मासूम, कोमल बच्चे हँसते-खेलते हुए ही अच्छे लगते हैं । जीवन की प्रत्येक चिन्ता से मुक्त मुस्कराता हुआ बचपन जीवन की अनमोल धरोहर बनकर जीवनपर्यन्त समृति में रहता है । न जीवनयापन का बोझ, न ही कर्तव्य-पालन की चिन्ता, केवल हँसना-खेलना और जीवन जीने की कला को सीखने का प्रयास करना, यही होता है बचपना ।
परन्तु कुछ मासूम चेहरों का दुर्भाग्य उनके कोमल कन्धों पर जिम्मेदारी का भारी बोझ डाल देता है और इस प्रकार जन्म लेती है बाल-मजदूरी । हमारे विशाल भारत में प्रत्येक नगर-महानगर में, गाँव-कस्बे में मासूम बचपन मजदूरी करते हुए देखा जा सकता है ।
यद्यपि सरकार ने बाल-मजदूरी पर प्रतिबंध लगाया हुआ है, परन्तु जनसंख्या वृद्धि और गरीबी बाल-मजदूरी को रोकने में बाधक बनी हुई है । बच्चों को देश का भविष्य कहा जाता है । हँसते-खेलते हुए बच्चे, शिक्षा ग्रहण करते हुए योग्य नागरिक बनने की दिशा में आगे बढ़ेंगे, तभी देश का भविष्य उज्ज्वल हो सकेगा ।
परन्तु जिस देश में बचपना मिल-कारखानों में खेत-खलीहानों में ढाबों-चाय की दुकानों में पिसता-सिसकता रहेगा, उस देश का भविष्य कैसा होगा, अशिक्षित और बीमार । वास्तव में बाल-मजदूरी किसी भी राष्ट्र के लिए कलंक के समान है ।
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जिन बच्चों को माता-पिता का प्यार-दुलार मिलना चाहिए, उन्हें मिल-मालिकों होटल-मालिकों की गालियाँ सुननी पड़ती हैं । जिस आयु में शिक्षा ग्रहण करके योग्यता अर्जित करनी चाहिए उस आयु में प्रदूषित कारखानों में बीमारियों से लड़ना पड़ता है ।
वास्तव में बाल-मजदूरों की स्थिति अत्यन्त दयनीय है । बीड़ी, दीयासलाई, आतिशबाजी आदि के कारखानों में सस्ती दर उपलब्ध होने के कारण बाल-मजदूरों को अधिक प्राथमिकता दी जाती है । इन कारखानों में बाल-मजदूरों के स्वास्थ्य प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और उनके लिए चिकित्सा की समुचित व्यवस्था नहीं होती ।
अपनी जान जोखिम में डालकर मासूम बच्चे मिल-कारखानों में काम करते हैं । स्पष्टतया बाल-मजदूरी का प्रमुख कारण गरीबी है । घर पर भुखमरी के शिकार बच्चे ही ज्यादातर मजदूरी करने पर विवश् होते हैं । गरीब परिवारों में एक व्यक्ति की आय से परिवार भरण-पोषण सम्भव नहीं होता ।
अज्ञानता और अशिक्षा कारण परिवार में सदस्यों की संख्या बढ़ती रहती है । अत: सभी के भरण-पोषण के लिए होश सम्भालते ही परिवार के बच्चों को मेहनत-मजदूरी करने के लिए बाध्य होना पड़ता है । घर से भागे हुए बच्चों को भी पेट की भूख शान्त करने के लिए मजदूरी करने पर विवश होना पड़ता है ।
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इन बच्चों की विवशताओं का लाभ मिल-मालिक, ढाबा-मालिक उठाते हैं । वे बच्चों से दिन-रात काम लेते हैं और मेहनताना नाम मात्र को देते हैं । कोठी-बँगलों में काम करने वाले घरेलू नौकरों की स्थिति भी गुलामों से कम नहीं है । घरेलू बाल-मजदूरों को देर रात तक काम करना पड़ता है और मालिकों की गालियाँ भी सुननी पड़ती हैं ।
अनेक बाल-मजदूरों को मालिकों द्वारा बेरहमी से पीटने की भी घटनाएँ सुनने-पहने में आई हैं । बाल-मजदूरी दण्डनीय अपराध होने पर भी मजदूरी के लिए बच्चों का निरन्तर शोषण किया जा रहा है । वास्तव में केवल कानून बनाने से गरीब बच्चों के जीवन में विशेष सुधार होना सम्भव नहीं है ।
गरीब परिवारों के पेट की भूख बच्चों को मजदूरी के लिए विवश करती है । इस समस्या के निवारण के लिए सरकार को गरीब बच्चों के लालन-पालन और शिक्षा की जिम्मेदारी लेनी होगी । समाज के सम्पन्न नागरिकों को भी गरीब बच्चों की सहायता के लिए यथासम्भव प्रयास करना चाहिए ।
देश का भविष्य माने जाने वाले बच्चों के विकास के लिए समाज में जागरूकता की आवश्यकता है । बच्चों का शोषण करने वाले मिल-मालिकों, होटल-मालिकों आदि को भी विचार करने आवश्यक है कि अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए वे मासूम बच्चों पर अत्याचार करके पाप के भागी बन रहे हैं ।
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निस्संदेह किसी भी देश के बच्चे उसका भविष्य हैं । यह आवश्यक नहीं है कि प्रतिभा पर केवल धनवान परिवार बच्चों का अधिकार है । प्रतिभा गरीब बच्चों में भी होती है । अत: प्रत्येक वर्ग के बच्चों का स्वस्थ, शिक्षित और योग्य होना आवश्यक है, तभी देश का भविष्य उज्ज्वल हो सकता है । देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए हमें बाल-मजदूरी के कलंक मिटाने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास करना चाहिए ।