सुभाषचंद्र बोस का जन्म २३ जनवरी, १८९७ को कटक ( उड़ीसा ) में हुआ था । सन् १९१३ में उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय की मैट्रिक परीक्षा द्वितीय स्थान प्राप्त करते हुए उत्तीर्ण की । सन् १९१४ में मन की शांति के लिए वे हरिद्वार चले गए; किंतु कुछ समय बाद वापस लौट आए ।
सन् १९१६ की एक घटना है । प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता के एक अध्यापक ओटन ने भारतीयों के लिए कुछ अपशब्द कहे । इस पर सुभाषचंद्र बोस को बहुत क्रोध आया । उन्होंने ओटन के गाल पर दो-चार तमाचे जड़ दिए । इस कारण उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया ।
सन् १९१९ में उन्होंने बी.ए. ऑनर्स की परीक्षा ससम्मान उत्तीर्ण की थी: श्रेणी प्रथम थी और स्थान चतुर्थ । सन् १९२१ में कैंब्रिज विश्वविद्यालय से दर्शन शास्त्र में ऑनर्स की परीक्षा उत्तीर्ण की । कुछ दिनों तक उन्होंने सरकारी सेवा भी की, किंतु निजी स्वतंत्रता में बाधक बनने के कारण उन्होंने नौकरी छोड़ दी ।
आगे चलकर उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से हुई । दोनों ने एक-दूसरे के विचार पसंद किए । सन् १९२१ में सुभाषचंद्र बोस को असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया । उन्हें छह माह की जेल की सजा हुई । सजा पूरी होने के बाद उन्हें कारागार से मुक्त कर दिया गया ।
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फिर तो जेल आना-जाना उनका कर्म-दंड बन गया । २९ जनवरी, १९३१ को सुभाषचंद्र बोस को ‘अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ का अध्यक्ष चुना गया । सन् १९४० में वे कांग्रेस की नीतियों से खिन्न हो गए थे । उनकी यह खिन्नता आगे चलकर बड़ी प्रभावकारी सिद्ध हुई ।
स्वतंत्रता संग्राम में अत्यधिक सक्रियता के कारण अंग्रेज सरकार ने उन्हें उनके घर में ही नजरबंद कर दिया था । २७ जनवरी, १९४१ को यह बात पता चली कि सुभाष कलकत्ता स्थित निवास से रहस्यपूर्ण ढंग से न जाने कहाँ चले गए । वहाँ से वह काबुल होते हुए बर्लिन और टोकियो गए ।
वहाँ रहकर उन्होंने गोरी हुकूमत के विरुद्ध युद्ध के लिए भारतीयों को संगठित किया । २१ अक्तूबर, १९४३ को उन्होंने ‘आजाद हिंद फौज’ का गठन किया । उन्होंने अपनी सेना को कूच का आदेश दिया और कहा, ‘दिल्ली चलो ।’ आजाद हिंद फौज भारत की सीमा तक आ पहुँची और अंग्रेजी सेना से प्रत्येक लड़ाई लड़ते हुए आगे बढ़ रही थी ।
इसी दौरान जापान की हार होने लगी और फिर सेना को पर्याप्त सहायता न मिल सकी । नेताजी ने अपनी स्वतंत्र सरकार गठित की थी और अपने स्वतंत्र रेडियो से भारतवासियों को संबोधित भी किया । देशवासियों से उन्होंने आह्वान किया: ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा ।’ १८ अगस्त, १९४५ को एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई ।