महात्मा गांधी यदि स्वतंत्र भारत के राष्ट्रपिता हैं तो पण्डित जवाहर लाल नेहरू को आधुनिक भारत का निर्माता माना जाता है । संभ्रांत परिवार में जन्म लेकर तथा सभी तरह की सुख-सुविधा भरे वातावरण में पल कर भी उन्होंने राष्ट्रीय स्वतंत्रता एवं आन-बान की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व त्याग दिया ।
पं॰ जवाहर लाल नेहरू का जन्म 14 नवम्बर, 1889 ई॰ को इलाहाबाद के आनन्द भवन में हुआ था । उनके पिता पं॰ मोती लाल नेहरू अपने समय के प्रमुख वकील थे । उनकी माता का नाम श्रीमती स्वरूप रानी नेहरू था । उनकी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई थी ।
उसके बाद वे उच्च शिक्षा प्राप्त करने इंग्लैण्ड चले गए । वहाँ से बैरिस्टर बनकर सन् 1912 में वापस आए और अपने पिताजी के साथ प्रयाग में ही वकालत करने लगे । सन् 1915 ई॰ में रोलट एक्ट के विरुद्ध होने वाली बम्बई कांग्रेस में नेहरूजी ने भाग लिया । यहीं से नेहरूजी का राजनीतिक जीवन प्रारम्भ हुआ था ।
नेहरूजी का विवाह सन् 1916 ई॰ में श्रीमती कमला के साथ हुआ । सन् 1917 में 19 नवम्बर के दिन उनके घर इन्दिरा प्रियदर्शिनी नामक पुत्री ने जन्म लिया । कुछ दिन पश्चात् नेहरूजी कांग्रेस के सदस्य बन गए और फिर महात्मा गांधी के नेतृत्व में देश की सेवा के कार्य में लग गए ।
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सन् 1919 के किसान आन्दोलन और 1921 के असहयोग आन्दोलन में भाग लेने के कारण नेहरूजी को जेल जाना पड़ा । सन् 1931 ई॰ में उनके पिता श्री मोती लाल नेहरू और सन् 1936 ई॰ में उनकी धर्मपत्नी कमला नेहरू का निधन हो गया ।
15 अगस्त, 1947 को भारतवर्ष स्वतंत्र हो गया । तब वे सर्वसम्मति से भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने और जीवन के अन्त तक इसी पद पर बने रहे । नेहरूजी ने भारत को अर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से उन्नत करने के लिए महान् कार्य किए ।
उन्होंने जाति-भेद को दूर करने, स्त्री-जाति की उन्नति करने व शिक्षा प्रसार जैसे अनेक कार्य किए । युद्ध के कगार पर खड़े विश्व को उन्होंने शान्ति का मार्ग दिखाया । नेहरूजी के ‘पंचशील’ के सिद्धान्तों ने विश्व शान्ति की स्थापना में सहायता की ।
पं॰ जवाहर लाल नेहरू एक महान् राष्ट्रीय नेता तो थे ही, वे उच्च कोटि के चिन्तक, विचारक और लेखक भी थे । उनकी ‘मेरी कहानी’, ‘भारत की खोज’, ‘विश्व इतिहास की झलक’ व ‘पिता के पुत्री के नाम पत्र’ आदि रचनाएं विश्व प्रसिद्ध हैं ।
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पं॰ नेहरू बच्चों को बहुत प्यार करते थे, इसीलिए बच्चे उन्हें आदर तथा प्यार से ‘चाचा नेहरू’ कहकर पुकारते थे । अत: उनके जन्म को आज भी ‘बाल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है । विश्व शान्ति का वह मसीहा 27 मई, 1964 ई॰ को हमारे बीच सें उठ गया । देश-विदेशों से विशेष प्रतिनिधि उनके अन्तिम दर्शन के लिए आए ।
28 मई, 1964 ई॰ को उनका पार्थिव शरीर अग्नि को समर्पित कर दिया गया । उनकी वसीयत के अनुसार उनकी भस्म खेतों और गंगा नदी में प्रवाहित कर दी गई । उनका नाम चिरकाल तक इतिहास में अमर
रहेगा ।