विस्तार बिंदु:
1. विज्ञापन से अभिप्राय ।
2. विज्ञापन का महत्व ।
3. विज्ञापन के कार्य ।
ADVERTISEMENTS:
4. संचार स्रोतों का महत्वपूर्ण अंग है: विज्ञापन ।
5. विज्ञापन का क्षेत्र ।
6. निष्कर्ष ।
‘विज्ञापन’ शब्द से तात्पर्य है-किसी तथ्य अथवा बात की विशेष जानकारी अथवा सूचना देना । लैटिन भाषा के शब्द ‘Advertere’ का शाब्दिक अर्थ है-मस्तिष्क का केन्द्रीभूत होना; जिससे ‘विज्ञापन’ के अंग्रेजी पर्याय ‘Advertisement’ का उद्देश्य परिलक्षित होता है । आधुनिक समय में विज्ञापन हमारे जीवन का एक अनिवार्य अंग बन चुका है ।
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व्यवसाय के उत्तरोत्तर विकास, वस्तु की मांग को बाजार में बनाए रखने, नई वस्तु का परिचय जन-मानस तक प्रचलित करने, विक्रय में वृद्धि करने तथा अपने प्रतिष्ठान की प्रतिष्ठा यथावत् रखने इत्यादि कुछ प्रमुख उद्देश्यों को लेकर विज्ञापन किए जाते हैं । विज्ञापन का महत्व मात्र यहीं तक सीमित नहीं है, अपितु यह संचार शक्ति के सशक्त माध्यमों द्वारा क्रांति ला सकने की सम्भावनाएं एवं सामर्थ्य रखते है ।
सरकार की विकासोम्मुखी योजनाओं का प्रभावकारी क्रियान्वयन, जैसे-साक्षरता, परिवार नियोजन, पोलियो एवं कुष्ठ रोग निवारण हेतु महिला सशक्तीकरण, बेरोजगारी उन्मूलन हेतु, कृषि एवं विज्ञान सम्बन्धी, आदि; विज्ञापन के माध्यम से ही त्वरित एवं फलगामी होता है ।
व्यावसायिक हितों से लेकर सामाजिक-जनसेवा एवं देशहित तक विज्ञापन का क्षेत्र अति व्यापक एवं अति विस्तृत है । दूसरी ओर विज्ञापन संचार माध्यमों की आय का मुख्य स्रोत होता है । आधुनिक मीडिया का सम्पूर्ण साम्राज्य ही वस्तुत: विज्ञापन पर ही निर्भर है ।
प्रिंट मीडिया के विषय में इस तथ्य को इस प्रकार समझा जा सकता है कि भारत में प्रेस एवं अखबारों के विकास हेतु गठित द्वितीय प्रेस आयोग के कथनानुसार, पाठक द्वारा अखबार की कीमत के रूप में दी जाने वाली कीमत दो रूपों में होती है ।
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उसका एक भाग तो पत्र में प्रकाशित सामाचारों आदि के लिए तथा दूसरा भाग पत्र में विज्ञापित की गई वस्तुओं के लिए होता है । इन विज्ञापित तथ्यों से उसे विभिन्न प्रकार की जानकारी प्राप्त होती है । स्पष्ट है कि विज्ञापन उन सभी के लिए महत्वपूर्ण होता है, जो इन्हें देता है, जिनके द्वारा प्रसारित होता है तथा जिनके लिए ये दिए जाते हैं ।
उपभोक्तावाद के आधुनिक युग में वस्तुओं के निर्माता, विक्रेता एवं क्रेता हेतु विज्ञापन एक आधार प्रस्तुत करता है, इससे उत्पाद की मांग से लेकर उत्पाद की खपत तक जहां निर्माता अथवा विक्रेता हेतु यह अनुकूल परिस्थितियां बनाने में सहायक होता है, वहीं क्रेता अथवा खरीदार के लिए उसकी आवश्यकतानुरूप उत्पाद के चयन हेतु विविधता एवं एक दृष्टिकोण उपलब्ध कराता है ।
