सुखी जीवन के लिए मनुष्य को स्वास्थ्यवर्धक भोजन और अनुकूल जलवायु की आवश्यकता होती है । मनुष्य जीवनयापन के लिए, सुख-सुविधाओं के लिए दिन-रात परिश्रम करने से भी नहीं घबराता । वह कठिन परिश्रम करके अपने परिवार के लिए विभिन्न साधन एकत्र करता है, ताकि वह परिवार सहित सुखी जीवन व्यतीत कर सके ।
लेकिन कठिन परिश्रम के प्रति उत्साहित रहने के लिए मनुष्य को मनोरंजन की भी आवश्यकता होती है । आदिकाल से ही मनुष्य अपने मनोरंजन के भिन्न-भिन्न साधन खोजता रहा है । पहले मनुष्य मनोरंजन के लिए गीत-संगीत, नौटंकी, खेल, सर्कस आदि का सहारा लिया करता था ।
आज वैज्ञानिक युग में मनुष्य के लिए मनोरंजन के साधनों की कोई कमी नहीं है । साहित्य आरम्भ से ही मनुष्य के स्वस्थ मनोरंजन का प्रमुख साधन रहा है । कहानियाँ, उपन्यास, नाटक, कविताएँ मनुष्य का स्वस्थ मनोरंजन करने के साथ उसका मानसिक विकास भी करती हैं ।
पुस्तकों से मनुष्य का ज्ञानवर्धन भी हीता है और उसे विभिन्न कलाओं तथा संस्कृतियों का परिचय भी मिलता है । अन्य विभिन्न कलाएँ भी मनुष्य के मनोरंजन का प्रमुख साधन रही हैं । आस्भ में पारम्परिक लोग कलाओं गीत, नृत्य, संगीत, नाटक आदि के द्वारा मनुष्य अपना अधिक मनोरंजन किया करता था । समय के साथ लोक कलाओं और लोक कलाकारों का महत्त्व कम होने लगा ।
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वैज्ञानिक युग में आम आदमी के मनोरंजन के लिए अन्य अनेक साधन सुलभ होने लगे और पारम्परिक कलाएँ विशेष अवसर तक सीमित रहने लगी । आज मनुष्य को मनोरंजन के अनेक साधन उपलब्ध हैं । रेडियो, टेलीविजन, पत्र-पत्रिकाएँ वीडियो गेम, सिनेमा, स्टीरियो आदि मनोरंजन के आपुनिक साधन सभी को सहज उपलब्ध हैं ।
आज रेडियो, टेलीविजन घर-घर में देखे जा सकते हैं । रेडियो पर विभिन्न मनोरंजक कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं । टेलीविजन के विभिन्न चैनल तो आज अपने धारावाहिक नाटकों के द्वारा समाज को अपने शिकंजे में कसते जा रहे हैं ।
लेकिन टेलीविजन के द्वारा मनोरंजन करने के लिए एक स्थान पर बैठे रहने की विवशता होती है । घर से बाहर यात्रा आदि के समय पत्र-पत्रिकाओं के सहारे मनुष्य अपना मनोरंजन करता है । स्टीरियो, वॉकमैन आदि का भी यात्रा के समय भरपूर आनन्द लिया जाता है ।
स्टीरियो पर अपनी पसन्द के गीत-गजल सुनते हुए मनुष्य सब कुछ भूलकर संगीत में डूब जाता है । चलचित्रों की खोज के उपरान्त से ही चलचित्र अथवा सिनेमा आम आदमी का सस्ता, सुलभ एवं प्रमुख साधन रहा है और आज भी सिनेमा के द्वारा ही आम आदमी अपना मनोरंजन करना अधिक पसन्द करता है ।
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कुछ वर्ष पहले तक तो सिनेमा थियेटरों में लोगों की इतनी भीड़ हुआ करती थी कि सिनेमा का टिकट सभी को मिलना कठिन होता था । पहले वीडियो, फिर टेलीविजन ने सिनेमा थियेटरों में लोगों की भीड़ को कुछ कम किया है परन्तु आज भी सिनेमा का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है ।
नयी फिल्म के प्रदर्शन पर आज भी सिनेमा थियेटरों में लोगों की भारी भीड़ होती है । अपने पसंदीदा अभिनेता-अभिनेत्रियों को परदे पर देखने के लिए आज भी लोग उतावले नजर आते हैं । लेकिन आज सिनेमा में पाश्चात्य संस्कृति को बढ़ावा देने, फूहड़पन और नंगेपन के कारण कुछ समाज सुधारकों और बुद्धिजीवियों की दृष्टि में सिनेमा का महत्त्व कम हो गया है ।
वास्तव में सिनेमा के द्वारा मनोरंजन करने के साथ भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की रक्षा करने की भी आवश्यकता है । हमारे फिल्म-निर्माताओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि सिनेमा का सीधा प्रभाव समाज पर पड़ता है ।
इसके अतिरिक्त आज वैज्ञानिक युग में मनुष्य के मनोरंजन के लिए नित नये साधन जन्म ले रहे हैं । लेकिन पारम्परिक कलाएँ अभी समाज में विद्यमान हैं । विभिन्न उत्सव, त्योहारों पर पारम्परिक कलाएँ आज भी लोगों का भरपूर मनोरंजन करती हैं ।