इस नश्वर संसार में कौन नहीं मरता ! जो जन्म लेता है वह अवश्य मरता है, जो इस संसार में आया है उसका जाना भी निश्चित है; परंतु इनमें उसी मनुष्य का जन्म सार्थक है, जिसके द्वारा जाति, समाज और देश की उन्नति हो ।
महापुरुष वही कहलाते हैं जिनका देश की प्रगति और नव-निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है । यह बड़े गौरव की बात है कि हमारे देश में समय-समय पर अनेक महापुरुषों का जन्म होता रहा है । युग-निर्माता गांधीजी का जन्म २ अक्तूबर, १८६९ को काठियावाड़ के पोरबंदर में हुआ था । संसार के इतिहास में अब तक कोई महान् शक्ति उत्पन्न नहीं हुई है, जिसकी तुलना महात्मा गांधी से की जा सके ।
गांधीजी की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए प्रसिद्ध विज्ञानी तथा दार्शनिक आइंस्टाइन ने कहा था, ”आनेवाली पीढ़ियाँ इस बात पर विश्वास करने से इनकार कर देंगी कि कभी महात्मा गांधी भी मनुष्य रूप में भूतल पर विचरण करते थे ।”
गांधीजी के पिता करमचंद काठियावाड़ रियासत के दीवान थे । माता पुतलीबाई धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं । तेरह वर्ष की अवस्था में उनका विवाह कस्तूरबा से हो गया था । उन्नीस वर्ष की अवस्था तक स्कूली शिक्षा समाप्त कर वे कानून की शिक्षा के लिए इंग्लैंड चले गए और १८९१ में बैरिस्टर बनकर भारत लौट आए ।
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स्वदेश आकर गांधीजी ने वकालत आरंभ कर दी; परंतु इस क्षेत्र में उन्हें सफलता नहीं मिली । सौभाग्यवश बंबई के एक फर्म मालिक द्वारा इन्हें एक मुकदमे की पैरवी करने के लिए सन् १८९३ में दक्षिण अफ्रीका भेजा गया । यह उनके जीवन की एक युगांतरकारी घटना सिद्ध हुई ।
गांधीजी लगभग बीस वर्षों तक दक्षिण अफ्रीका में रहे । वहाँ के हिंदुओं की दुर्दशा को देखकर उन्हें अत्यंत दुःख हुआ । प्रवासी हिंदुओं का प्रत्येक स्थान पर अनादर होता और उनकी बातों को, उनके दुःखों को वहाँ सुननेवाला कोई नहीं था । स्वयं गांधीजी को वहाँ के आदिवासी ‘कुली बैरिस्टर’ कहते थे । अंत में गांधीजी को वहाँ भारी सफलता मिली ।
उन्होंने आंदोलन किए और सरकार से माँग की कि हिंदुओं के ऊपर होनेवाले अत्याचारों को बंद किया जाए । सन् १९१४ में गांधीजी स्वदेश लौट आए । दक्षिण अफ्रीका में मिली असाधारण विजय की भावना ने उन्हें देश को स्वतंत्र कराने के लिए प्रेरित किया । सन् १९२० में असहयोग आंदोलन शुरू करके खादी-प्रचार, सरकारी वस्तुओं का बहिष्कार और विदेशी वस्त्रों की होली आदि का कार्य सम्पन्न हुआ ।
सन् १९३० में दांडी यात्रा करके गांधीजी ने नमक कानून तोड़ा । सन् १९४२ में ‘भारत छोड़ो’ का प्रस्ताव पास हुआ । गांधीजी और देश के अनेक नेता जेल भेजे गए । अंत में १५ अगस्त, १९४७ को भारत स्वतंत्र हुआ और इनके साथ ही गांधीजी का अपना प्रयास सफल हुआ ।
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महात्मा गांधी अपने देशवासियों को उसी प्रकार प्यार करते थे जैसे एक पिता अपने पुत्र को करता है । इसलिए भारतवासी उन्हें प्यार से ‘बापू’ कहते थे । इस धरा पर जो फूल खिलता है, वह कभी-न-कभी अवश्य मुरझा जाता है । प्रकृति का विधान है: जो यहाँ आता है, वह इस संसार को छोड़कर अवश्य जाता है ।
३० जनवरी, १९४८ को नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर गांधीजी की हत्या कर दी । उसी समय प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने आकाशवाणी पर बोलते हुए कहा था, “हमारे जीवन की ज्योति बुझ गई । अब चारों ओर अंधकार है ।”