जल प्रकृति का वह तरल पदार्थ है जो मनुष्य के लिए जीवन स्वरूप है क्योंकि न तो जल के बिना जीवन की रचना ही सम्भव है और न ही जीवन उसके बिना रह सकता है । मनुष्य के अतिरिक्त धरती के अन्य सभी छोटे-बड़े जीव, पेड़-पौधे और वनस्पतियां आदि सभी का जीवन जल है और यदि जल नहीं है या इसका अभाव है तो मृत्यु भी निश्चित है ।
परन्तु यही जीवन देने वाला जल जब बाढ़ का रूप धारण कर लेता है तो यह प्रकृति का एक क्रूर परिहास बनकर रह जाता है । बाढ़ अर्थात् जल-प्रलय आने के प्राय: दो ही कारण होते हैं । एक तो वर्षा का आवश्यकता से अधिक होना तथा दूसरा कारण है यदि कभी किसी समय नदी या बांध में दरारें पड़कर टूट जाते हैं और चारों ओर जल-प्रलय का-सा दृश्य उपस्थित हो जाता है ।
पहला कारण प्राकृतिक है तथा दूसरा कारण अप्राकृतिक है परन्तु दोनों ही स्थितियों में जन-हानि के अतिरिक्त खलिहानों, पशुधन और मकानों आदि के नाश के रूप में धन-हानि हुआ करती है । कई बार तो उस भयावह, करुण एवं दारुण दृश्य का स्मरण करते भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं जब जल-प्रलय में डूब रहे मनुष्य, पशु आदि को देखना पड़ता है और वह बच पाने के लिए कितना सोचता तथा हाथ-पैर मारता होगा ।
ऐसा ही बाढ़ का एक भयावह दृश्य मुझे देखने को मिला । उस दृश्य को सोचकर शरीर में कंपकंपी-सी हो जाती है । बरसात का मौसम था । चारों ओर घनघोर वर्षा हो रही थी । कई दिनों से लगातार वर्षा होने के कारण नदी-नालों में पानी लबालब भर गया था । उधर ताजेवाले हैड से यमुना में लगातार पानी छोड़ा जा रहा था । जब पानी की निकासी का कोई रास्ता नहीं रहा तो पानी नालों के द्वारा घरों में भरने लगा ।
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हम लोग यह सोच कर सो गए थे कि वर्षा थमने पर पानी स्वत: ही कम हो जाएगा परन्तु ऐसा नहीं हुआ । आधी रात तक पानी सभी क्वार्टरों में घुटनों तक भर गया । बिजली जलाकर जब हमने देखा तो रात का वह दृश्य बड़ा ही भयावह था । गन्ध मारता पानी तथा जल-जीवों, सांपों आदि के साथ सांय-सांय कर रहा था । हम अपने को बचाने के लिए छत पर चढ़े तो ऐसा लगा पानी भी हमारा पीछा कर रहा है ।
जीवन की सुरक्षा की सम्भावनाएं घटती जा रही थीं । औरतें बच्चों को गोदी में उठाए राम-राम करती हुई एक दूसरे की तरफ निरीह आंखों से देख रही थीं । कुछ समय बाद नावों में सवार होकर स्वयंसेवक आए और हमें वहां से निकाल कर ले गए । तब कहीं जाकर हमने चैन की सांस ली । वह जल-प्रलय का दृश्य आज तक भी भुलाए नहीं भूलता है ।
हमारे देश में प्रतिवर्ष कहीं न कहीं बाढ़ आती रहती है । वर्ष 2006 में गुजरात के सूरत तथा अहमदाबाद सहित आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश तथा राजस्थान सहित भारत के कई राज्यों ने बाढ़ का कहर देखा । जान-माल की हानि तो हुई ही साथ ही साथ प्रगतिशील अर्थव्यवस्था भी इससे प्रभावित हुई । लगभग प्रत्येक वर्ष इस जल-प्रलय बाढ़ के चलते हजारों लोग बेघरवार हो जाते हैं ।
प्रभावित क्षेत्र के लोगों को अनेकानेक मुसीबतों का सामना करना पड़ता है । क्या केंद्रीय सरकार व राज्य सरकारें मिलकर बाढ़ को रोकने के संदर्भ में ऐसी कोई कारगर नीति नहीं बना सकतीं जिससे इस प्राकृतिक आपदा को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सके ? बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में मंत्रियों का हवाई जहाज से किया गया सर्वेक्षण इस समस्या का समाधान नहीं है ।