उल्लिखित प्रक्रिया में उत्पाद, निर्माता, विक्रता, क्रेता एवं विज्ञापन के अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण घटक वह माध्यम है, जिसके द्वारा विज्ञापित कोई विषय-वस्तु अनभिज्ञ व्यक्तियों को प्रभावित कर उन्हें क्रेता वर्ग में सम्मिलित कर देती है ।
रेडियो, टेलिविजन, समाचार-पत्र, पत्रिकाएं आदि आधारभूत एवं उपयोगी माध्यम कहे जाते हैं । सूचना संप्रेषण के ये स्रोत वस्तुत: विज्ञापन आधारित अर्थव्यवस्था पर निर्भर रहते हैं । विज्ञापन निश्चित रूप से एक कला है । लक्षित उद्देश्य की प्राप्ति इसका एकमात्र उद्देश्य होता है ।
विज्ञापन आज के उपभोक्तावादी चरण में इतना अधिक महत्व रखता है कि बड़ी से छोटी प्रत्येक स्तर की व्यावसायिक संस्थाएं अपने बजट का एक बड़ा हिस्सा सदैव विज्ञापन के लिए व्यय करती है । विज्ञापन लाभ पर आधारित एक अपरिहार्य अनिवार्यता बन चुका है ।
साधारण व्यक्ति हेतु भी विज्ञापन उसकी दिनचर्या का एक आवश्यक एवं परामर्शकारी अंग बन चुका है । तेल, साबुन, टूथपेस्ट से लेकर जीवन साथी के चयन की उपलब्धता भी विज्ञापन द्वारा सहज रूप से की जा रही है ।
विज्ञापन प्रभावशाली ढंग से संप्रेषित अथवा प्रचारित होने वाला एक संदेश होता है । अन्य शब्दों में, विज्ञापन का अर्थ ‘विशेष प्रकार का ज्ञापन’ करना होता है, विज्ञापित होने वाला संदेश यदि विशिष्टता लिए हुए हो, तो उसका प्रभाव भी उसी प्रकार का ही होता है ।
एक विशेष संदेश ‘क्रांति’ ला सकने में सक्षम होता है । राष्ट्रीय आंदोलन के समय महात्मा गांधी द्वारा एक संदेश विज्ञापित किया गया-अंग्रेजो भारत छोड़ो । इस संदेश ने सम्पूर्ण भारत में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ खड़ा कर दिया । इस क्रांति ने अंग्रेजों को भारत से खदेड़ दिया ।
विज्ञापन एक प्रकार से संचार स्रोतों (सूचना-मनोरंजन आधारित) का महत्वपूर्ण अंग बन गया है । इसका मुख्य स्रोत टेलिविजन है, जिस पर प्रसारित होने वाले प्रत्येक मनोरंजक कार्यक्रम के निर्माण की लागत एवं लाभ मूलत: उसे प्राप्त होने वाले विज्ञापनों के फलस्वरूप मिलने वाली राशि से ही पूरा होता है ।
इस दृष्टिकोण से विज्ञापन मूल रूप से मनोरंजन का आधार बन चुका है । रेडियो, टेलिविजन अथवा समाचार-पत्र चूंकि मनोरंजन के अतिरिक्त सूचना एवं शिक्षा भी प्रदान करते हैं अत: निःसंदेह विज्ञापन के ही कारण जन-सामान्य को सूचना, शिक्षा एवं मनोरंजन की प्राप्ति होती है ।
ऐसा नहीं है कि विज्ञापन केवल उपर्युक्त माध्यमों द्वारा सम्भव है । विज्ञापन इनके अतिरिक्त अनेक माध्यमों से भी किया जा सकता और किया भी जाता है । यह विज्ञापन के उद्देश्य पर निर्भर करता है कि उसे प्रसारित करने हेतु माध्यम क्या चुना जाए ? यह बात सीधे-सीधे लागत पूंजी पर निर्भर करती है ।
उदाहरण के लिए, बड़ी लागत वाली कोई कम्पनी (Largescale Industry) अपने उत्पादों का विश्वव्यापी विज्ञापन करती है तो एक कम लागत वाली कम्पनी (Smallscale Industry) एक सीमित क्षेत्र तक ही अपने उत्पाद का विज्ञापन कर पाएगी और उसके लिए उसे उसी स्तर पर माध्यमों का चयन करना होगा ।
