उज्जवल भविष्य के निर्माण के लिए विद्यार्थी का अनुशासित होना आवश्यक है ।