दूरदर्शन आधुनिक युग का एक ऐसा साधन है जो मानव को मनोरंजन देने के साथ-साथ प्रेरणा और शिक्षा भी प्रदान करता है । मनुष्य चाहे किसी भी आयु वर्ग या आर्य वर्ग अथवा किसी भी देश का वासी हो सभी के मन में ऐतिहासिक धार्मिक सांस्कृतिक स्थानों को देखने की लालसा रहती है ।
त्रेता युग में महाभारत के युद्ध के समय संजय ने घर बैठे-बैठे ही अपनी हृदयदृष्टि से अंधे धृतराष्ट्र को युद्ध के हाथों का आँखों देखा हाल सुनाया था । इस घटना पर सहसा विश्वास नहीं होता कि क्या इस प्रकार का कोई दिव्य पुरुष रहा होगा जिसने अपनी दिव्यदृष्टि से युद्ध की घटनाओं को साक्षात् देखा होगा ।
पर जब हम आज विज्ञान के उपहार टी.वी. पर दृष्टिपात करते हैं तो लगता है वह भी संजय की भांति दिव्यदृष्टि ये युक्त है जो हमें घर बैठे ही देश-विदेश की घटनाओं को अपनी आँखों से दिखा देता है । और दिन-रात हमारा मनोरंजन करता है । आज तो टी.वी. प्रत्येक परिवार की आवश्यकता बन गया है ।
दूरदर्शन मनुष्य जाति के लिए वरदान है । मनोरंजन के क्षेत्र में इसने क्रांति उपस्थित कर दी है । इस पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रमों में देश-विदेश की घटनाओं का सीधा प्रसारण किया जाता है । जल, थल, नभ की गहराइयों के रहस्यों को उजागर किया जाता है । विज्ञान तथा इतिहास की जानकारी प्रदान की जाती है ।
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दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले अनेक कार्यक्रम जनजागरण करने में भी सक्षम है । दूरदर्शन का प्रभाव इतना व्यापक होता है कि अनेक सामाजिक बुराइयों के प्रति जनाक्रोश जाग्रत करने में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । छात्रों के लिए तो इसकी और भी उपयोगिता है । आजकल तो यह शिक्षा का माध्यम भी बनाया है ।
दूरदर्शन पर विज्ञान इतिहास भूगोल गणित जैसे नीरस तथा दुरूह विषयों की शिक्षा अत्यन्त रुचिकर डग से दी जाती है । भारत में यू.जी.सी. के कार्यक्रम इस बात का प्रमाण हैं । प्रकृति के रहस्य जिन्हें हम कभी नहीं देख पाते आज डिस्कवरी चैनल के माधयम से दिखाए जा रहे हैं ।
इतिहास की ऐसी घटनाएँ जिनकी जानकारी प्राप्त करना कठिन हैं दूरदर्शन के माध्यमों से दिखाना संभव हो गया है । देश-विदेश की संस्कृति का परिचय दूरदर्शन पर घर बैठे ही प्राप्त किया जा सकता है । अन्तर्राष्ट्रीय खेल-कूद समारोह हों या वर्ल्डकप का कोई मैच, दूरदर्शन पर सीधे प्रसारित किया जाता है ।
विश्व की प्रत्येक घटना को दूरदर्शन पर देख पाना संभव हो गया है फिर चाहे वह कहीं आया भूकम्प हो या सुनामी लहरों का प्रकोप किसी ज्वालामुखी का कहर हो या फिर कोई अन्य समारोह- सब विश्व को एक परिवार बना दिया है तथा ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ का आदर्श चरितार्थ कर दिया है । यह तो रही दूरदर्शन की उपयोगिता की बात ।
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व्यवहार में यह देखने में आया है कि इतना उपयोगी दूरदर्शन आज छात्रों के लिए सहायक न बनकर एक बाधा के रूप में सामने आता है । आज का युवावर्ग दूरदर्शन का इतना आदी हो गया है कि वह अपने उद्देश्य को भूल बैठा है ।
वह अपनी पढ़ाई-लिखाई को विस्मृत करके दिन रात दूरदर्शन से चिपका रहता है जिससे उसके अधययन में तो बाधा पड़ती ही है उसकी आँखों पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है । आज जिस अभिभावक से बात कीजिए उन्हें यही शिकायत होगी कि उनके बच्चे टी.वी. देखते रहते हैं और पढ़ने से जी चुराते हैं । बात यहीं तक हो तो इतनी गंभीर प्रतीत नहीं होती । बात इससे भी कहीं अधिक भयंकर है ।
आजकल दूरदर्शन पर अनेक विदेशी चैनल भी आ गए हैं जो मनोरंजन के नाम पर सांस्कृतिक प्रदूषण फैला रहे हैं । उन पर दिखाए जाने वाले अश्लील भद्दे अनैतिक तथा कामोलेजक दृश्यों को देखकर भारत के युवा अपनी संस्कृति को ही भूल बैठे हैं तथा विदेशी संस्कृति की चकाचौंध से दिशा भ्रमित होकर नैतिक मूल्यों से दूर होते जा रहे हैं ।
अनेक प्रकार की बुराइयाँ इन्हीं कार्यक्रमों के कारण पनप रही हैं । मद्यपान, आलिंगन, चुंबन, अर्धनग्न कैबरे नृत्य जैसे दृश्य युवाओं के कोमल मन पर ऐसा दुष्प्रभाव डालते हैं कि उनका भारतीय संस्कृति के उच्चादशों से भटक जाना स्वाभाविक है । दूरदर्शन वास्तव में मनुष्य का मनोरंजन का साधन है ।
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यदि दूरदर्शन पर दिखाए जाने से कार्यक्रम सांस्कृतिक प्रदूषण फैला भी रहे हैं जो इसमें दूरदर्शन का क्या दोष ? यह दोष तो उन कार्यक्रमों का है । अत: ऐसे कार्यक्रमों पर अंकुश लगना चाहिए तथा दूरदर्शन को सही अर्थों में ज्ञानवृद्धि जनजागरण तथा सामाजिक चेतना जगाने के माधयम के रूप में प्रतिष्ठित करना चाहिए । सरकार को इस प्रकार के चैनलों पर अंकुश लगाना चाहिए ।