विज्ञापन का क्षेत्र अत्यंत विविधतापूर्ण होता है, सब कुछ ‘माया का खेल’ लगता है, किन्तु सभी कुछ ‘उपयोगितावाद’ पर आधारित है । विज्ञापन का प्रत्येक स्तर पर अपना एक पृथक् महत्व होता है । सड़कों के किनारे लगे हुए बड़े-बड़े होर्डिंग्स, दीवारों पर लगे पोस्टर अथवा बसों एवं मोटरगाड़ियों के पीछे लिखे विज्ञापन, आदि इन समस्त युक्तियों के पीछे एकमात्र उद्देश्य यह होता है कि अधिक-से-अधिक लोगों का ध्यानाकृष्ट किया जाए ।
जिस प्रकार कोई व्यक्ति किसी अंजान जगह पर पहुंच कर अपने गंतव्य तक पहुंचने हेतु स्वयं भटकने के स्थान पर किसी जानकार व्यक्ति से उस जगह के मार्गों इत्यादि के सम्बन्ध में पूछेगा । ठीक इसी प्रकार उत्पादों की भरमार से अटे पड़े वर्तमान बाजारों में भटकते उपभोक्ता के लिए विज्ञापन एक जानकार एवं परामर्शदाता की भूमिका धारण कर चुका है ।
विज्ञापनों द्वारा नए-नए उत्पादों का एवं आविष्कारों अथवा विज्ञान-प्रौद्योगिकी द्वारा विकसित की जाने वाली नवीनतम वस्तुओं अथवा उपकरणों का जन-साधारण तक अत्यंत शीघ्रता से परिचय हो जाता है । एक सीमा तक विज्ञापन को समाज में एकरूपता लाने की दिशा में भी प्रभावी रूप में देखा जा सकता है, यद्यपि यह सब तीव्रगामी उपभोक्तावाद के परिणामस्वरूप ही हो रहा है तथापि इसके लिए वातावरण बनाने का कार्य विज्ञापन द्वारा ही किया गया है ।
वर्तमान समय में विज्ञापन एक उद्योग का रूप ग्रहण कर चुका है । राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय कम्पनियां एवं एजेंसियां करोड़ों का लेन-देन कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर इससे बड़ी संख्या में रोजगार के अवसरों का सृजन भी हो रहा है । भारत में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अनुसार दूरदर्शन को विज्ञापनों के प्रसारण से 1500 करोड़ रुपए के राजस्व की प्राप्ति होती है ।
विज्ञापनों का प्रभाव व्यापक एवं महत्वपूर्ण होता है अत: इसका गलत प्रयोग न हो पाए, इस दृष्टिकोण से इसे सरकारी नियंत्रण में रखा गया है । इसके लिए सरकार ने विज्ञापन हेतु एक आचार संहिता (Code of Conduct for Advertisement) का प्रावधान किया है । इस आचार संहिता के अंतर्गत नियंत्रणकारी संस्था एडवरटाइजिंग स्टैण्डर्ड्स काउंसिल ऑफ इण्डिया द्वारा विज्ञापनों के लिए आदर्श मापदण्डों का निर्धारण किया जाता है ।
इसका प्रमुख उद्देश्य यह है कि जन-साधारण को प्रभावित कर देने वाले विज्ञापनों से व्यावसायिक हित के चलते दिग्भ्रर्मित न किया जा सके, क्योंकि एक सशक्त विज्ञापन में प्रभावित कर सकने की अद्भुत शक्ति एवं क्षमता होती है । अत: सरकार द्वारा इस प्रणाली पर नियंत्रण एवं निरीक्षण अत्यावश्यक है । इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि विज्ञापनों का वर्तमान व्यावसायिक एवं उपभोक्तावादी युग में महत्व अत्यधिक बढ़ गया है ।